Wednesday, July 11, 2012

          पावस के दोहे 
 
वर्षा ऋतु   मनभावनी, आइ    गयी    रसधार |
ताप दग्ध धरती पड़ी, अमृत    की    बौछार |
 
वन उपवन थे जल रहे, दुसह ताप की मार |
वर्षा ने   शीतल   किया, तन मन छुवे बयार |
 
दादुर   धुनि    मनभावनी, टर-टर करत पुकार |
झन झन झन जियरा हरै, झिल्ली की झनकार  |
 
गोरी    भीगे     द्वार    पर, उर   उमगा   अनुराग |
तन मन व्याकुल पीव बिन, जरै   विरह की  आग |