Saturday, October 1, 2011

...आ जा सिंहवाहिनी

आदिशक्ति   जगजानकी   तू   है   त्रिकाल-रूप ;
सदा   तू   समाज  में , रही  है   मातु    दाहिनी | 
शक्ति  के  समेत  विष्णु, ब्रह्म, हे पुरारि !  मातु-
काली,    हे   कराल रूप !     पाप-ताप दाहिनी  |
साजि दे समाज , मातु ! कवियों की भावना भी ;
करि    दे    अभय ,   पाहिमाम !  विश्व पाहिनी |
मातु  हंसवाहिनी, तू   आ  जा  रे  बजाती  बीन ;
सिंह   पे   सवार   मातु    आ   जा  सिंहवाहिनी |

प्रेरत   ही   मधु-कैटभ  मारन,  भार   उतारन   श्रीहरि  जागे |
मातु भवानी- सुरूप विशाल, लखे   जमदूत कराल   हु  भागे |
जोग औ भोग तिहूँ पुर कै सुख, देति  जे  पुत्रन को बिन मांगे |
माई कै आँचल छोडि 'सुरेन्द्र', न हाथ पसारिहौं आन के आगे |

जाकी कृपा विधि सृष्टि रचैं, हरि पालैं, विनाश करैं त्रिपुरारी |
वाणी स्वरूप धरे जगती, शुचि बुद्धि विवेकमयी  अधिकारी |
सीता बनीं सँग राघव के, अघपुंज- दशानन  कै  कुल  तारी |
लाल बेहाल 'सुरेन्द्र', भला जननी सम को जग में हितकारी

        माँ की तामस पूजा.... अनुचित 

जगजननी   जो   पालती   हैं   जग, जीव सब ,
किसी   असहाय   का , वो   रक्त   नहीं  चाहतीं |
जिन्हें करि ध्यान,लेत साधक सुज्ञान-ज्योति ,
सुरा    ज्ञाननाशिनी   पे ,  कृपा   नहीं   वारतीं |
सत-चित-आनंद    की  ,  तेजयुत   रूप-राशि ,
तामस -  आचारियों  को,  भव    न    उबारतीं |
अरे नर ! त्यागि   दे  कुपंथ,  सत्य   पंथ   धर ,
आदिशक्ति  मातु आज,  क्रोध    में    पुकारतीं  |

चाहता है गर, जग-जननी  प्रसन्न हों तो ,
बलि नाम पर, तू  क्यों  पशु  है  चढ़ा रहा ? 
अरे  मूढ़ ! करि बदनाम, तू उपासना  को ,
मतिमंद !  मदिरा  का , ढेर   ढरका   रहा ?
तामस आहार औ विचार सों, विहार  करि,
नाहक में सिद्धि का, क्यों ढोंग है  रचा रहा ?
स्वयं तो बिगाड़ता है , लोक-परलोक सब,
दूसरों को, पापी ! पथ  नाश का दिखा रहा |

होतीं जो प्रसन्न मातु, मदिरा चढाने से तो ,
सुरासेवियों  पे  ही  वो, तीनों  लोक वारतीं |
दुराचारियों  के  भ्रष्ट-पंथ पे  जो रीझतीं तो ,
तामसी- तमीचरों   के,  कुल  न  उजारतीं |
अरे  मूढ़ !  ढूंढता  है, कहाँ जगजननी  को ,
होता  गर  ऐसा  तो, सुधर्म   न   संवारतीं |
धारतीं  न भूल के, कभी  भी नरमुंड-माल ,
काली  सदा  बकरे  का,  मुंडमाल   धारतीं |

पर-उपकार   के   सरिस  नहिं  महापुण्य, 
नहिं   महापाप  पर-पीड़ा   के   समान है |
जीवों  पर  दया कर, चले  सत्य पंथ  नर ,
एक ही अहिंसा,कोटि-यज्ञ  की ऊंचान  है |
प्रेम सों रिझाइ के, लगाइ  के लगन, तन-
मन-धन    अर्पण,  पूजा   का  विधान है |
माँ ने जो कहा है, सोई कहत सुरेन्द्र,बलि-
पशु  की  चढ़ाना, जननी  का  अपमान है |

रो रहे जो मातु के, अभागे लाल झोपडी में,
गले   से  लगाके  मीत,  उनको   हँसाइ  दे | 
देश  में  घुसे है  जो,  लुटेरे  बक-वेश धारी,
क्रान्ति की मशाल बारि, देश से  भगाइ  दे |
गर  वो  उजाड़ते  हैं, तेरी  फूस  झोपडी तो,
तू  भी  दस-मंजिले  में, आग   धधकाइ  दे |
बलि चाहती हैं तो, समाज के निशाचरों का,
शीश काटि-काटि आज, काली को चढाइ दे |

जगजननी  सों  बँधी, जब  से   सनेह  डोर,
जगी  प्रेम-ज्योति, घनघोरिनी  अमां गयो |
एक   रूप-मातु, हर  रूप   में   दिखाई  पड़े ,
सोई  घनश्याम, सोई  राम  औ  रमा  भयो |
कामदास को मिली,प्रतीति भक्ति भावना में,
प्रेम  का  अथाह   धन, पल   में  कमा  गयो |
तात-मात-भ्रात  सोई, मेरो  सब  नात सोई,
पद   जलजात   सोई,  उर   में   समां   गयो | 







41 comments:

  1. अद्भुत छंद का सृजन करा दिया माँ सरस्वती ने आपसे। वाह! आनंद आ गया। सुरेन्द्र को देवेन्द्र का प्रणाम स्वीकार हो।

    जय हो.. जय हो.. जय हो... माता आपकी कलम को और भी शक्ति दें।

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  2. अत्यंत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ..

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  3. andhvishwaas ko kendra mein rakhkar ish-puja ke saatvik reeti ki pakshdhar is rachna ke liye aapko badhai.

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  4. जगजननी की पूजा के सही अर्थ को उभारती रचना.
    होतीं जो प्रसन्न मातु, मदिरा चढाने से तो,
    सुरासेवियों पे ही वो, तीनों लोक वारतीं|
    दुराचारियों के भ्रष्ट-पंथ पे जो रीझतीं तो,
    तामसी-तमीचरों के, कुल न उजारतीं |
    बहुत खूब कहा है. समझने योग्य है.

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  5. अत्यंत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति|धन्यवाद|

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  6. श्रद्धा से रचित भक्तिभाव से भरी सुंदर प्रस्तुति । नवरात्रि पर्व की शुभकामनाएँ ।

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  7. सारे प्रेम से बोलो जय माता दी

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  8. आस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचनाएं !
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ।

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  9. लाल रंग की चुनरी से सजा माँ का दरबार

    हर्षित हुआ मन पुलकित हुआ संसार

    नन्हे -नन्हे कदमो से माँ आये आपके द्वार

    मुबारक हो आपको ''नवरात्री ''का त्यौहार

    जय माता दी

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  10. मां की आराधना में भक्तिभाव से पूर्ण रचनाओं को पढ़कर मन को शांति प्राप्ति हुई।
    आपका आभार, सुरेंद्र जी !

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  11. अद्बुत छंदबद्ध रचनाएं हैं सुरेन्द्र भाई...
    जय माता की...
    नवरात्रे की सादर बधाईयां

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  12. छंदों से सुसज्जित भक्ति-भाव फिर जागरण की बात भी छंदों में.
    वाह !! सुरेंद्र जी ,मन को आनंद विभोर कर दिया.

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  13. भक्ति-भाव पूर्ण बेहतरीन रचना
    जय माता दी

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  14. अत्यंत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...मन आनंद और श्रद्धा से भर उठा...नवरात्रि की शुभकामनाएँ...

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  15. बहुत सुन्दर लगा! बेहतरीन प्रस्तुती!
    दुर्गा पूजा पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें !
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  16. पावन प्रस्तुति.जय माता दी.

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  17. चाहता है गर, जग-जननी प्रसन्न हों तो ,
    बलि नाम पर, तू क्यों पशु है चढ़ा रहा ?
    अरे मूढ़ ! करि बदनाम, तू उपासना को ,
    मतिमंद ! मदिरा का , ढेर ढरका रहा ?
    तामस आहार औ विचार सों, विहार करि,
    नाहक में सिद्धि का, क्यों ढोंग है रचा रहा ?
    स्वयं तो बिगाड़ता है , लोक-परलोक सब,
    दूसरों को, पापी ! पथ नाश का दिखा रहा |
    झंझट साहब बेहतरीन व्यंग विनोद .

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  18. आपकी दुर्गा स्तुती मन में उतर गई! आपको नवरात्रों के अवसर पर शुभकामनाएं! जय माता दी!

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  19. आपकी दुर्गा स्तुती मन में उतर गई! आपको नवरात्रों के अवसर पर शुभकामनाएं! जय माता दी!

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  20. लाजवाब रचना |नवरात्रि की शुभकामनाएँ |

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  21. दुर्गापूजा की शुभकामनायें ....माता को नमन

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  22. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
    आपको नवरात्रों के अवसर पर शुभकामनाएं!

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  23. शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.

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  24. भावपूर्ण स्तुति |बधाई |
    आशा

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  25. बहुत सुंदर....माँ को नमन

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  26. Wow i love you blog its awesome nice colors you must have did hard work on your blog. Keep up the good work. Thanks

    India is a land of many festivals, known global for its traditions, rituals, fairs and festivals. A few snaps dont belong to India, there's much more to India than this...!!!.
    visiit here for India

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  27. बेहतरीन माँ वंदना , प्रभावशाली रचना पढ़ कर आनंद आ गया ! आभार आपका !

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  28. Very Nice Written Sir...

    Happy Durga Puja..

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  29. माँ की अर्चना में अध्बुध रचना है ... जय माता दी ....

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  30. विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
    नवीन सी. चतुर्वेदी

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  31. jagat Ambe ko samparpit sundar prastuti padhkar man prafulta se bhar aaya...
    Sudar saarthak prastuti ke liye aabhar!

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  32. बहुत ही सुन्दर छंद माँ को समर्पित बंधु सुरेन्द्र सिंह जी आपका प्यार और उत्साह वर्धन सदैव मिलता है आभारी हूँ आपका

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  33. एक एक शब्द पर शीश झुके मेरे .....

    आगे क्या कहूँ...एकदम निशब्दता की स्थिति हो गयी है...

    माता से करबद्ध प्रार्थना है कि इस सत्य को वे सबके ह्रदय तक पहुंचाएं,वहां इस भाव को स्थापित करें...

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  34. पावन कृति के लिए आपका ह्रदय से आभार...

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  35. बहुत बढ़िया लगा! शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  36. बहुत ही उत्कृष्ट भक्तिमय रचना,बधाई!

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  37. Meanmingful and soulful creation Surendra Ji....
    Regards !

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  38. सुरेंद्र जी, बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण और भक्तिमय प्रस्तुति
    है आपकी.

    दिल को पवित्रता का अनुपम अहसास हुआ.

    माँ को तो हमारे 'मैं' या अहंकार की बलि चाहिये..

    लाजबाब प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.

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