Tuesday, April 26, 2011

...जरूरी तो नहीं

चन्द  लफ़्ज़ों  का  असर  हो.... ये जरूरी  तो  नहीं |
मेरे   नगमों   में   हुनर हो...... ये  जरूरी  तो  नहीं |

दिल से लिखता हूँ , ग़ज़ल है   कि  ग़ज़ल  जैसी है ,
मेरी  आहों  में  बहर  हो...... ये   जरूरी   तो   नहीं |

सिर्फ   साँसों  का  सफ़र है ......ये  जिंदगी  अपनी ,
रोज़  घुट-घुट  के  गुज़र  हो ...ये  जरूरी  तो  नहीं |

उसके घर के बगल में. अपना घर है.. क्या कहना ,
अब  उसकी  मुझ पे नज़र हो....ये  जरूरी तो नहीं |

दर्द  पी पी  के  ही  जीना  है ...........जिंदगी  यारों ,
उम्र  जलवों  में  बसर  हो ......ये जरूरी  तो  नहीं |

कहते  हो  आदमी जहरीला है ...साँपों  सा  मगर ,
सभी  साँपों  में  ज़हर  हो......ये  जरूरी  तो  नहीं | 

अपनी दीवानगी से खुश हूँ ..क्यूँ  अफ़सोस करूँ ,
होश  में  सारा  शहर  हो......ये  जरूरी  तो  नहीं |   


Wednesday, April 20, 2011

आज़ाद देश के हैं..जरा मुस्कुराइए !

आप  यूँ   न  रोइए .....आँसू   बहाइए !
आज़ाद  देश  के  हैं...जरा मुस्कुराइए !

       भुखमरी  है  देश  में  फैली  तो  क्या हुआ ?
       सोने से भरी उनकी तिजोरी तो क्या हुआ ?
       झोपड़ी  है  रोती  सिसकती  तो क्या हुआ ?
       बँगलों में कैद देश की हस्ती तो क्या हुआ ?

गोरे गए तो कालों की खिदमत बजाइए !
आज़ाद   देश  के  हैं... जरा  मुस्कुराइए !

       देखो  चोर, माफिया.. आज़ाद हैं यहाँ |
       भेंडियों  के झुण्ड ही.. आबाद  हैं यहाँ |
       आज़ाद  हुए  राज-काज  देखने वाले |
       आज़ाद हैं वतन की लाज बेंचने वाले |

गद्दारों को अदब से जरा..सर झुकाइए !
आज़ाद  देश  के  हैं ...जरा मुस्कुराइए !

       आतंकवाद .... खून  की  बौछार  देखिए |
       कश्मीर में  अलगाव की  फुंकार  देखिए |
       जनता की जरा चीख औ  पुकार  देखिए |
       नेताओं का अपने वतन से प्यार देखिए |

बापू  का नाम...आइए, जमके भुनाइए !
आज़ाद देश के हैं ......जरा  मुस्कुराइए !

       वोट  का  अधिकार है.....बस वोट दीजिए |
       आराम  बड़ी  चीज़ है.. .सर ढक के सोइए |
       हल्दी में  पीली ईंट का... ..चूरन मिलाइए |
       खाकर ज़हर भी....मौत के दर्शन न पाइए | 

घपले भी हैं..घोटाले भी..खुल के कमाइए !
आज़ाद  देश  के  हैं ..... जरा  मुस्कुराइए !  

   
        

Friday, April 15, 2011

यही जिन्दगी , यही है जीना

( इस रचना को आज मैं पुनः पोस्ट कर रहा हूँ क्योंकि जब इसे ब्लाग पर पहली बार पोस्ट किया था तब मैं लगभग अपरिचय की स्थिति में ब्लाग जगत का नवागंतुक ही था | अतः यह रचना सुधी पाठकों और विद्वान रचनाकारों तक नहीं पहुँच पायी )


     गम     खाना    औ    आँसू   पीना |    
     यही    जिन्दगी ,  यही   है   जीना |

     पीर      पुरानी         घाव      पुराने ,
     नित्य   नयी     साँसों    से    सीना |

     पीते       पीते        उम्र       गुजारी,
     मगर   कहाँ   आ   सका    करीना ?

     बिखरी   लट  , आँखों   में   दहशत ,
     कहते    हैं    सब     उसे     हसीना |

     सभी    देश     की      बातें    करते ,
     अमर  शहीदों    का    हक   छीना |

     श्वेतवसन      चेहरे       ने      देखा ,
     दर्पण   को    आ    गया     पसीना |

     नागफनी      हो    गए     आचरण ,
     पल-पल  मरना   पल-पल  जीना |

Monday, April 11, 2011

.....सिंहासन को झुकना ही पड़ा

    आखिर सिंहासन को झुकना ही पड़ा .....जनता के आगे !

सत्याग्रह के समक्ष असत्य ने घुटने टेक दिए | 'स्वतंत्र भारतवर्ष' के दूसरे गाँधी और समग्र अहिंसक जनक्रांति के दूसरे जय प्रकाश नारायण के रूप में देश की जनता को अन्ना हजारे जैसा समर्थ युगपुरुष मिल ही गया | जन लोकपाल बिल लाकर,भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे देश को उबारने की मुहिम के प्रथम चरण को उम्मीद से अधिक ही सफलता मिली | सत्य और अहिंसा के अनुयायी, सत्याग्रही सम्माननीय अन्ना हजारे के ९७ घंटे के उपवास के दौरान पूरे देश के कोने-कोने में जैसे बिजली दौड़ गयी | हर जाति, धर्म और वर्ग के बुज़ुर्ग , युवा , बच्चे , महिलायें प्रबुद्ध ,अनपढ़ , रिक्शाचालक ,  मजदूर  ,किसान और संगठन ; भ्रष्टाचार-हनन के इस आन्दोलन में जी-जान से शामिल हुए | सिंहासन हिलता देख, वही सरकार जिसने  कुछ समय पूर्व अन्ना जी द्वारा लिखे पत्र का जवाब देना जरूरी नहीं समझा था - जंतर-मंतर पर नतमस्तक हो गयी |
       लोकतंत्र में लोक जीता ----तंत्र हारा !
      यह जीत पूरे देश के उस अधिसंख्य वर्ग की जीत है जो  भ्रष्टाचारियों के मकडजाल में फँसे देश के  असहाय
लोकतंत्र में कदम-कदम पर मौत से पहले ही कई-कई बार मरते रहने को विवश है | जन लोकपाल बिल का मसौदा भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा चुका है किन्तु इस सफलता के एक दिन बाद ही राजनीति के  मदारियों ने अपनी-अपनी जादूगरी दिखानी शुरू कर दी  है | कोई अन्ना जी पर ही मिथ्यारोपण कर रहा है तो कोई मुद्दे को ही भटकाने में लगा है | अन्ना जी 'भ्रष्टाचारमुक्त ग्राम सुराज' के द्वारा 'भ्रष्टाचारमुक्त भारत' का पुनर्निर्माण करने के उसी संकल्प पर कर्मरत हैं जिसका सपना कभी महात्मा गाँधी ने देखा था |
    तो आइये ... हम सब अन्ना जी के नेत्रित्व में और किरण वेदी , केजरीवाल , स्वामी अग्निवेश, योग गुरु रामदेव जैसे स्वच्छ छवि वाले सभी 'देशहित चिंतकों' के 'राष्ट्र कल्याण मिशन' से जुड़कर इसे  कामयाब बनाने में अपना सम्पूर्ण सहयोग करें | ईमानदार , स्वच्छ और जनहितकारी लोकतंत्र की परिकल्पना के साथ-साथ अखंड, स्वाभिमानी एवं विश्वशिरमौर भारतवर्ष  के निर्माण यज्ञ  में अपने  पवित्र भावों  की आहुति  डालने में कदापि पीछे न रहें | स्वयं को भ्रष्टाचार से अलग रखते हुए हम जहां कहीं भी हों इसके विरुद्ध पूरी ताकत के साथ खड़े  होकर इसका जमकर  मुकाबला करें |   

      क्योंकि यह जीत  नवरात्रि के शुभ  अवसर पर मिली है, अतः 'आदिशक्ति माँ  जगदम्बा' की कृपा को प्रणाम करना चाहूँगा .......

        जेहि प्रेरत ही  मधु  कैटभ  मारन,  भार   उतारन   श्रीहरि  जागे |
        जासु  भवानी   कै  रूप  विशाल,  लखे  यमदूत  कराल  हु  भागे |
        जोग औ भोग  तिहूँ पुर कै सुख, देति जो  पुत्रन  को  बिन  माँगे |
        माई कै आँचल  त्यागि 'सुरेन्द्र', न  हाथ पसारिहौं आन के आगे |

        जाकी कृपा  विधि श्रृष्टि रचैं,प्रभु पालें, विनाश  करैं  त्रिपुरारी |
        सुवाणी स्वरूप धरे जगती,शुचि बुद्धि,विवेकमयी  अधिकारी |
        माँ सीता बनी संग राघव के, अघपुंज  दशानन कै कुल तारी |
        लाल बेहाल 'सुरेन्द्र' भला , जननी सम को जग में हितकारी |
         

Monday, April 4, 2011

.... कुछ न कहें तो अच्छा है

सब कुछ देखें  अधर  न खोलें,   कुछ न कहें तो अच्छा है |
उनमें  हम भी  शामिल हो लें,  कुछ  न कहें  तो अच्छा है |

परदे   के   पीछे   की   बातें ,  परदे    में    ही    रहने    दें ,
सच्चाई  का  राज  न  खोलें , कुछ  न  कहें  तो अच्छा है |

बाज़ारों   से   कई   मुखौटे ,  खरीद   लाने    के   दिन   हैं ,
असली चेहरा  कभी न खोलें, कुछ  न  कहें  तो अच्छा है |

महज़ स्वार्थ के  दलदल में, सम्बन्ध  धँसे ,   मजबूरी  है ,
कठपुतली   सा  नाचें  खेलें,  कुछ  न  कहें  तो  अच्छा है |

दाँतों  के  चंगुल  में   जिह्वा,  जैसे   विभीषण   लंका   में ,
रावण  के  हमराही  हो  लें,  कुछ  न  कहें   तो  अच्छा है |

पर   उपदेश  कुशल   बहुतेरे ,   बड़ा    पुराना    ढर्रा    है ,
पहले  अपना  ह्रदय  टटोलें, कुछ  न  कहें  तो  अच्छा है |

अधरों  पर  ताला  अनजाना  और   आँसुओं  पर   पहरे ,
भीतर-भीतर सब कुछ पी लें, कुछ न कहें  तो अच्छा है |

एक ज़िन्दगी भार सरीखी, साँस - साँस   धिक्कार भरी ,
चलो अनमनेपन  से जी लें, कुछ  न कहें  तो  अच्छा है |