मुक्तक
आगे बढ़ने पर लगा प्रतिबन्ध है |
वापसी का रास्ता भी बंद है |
परकटा पंछी भला जाए कहाँ ,
जिंदगी ! कैसा तेरा अनुबंध है ?
फूल का सौदा करे, माली चमन का |
पूछते हो हाल क्या? अपने वतन का |
अब तो मालिक के भरोसे जिंदगी ,
भेड़ियों के बीच है, शावक हिरन का |
sundar, surendra ji
ReplyDeletebehtreen prstuti.....
ReplyDeletemanbhavan rachna...sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteबहुत खूब! जबरदस्त मुक्तक के लिए आपका आभार!
ReplyDeleteजोरदार झटके ....
ReplyDeleteजिंदगी ! कैसा तेरा अनुबंध है ?
ReplyDeleteक्या सुंदर.... वाह!
सादर बधाई।
कड़वी सत्य है ..सुन्दर सन्देश
ReplyDeleteबहुत बढ़िया यथार्परक मुक्तक ....
ReplyDeleteआपकी कविता में वर्णित छटपटाहट दिल को छूती है.
ReplyDeleteहमारे देश का राम ही मालिक है.
मदर इंडिया का यह गाना याद आता है
'दुनिया में जब आये हैं तो जीना ही पड़ेगा
जीवन अगर जहर है तो पीना ही पड़ेगा.'
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
atulya
ReplyDeleteबहुत ही रुचिकर ....वाह
ReplyDeleteफूल का सौदा करे, माली चमन का |
ReplyDeleteपूछते हो हाल क्या? अपने वतन का ...
बहुत सटीक बात लिखी है आपने। यही हो रहा है यहाँ। अपेक्षा किससे की जाए, जब चमन का रखवाला ही चमन उजाड़ने पर तुला हो।
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बहुत बढ़िया
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