Friday, November 18, 2011

चल मेरे मीत नदी-तीर चलें

संग-सँग  राँझा  चलें , हीर  चलें |
चल  मेरे  मीत   नदी -तीर चलें |

चलें कुंजों की घनी छावों में |
प्यार  के  रंग  भरे गाँवों  में |
मस्त भँवरे हैं, गुनगुनाते हैं |
रस में डूबे हैं , गीत  गाते हैं |

दिल की तनहाइयों को चीर, चलें |

समां   बसंत   की   सुहानी है |
जहाँ    महकती   रातरानी है |
चाँदनी धरा-तल पे बिखरी है |
रूप  की  धवलपरी   उतरी है |

ऐसे में मन को कहाँ धीर ? चलें |

परिंदे    प्रेम-धुन     सुनाते हैं |
सैकड़ों    तारे     मुस्कराते हैं |
लताएँ    झूम-झूम   जाती हैं |
डालियाँ   चूम-चूम   जाती हैं |

प्यार  के  डोर बंधी पीर, चलें |

सिर्फ हरियाली ही हरियाली है |
हाय,  कैसी   छटा   निराली है !
कोई   बंदिश  है  ना  बहाना है |
एक   दूजे   में    डूब   जाना है |

आज हम तोड़ के जंजीर चलें |

Wednesday, November 2, 2011

प्यास तो सिर्फ प्यास होती है

जिंदगी   जब    उदास  होती  है |
तू    मेरे   आस-पास    होती  है |
बुझ गई गर  तो प्यास ही कैसी , 
प्यास तो   सिर्फ प्यास  होती है |

तू जहाँ पर थी वहीँ , पदचिन्ह  तेरे  ढूंढता हूँ |
तू गयी पर मैं तेरी,यादों से तुझको पूंछता हूँ |

एक  ज़माना  पहले  जैसी, अब  भी  लगती हो |
आँखों  ही  आँखों  में   बातें,  करती   लगती हो |
चाल वही-मुस्कान वही- नज़रों  का  बाँकापन ,
उम्र न कुछ कर सकी,उम्र को ठगती लगती हो |