Monday, June 4, 2012

                      मुक्तक

आगे बढ़ने पर लगा प्रतिबन्ध है |
वापसी   का   रास्ता     भी   बंद  है |
परकटा पंछी    भला     जाए कहाँ ,
जिंदगी !   कैसा  तेरा   अनुबंध है ?

फूल   का  सौदा  करे, माली  चमन का |
पूछते हो हाल क्या? अपने  वतन   का |
अब   तो    मालिक के   भरोसे   जिंदगी ,
भेड़ियों  के  बीच है,  शावक   हिरन  का | 

14 comments:

  1. manbhavan rachna...sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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  3. बहुत खूब! जबरदस्त मुक्तक के लिए आपका आभार!

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  4. जिंदगी ! कैसा तेरा अनुबंध है ?
    क्या सुंदर.... वाह!
    सादर बधाई।

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  5. कड़वी सत्य है ..सुन्दर सन्देश

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  6. बहुत बढ़िया यथार्परक मुक्तक ....

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  7. आपकी कविता में वर्णित छटपटाहट दिल को छूती है.
    हमारे देश का राम ही मालिक है.

    मदर इंडिया का यह गाना याद आता है
    'दुनिया में जब आये हैं तो जीना ही पड़ेगा
    जीवन अगर जहर है तो पीना ही पड़ेगा.'
    भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

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  8. बहुत ही रुचिकर ....वाह

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  9. फूल का सौदा करे, माली चमन का |
    पूछते हो हाल क्या? अपने वतन का ...

    बहुत सटीक बात लिखी है आपने। यही हो रहा है यहाँ। अपेक्षा किससे की जाए, जब चमन का रखवाला ही चमन उजाड़ने पर तुला हो।

    .

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