दीनों के घर में उजाला करे चाहे छोटा सा दीप वही सविता है |
प्यासों की प्यास बुझाये सदा भरा कीच तलाव वही सरिता है |
न्याय के संग चले जो सदा न झुके जो कभी नर सो नर सा है |
कवि से कविताई न पूँछो सखे उर की जो व्यथा है वही कविता है |
bilkul sach likha hai
ReplyDeleteकवि से कविताई न पूँछो सखे उर की जो व्यथा है वही कविता है
ReplyDeleteसटीक परिभाषा कविता की.
सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
वियोगी होगा पहला कवि
ReplyDeleteआह से उपजा होगा गान ..
सुन्दर प्रस्तुति
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ..।
ReplyDeleteकवि से कविताई न पूँछो सखे उर की जो व्यथा है वही कविता है
ReplyDeleteबेहद सटीक चित्रण्।
उर की जो व्यथा है वही कविता है।
ReplyDeleteसुन्दर अति सुन्दर।
कवि से कविताई न पूँछो सखे उर की जो व्यथा है वही कविता है |
ReplyDeleteगहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई....
आपकी छोटी सी रचना अपने अन्दर बहुत सारी भावनाओं को समेटे हुए है
ReplyDeleteजो वक़्त पर काम आये , वही मित्र है । जो प्यास बुझाए वही सरिता है और जो ह्रदय से उपजे वही कविता है ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
aankhon se jo bhi aansu bahega , kuch to kahega ... aur tab kavi hoga sunanewala
ReplyDeleteउर की जो व्यथा है वही कविता है.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....थोड़े से शब्दों में बहुत सी बातें कह दी आपने...
मेरी "कविता" भी कुछ कहती है...
" कविता केवल कविता नहीं होती है,
हर कवि के मन का दर्पण होती है..
जब वो रोता है तो रोती भी है,
और हँसता है तो हंसती भी है,
कभी ये रोटी को तरसती भी है,
कभी बरखा बन के बरसती भी है,
कभी फूल बन के महकती भी है,
कभी शूल बन के चुभती भी है,
ये युवा मन की शक्ति भी है,
और कभी ईश्वर की भक्ति भी है,
कभी इसमें कोमल सी प्रीति भी है,
और कभी जग से विरक्ति भी है,
कभी इसमें उजाला, अँधेरा भी है,
कभी इसको जुल्मों ने घेरा भी है,
कभी इसमें अहसास मेरा भी है,
कभी इसमें तेरा बसेरा है,"
जी, कविता तो वास्तव में ह्रदय की ही व्यथा है
ReplyDeleteउर की व्यथा ही कविता है....
ReplyDeleteकविता की इससे बेहतर परिभाषा नहीं हो सकती।
बहुत सुंदर, सुरेन्द्र जी।
kam shabdo me sampurn kavita kaa bakhan yahi to kavita hai bahut khub likha hai aapne
ReplyDeleteBikul Sahi...Bahut Sunder Panktiyan hain....
ReplyDeleteBAHUT KHUB LIKHA HAI SIR JI APNE. . . ISE HE KAHTE HAIN GAGAR ME SAGAR.
ReplyDeleteJAI HIND JAI BHARAT
सुरेन्द्र सिंह "झंझट" जी -उर कि जो व्यथा है वही कविता है -
ReplyDeleteबहुत खूब कही -
वियोगी होगा पहला कवि,आह से निकला होगा गान
निकल कर अधरों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान .
सौ प्रतिशत हकीकत है- उर की व्यथा ही कविता है. बेहतरीन रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं .
ReplyDeleteउर कि जो व्यथा है वही कविता ह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं सत्य
सुन्दर और सत्य कहना ही सही है बिना व्यथा के कविता कहां
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव लिए रचना। उर की जो व्यथा कहे, कविता है!
ReplyDeleteबेहतरीन ......
ReplyDeleteदीनों के घर में उजाला करे चाहे छोटा सा दीप वही सविता है ......
ReplyDeleteसंक्षिप्त सी रचना किन्तु सटीक चित्रण्।
आभार उपरोक्त पंक्तियों को साझा करने हेतु .........
शानदार् रचना
ReplyDeleteउर की जो व्यथा है वही कविता है
ReplyDeleteवाह क्या बात है.
एकदम सही कहा है आपने.
उर की व्यथा है वही कविता है...सच
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति, सटीक चित्रण्।
ReplyDeleteशानदार कवित्त .मध्य कालीन नीति परक कवित्त सवइया याद आ गया .
ReplyDeleteझंझट जी यह तो गागर में सागर जैसी बात हुयी ! बहुत सठिक.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति, गागर में सागर , वाह,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
उर की जो व्यथा है वही कविता है |
ReplyDeletebahut hi badhiya rachna
उर की व्यथा ही तो कविता होती है, सौ फीसदी सही|
ReplyDeleteउर की व्यथा---- सुन्दर भाव
ReplyDeleteगीत गज़ल लिख वक्त गुजारें तन्हाई के मारे राम । शुभकामनायें।
दीनों के घर में उजाला करे चाहे छोटा सा दीप वही सविता है
ReplyDeleteसुंदर भाव पिरोए कविता.
चंद शब्दों में ही गहरी बात कह डाली. कभी कुछ कहना भी बहुत कुछ कह जाता है.
ReplyDeleteAApki Baat pasand aayi! keval chaar panktiyon men hi aapne itna kuch kah diyaa!
ReplyDeleteभाई सुरेन्द्र जी सबसे पहले आपके बेहतरीन कमेंट्स के लिये बधाई फिर आपकी कवित्त के लिये बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह....
ReplyDeleteक्या कहूँ.... एक एक पंक्ति की सौ सौ बलैयाँ ली हैं मैंने...फिर भी मन नहीं भर रहा....
अद्वितीय....अप्रतिम....वाह....
एकदम सही....
ReplyDeletesateek prastuti .aabhar
ReplyDeleteकविता को ४ पंक्तियों में बखूबी परिभाषित किया है. भई वाह !!!!!!
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी बहुत ही सटीक प्यारे बोल इस रचना में -सत्य और सुन्दर
ReplyDeleteन्याय के संग चले जो सदा न झुके जो कभी नर सो नर सा है |
बहुत सुन्दर भाव, बहुत सुन्दर शब्द
ReplyDeleteआपके उर की गहराइयों से प्रकट हो रहे हैं.
सीधे दिल में ही उतर रहें हैं.
हम कविता को जितने तरीकों से परिभाषित करते हैं , वे कविता की सीमाओं को बंधने का प्रयास भर है. जबकि कविता हमेशा अपरिभाषित है, लगभग हमारे अप्रकाशित जीवन की तरह.
ReplyDeleteअव्यवस्था के खिलाफ जोर का झटका धीरे से
कवि से कविताई न पूँछो सखे उर की जो व्यथा है वही कविता है
ReplyDeleteसटीक परिभाषा कविता की.
चंद शब्दों में ही बहुत कुछ कह डाली. शुभकामनायें।