Thursday, June 30, 2011

साँप आस्तीन के, कंठ चूमने लगे

बाग़   सूखने   लगे | 
झाड़   झूमने   लगे | 

साँप   आस्तीन  के ,
कंठ    चूमने    लगे |

क्रान्ति का घोष था ,
लोग   ऊँघने    लगे |

हम  तो  आदर्श को ,
सिर्फ   पूजने   लगे |

देखिये  तो !  मधुप-
स्वर्ण   सूंघने   लगे |

उसने सच कह दिया ,
लोग    ढूँढने     लगे |

गाँव     के     पहरुए ,
गाँव     लूटने    लगे |

हम  स्वयं  का  पता ,
खुद   से  पूंछने  लगे |

स्वार्थ  के  सिन्धु  में ,
हंस      डूबने     लगे |

शूल   ने    छू   लिया ,
ज़ख्म   पूरने     लगे  | 

Tuesday, June 21, 2011

इक दूजे के लिए

नया-नया दरोगा था 
एक दिन गश्त में 
खूंखार हिस्ट्रीशीटर को पा गया 
विधायक जी का पालतू 
गब्बर सिंह 
अचानक पुलिस  की चपेट में आ गया 

विधायक जी ...
जा रहे थे विदेश 
मिला सन्देश 
कार दौड़ाये
सीधे पुलिस स्टेशन आये 

इधर दरोगा जी ..
दहशत दिखा रहे थे 
पर्दाफाश करने को 
डंडा उठा रहे थे 
इन्स्पेक्टर के
 खूंखार चेहरे को देखकर 
हो रही थी 
गब्बर सिंह की हालत खराब 
इतने में देखा ..
नेता जी आ गए 
आँखों में ख़ुशी के आँसू छलके 
निकले यही कलाम ...
'मेरे महबूब तुझे सलाम !'

इधर दरोगा  ने 
नेताजी को देखा ..
ठोंका बड़ा सलाम 
अरे हुज़ूर! हो गया आपका काम 

गब्बर सिंह को छोड़ दिए 
ये कहते हुए ..
'हम बने तुम बने इक दूजे के लिए '  

Thursday, June 16, 2011

उर की जो व्यथा है वही कविता है

दीनों  के  घर  में  उजाला  करे  चाहे  छोटा सा दीप वही सविता है |
प्यासों  की  प्यास बुझाये सदा   भरा  कीच तलाव  वही सरिता है |
न्याय  के  संग चले  जो  सदा   न झुके जो कभी नर सो नर सा है |
कवि से कविताई न पूँछो सखे  उर की जो व्यथा है वही कविता है |

Saturday, June 4, 2011

लोकराज में जो हो जाये थोड़ा है

                                                         
                    "  लोकराज में जो हो जाये थोड़ा है "

                  जनता के सर  पड़ता  रोज  हथौड़ा है |   
                  लोकराज में   जो  हो  जाये   थोड़ा है |

कहीं  का पत्थर  और कहीं का रोड़ा है |
भानमती ने  अच्छा   कुनबा  जोड़ा  है |
मनमोहन तो ताक धिना धिन  नाचे हैं ,
दिल्ली - महारानी  का  सीना चौड़ा है |
                  यू पी ने  हर राज्य को पीछे  छोड़ा है |
                 लोकराज  में जो हो  जाये    थोड़ा  है |

पब्लिक को वादों का तोहफा  देता है |
बेईमानी, लफ्फाजी    कर   लेता  है |
घोटालों का बाप जो  दादा  गुंडों का ,
वही आज के दौर का असली नेता है |
                सदन तलक जा पहुंचा मगर भगोड़ा है |
                लोकराज  में   जो   हो  जाये  थोड़ा  है |

मंत्री से संतरी   सभी  तो    चंगे   हैं |
भ्रष्टाचार में करते  हर-हर    गंगे  हैं |
अफसर-बाबू-पुलिस जो रंगबिरंगे हैं ,
देखो सब के सब  हम्माम में नंगे हैं |
              इन्हीं सबों ने मिलकर देश निचोड़ा है |
              लोकराज में  जो  हो  जाये  थोड़ा  है |

महँगाई   द्रौपदी-चीर   सी   बढ़ती  है |
सुरसा   जैसी   मुँह  फैलाये  हँसती है |
निगल रही जिन्दगी गरीबों की,डायन-
महलों में ही  सजती और  सँवरती है |
         सैयाँ बहुत कमाएँ मगर सब थोड़ा है |
         लोकराज  में  जो हो  जाये थोड़ा  है |

घर-घर टी. वी. नंगा नाच दिखाती है |
कम कपड़ों में  महँगे अंग लखाती है |
मर्यादा-तहजीब  बेंच   बाजारों    में ,
देखो अब  राखी  इन्साफ सुनाती है |
           तार-तार सभ्यता ,  प्रदर्शन भोंड़ा है |
           लोकराज  में  जो हो जाये   थोड़ा है |

सौ  में  सत्तर  लोग   आज  भी  निर्धन हैं |
धोता गिलास ढाबे पर देश का  बचपन है |
आज़ादी तो मिली  मगर  बस महलों को ,
सड़कों  पर  आबाद  हमारा   जन-गन है |
          झोपड़पट्टी वतन के तन पर फोड़ा है |
          लोकराज   में  जो  हो जाये   थोड़ा है |

आतंकी मेहमान बने हैं  क्यूँ आखिर ?
सत्ताधर अनजान बने हैं क्यूँ आखिर ?
'फाँसी दो'  फैसला  अदालत करती है ,
सिंहासन बेकान बने हैं  क्यूँ आखिर ?
            देश पे  मरनेवालों   का  दिल  तोड़ा  है |
            लोकराज  में  जो  हो   जाये   थोड़ा है |

मज़हब  और  धर्म    की    ठेकेदारी  है |
मंदिर-मस्जिद जंग  अभी तक जारी है |
'ढाई आखर-प्रेम'  न  कोई   पढ़ा  सका ,
इंसानी   रिश्तों    की    ये   लाचारी है |
            भारत है अखंड- हमने कुछ तोड़ा है |
            लोकराज  में जो हो जाये   थोड़ा है |

चमचागीरी ,  चाटुकारिता   हावी  है |
इज्ज़त  से  जीने  में  बड़ी खराबी  है |
दो रोटी के लिए  जिस्म बिक जाते हैं,
कैसे कह दूँ ? मौसम यहाँ  गुलाबी है |
         सच्चाई से  कलम ने भी  मुँह मोड़ा है |
         लोकराज  में  जो हो   जाये   थोड़ा है |