आदिशक्ति जगजानकी तू है त्रिकाल-रूप ;
सदा तू समाज में , रही है मातु दाहिनी |
शक्ति के समेत विष्णु, ब्रह्म, हे पुरारि ! मातु-
काली, हे कराल रूप ! पाप-ताप दाहिनी |
साजि दे समाज , मातु ! कवियों की भावना भी ;
करि दे अभय , पाहिमाम ! विश्व पाहिनी |
मातु हंसवाहिनी, तू आ जा रे बजाती बीन ;
सिंह पे सवार मातु आ जा सिंहवाहिनी |
प्रेरत ही मधु-कैटभ मारन, भार उतारन श्रीहरि जागे |
मातु भवानी- सुरूप विशाल, लखे जमदूत कराल हु भागे |
जोग औ भोग तिहूँ पुर कै सुख, देति जे पुत्रन को बिन मांगे |
माई कै आँचल छोडि 'सुरेन्द्र', न हाथ पसारिहौं आन के आगे |
जाकी कृपा विधि सृष्टि रचैं, हरि पालैं, विनाश करैं त्रिपुरारी |
वाणी स्वरूप धरे जगती, शुचि बुद्धि विवेकमयी अधिकारी |
सीता बनीं सँग राघव के, अघपुंज- दशानन कै कुल तारी |
लाल बेहाल 'सुरेन्द्र', भला जननी सम को जग में हितकारी
माँ की तामस पूजा.... अनुचित
जगजननी जो पालती हैं जग, जीव सब ,
किसी असहाय का , वो रक्त नहीं चाहतीं |
जिन्हें करि ध्यान,लेत साधक सुज्ञान-ज्योति ,
सुरा ज्ञाननाशिनी पे , कृपा नहीं वारतीं |
सत-चित-आनंद की , तेजयुत रूप-राशि ,
तामस - आचारियों को, भव न उबारतीं |
अरे नर ! त्यागि दे कुपंथ, सत्य पंथ धर ,
आदिशक्ति मातु आज, क्रोध में पुकारतीं |
चाहता है गर, जग-जननी प्रसन्न हों तो ,
बलि नाम पर, तू क्यों पशु है चढ़ा रहा ?
अरे मूढ़ ! करि बदनाम, तू उपासना को ,
मतिमंद ! मदिरा का , ढेर ढरका रहा ?
तामस आहार औ विचार सों, विहार करि,
नाहक में सिद्धि का, क्यों ढोंग है रचा रहा ?
स्वयं तो बिगाड़ता है , लोक-परलोक सब,
दूसरों को, पापी ! पथ नाश का दिखा रहा |
होतीं जो प्रसन्न मातु, मदिरा चढाने से तो ,
सुरासेवियों पे ही वो, तीनों लोक वारतीं |
दुराचारियों के भ्रष्ट-पंथ पे जो रीझतीं तो ,
तामसी- तमीचरों के, कुल न उजारतीं |
अरे मूढ़ ! ढूंढता है, कहाँ जगजननी को ,
होता गर ऐसा तो, सुधर्म न संवारतीं |
धारतीं न भूल के, कभी भी नरमुंड-माल ,
काली सदा बकरे का, मुंडमाल धारतीं |
पर-उपकार के सरिस नहिं महापुण्य,
नहिं महापाप पर-पीड़ा के समान है |
जीवों पर दया कर, चले सत्य पंथ नर ,
एक ही अहिंसा,कोटि-यज्ञ की ऊंचान है |
प्रेम सों रिझाइ के, लगाइ के लगन, तन-
मन-धन अर्पण, पूजा का विधान है |
माँ ने जो कहा है, सोई कहत सुरेन्द्र,बलि-
पशु की चढ़ाना, जननी का अपमान है |
रो रहे जो मातु के, अभागे लाल झोपडी में,
गले से लगाके मीत, उनको हँसाइ दे |
देश में घुसे है जो, लुटेरे बक-वेश धारी,
क्रान्ति की मशाल बारि, देश से भगाइ दे |
गर वो उजाड़ते हैं, तेरी फूस झोपडी तो,
तू भी दस-मंजिले में, आग धधकाइ दे |
बलि चाहती हैं तो, समाज के निशाचरों का,
शीश काटि-काटि आज, काली को चढाइ दे |
जगजननी सों बँधी, जब से सनेह डोर,
जगी प्रेम-ज्योति, घनघोरिनी अमां गयो |
एक रूप-मातु, हर रूप में दिखाई पड़े ,
सोई घनश्याम, सोई राम औ रमा भयो |
कामदास को मिली,प्रतीति भक्ति भावना में,
प्रेम का अथाह धन, पल में कमा गयो |
तात-मात-भ्रात सोई, मेरो सब नात सोई,
पद जलजात सोई, उर में समां गयो |
jai matadi
ReplyDeleteअद्भुत छंद का सृजन करा दिया माँ सरस्वती ने आपसे। वाह! आनंद आ गया। सुरेन्द्र को देवेन्द्र का प्रणाम स्वीकार हो।
ReplyDeleteजय हो.. जय हो.. जय हो... माता आपकी कलम को और भी शक्ति दें।
अत्यंत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteandhvishwaas ko kendra mein rakhkar ish-puja ke saatvik reeti ki pakshdhar is rachna ke liye aapko badhai.
ReplyDeleteजगजननी की पूजा के सही अर्थ को उभारती रचना.
ReplyDeleteहोतीं जो प्रसन्न मातु, मदिरा चढाने से तो,
सुरासेवियों पे ही वो, तीनों लोक वारतीं|
दुराचारियों के भ्रष्ट-पंथ पे जो रीझतीं तो,
तामसी-तमीचरों के, कुल न उजारतीं |
बहुत खूब कहा है. समझने योग्य है.
bahut hi pavan
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति|धन्यवाद|
ReplyDeleteश्रद्धा से रचित भक्तिभाव से भरी सुंदर प्रस्तुति । नवरात्रि पर्व की शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteसारे प्रेम से बोलो जय माता दी
ReplyDeleteआस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचनाएं !
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ ।
लाल रंग की चुनरी से सजा माँ का दरबार
ReplyDeleteहर्षित हुआ मन पुलकित हुआ संसार
नन्हे -नन्हे कदमो से माँ आये आपके द्वार
मुबारक हो आपको ''नवरात्री ''का त्यौहार
जय माता दी
मां की आराधना में भक्तिभाव से पूर्ण रचनाओं को पढ़कर मन को शांति प्राप्ति हुई।
ReplyDeleteआपका आभार, सुरेंद्र जी !
अद्बुत छंदबद्ध रचनाएं हैं सुरेन्द्र भाई...
ReplyDeleteजय माता की...
नवरात्रे की सादर बधाईयां
छंदों से सुसज्जित भक्ति-भाव फिर जागरण की बात भी छंदों में.
ReplyDeleteवाह !! सुरेंद्र जी ,मन को आनंद विभोर कर दिया.
भक्ति-भाव पूर्ण बेहतरीन रचना
ReplyDeleteजय माता दी
अत्यंत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...मन आनंद और श्रद्धा से भर उठा...नवरात्रि की शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगा! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteदुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
पावन प्रस्तुति.जय माता दी.
ReplyDeleteचाहता है गर, जग-जननी प्रसन्न हों तो ,
ReplyDeleteबलि नाम पर, तू क्यों पशु है चढ़ा रहा ?
अरे मूढ़ ! करि बदनाम, तू उपासना को ,
मतिमंद ! मदिरा का , ढेर ढरका रहा ?
तामस आहार औ विचार सों, विहार करि,
नाहक में सिद्धि का, क्यों ढोंग है रचा रहा ?
स्वयं तो बिगाड़ता है , लोक-परलोक सब,
दूसरों को, पापी ! पथ नाश का दिखा रहा |
झंझट साहब बेहतरीन व्यंग विनोद .
आपकी दुर्गा स्तुती मन में उतर गई! आपको नवरात्रों के अवसर पर शुभकामनाएं! जय माता दी!
ReplyDeleteआपकी दुर्गा स्तुती मन में उतर गई! आपको नवरात्रों के अवसर पर शुभकामनाएं! जय माता दी!
ReplyDeleteलाजवाब रचना |नवरात्रि की शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteदुर्गापूजा की शुभकामनायें ....माता को नमन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteआपको नवरात्रों के अवसर पर शुभकामनाएं!
शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
ReplyDeleteभावपूर्ण स्तुति |बधाई |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुंदर....माँ को नमन
ReplyDeleteWow i love you blog its awesome nice colors you must have did hard work on your blog. Keep up the good work. Thanks
ReplyDeleteIndia is a land of many festivals, known global for its traditions, rituals, fairs and festivals. A few snaps dont belong to India, there's much more to India than this...!!!.
visiit here for India
बेहतरीन माँ वंदना , प्रभावशाली रचना पढ़ कर आनंद आ गया ! आभार आपका !
ReplyDeleteVery Nice Written Sir...
ReplyDeleteHappy Durga Puja..
माँ की अर्चना में अध्बुध रचना है ... जय माता दी ....
ReplyDeleteविजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
jagat Ambe ko samparpit sundar prastuti padhkar man prafulta se bhar aaya...
ReplyDeleteSudar saarthak prastuti ke liye aabhar!
बहुत ही सुन्दर छंद माँ को समर्पित बंधु सुरेन्द्र सिंह जी आपका प्यार और उत्साह वर्धन सदैव मिलता है आभारी हूँ आपका
ReplyDeleteBehtarin devi stuti.
ReplyDeleteएक एक शब्द पर शीश झुके मेरे .....
ReplyDeleteआगे क्या कहूँ...एकदम निशब्दता की स्थिति हो गयी है...
माता से करबद्ध प्रार्थना है कि इस सत्य को वे सबके ह्रदय तक पहुंचाएं,वहां इस भाव को स्थापित करें...
पावन कृति के लिए आपका ह्रदय से आभार...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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बहुत ही उत्कृष्ट भक्तिमय रचना,बधाई!
ReplyDeleteMeanmingful and soulful creation Surendra Ji....
ReplyDeleteRegards !
सुरेंद्र जी, बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण और भक्तिमय प्रस्तुति
ReplyDeleteहै आपकी.
दिल को पवित्रता का अनुपम अहसास हुआ.
माँ को तो हमारे 'मैं' या अहंकार की बलि चाहिये..
लाजबाब प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.