Sunday, October 16, 2011

.....हे मातृ-भू करुणाकरा !

तम- नाश करने के लिए, कुछ कर दिखाना है हमें |
आलोक  भरने  के   लिए,  दीपक  जलाना   है हमें |
हो   देश  का  कोना  कोई,  रोता   जहां   इंसान  हो |
दुर्भिक्ष  का  तांडव  हो या  घायल हुआ सम्मान हो |

निबलों पे अत्याचार हो, या  भ्रष्टता का  भार हो |
या विषधरों के अंक में, चन्दन का घर-संसार हो |
सारे  दुखों के अंत हित,  धनु-शर  उठाना  है हमें |
रोते  हुए  हर मनुज को, फिर  से  हँसाना  है हमें |

फन-धारियों ने डँस लिया,सरसब्ज़ हिन्दुस्तान को |
वे  कर  रहे  नीलाम हैं अब, मुल्क  के  सम्मान को |
घनघोर  जंगल-राज  जब , छाई  घटा  काली  यहाँ |
फिर,कौन  सा  आलोक ? कैसा पर्व ? दीवाली कहाँ ?

हम सब मनुजता की कसौटी,पर चलो खुद को कसें |
इक  बार  अपनी  सभ्यता पर, ठह-ठहा करके  हँसें |
हर वर्ष क्या  रावण  जलाने ,से कलुष मिट जाएगा ?
याकि  फिर  दीपक जलाने से, तमस  कट  जाएगा ?

बस इसलिए अनुरोध है,पहले  स्वयं  में झाँक लें |
आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
फिर  दीप  घर-घर  में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
हर  अधर  पर  मुस्कान  लाने, के लिए आगे बढ़ें |

आओ कि हम  संकल्प लें, घनघोर तम  विनशायेंगे | 
संसार  में  सुख-शांति  का, आलोक   हम   फैलायेंगे |
अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
सब कुछ  समर्पित है  तुझे,  हे  मातृ-भू  करूणाकरा |


44 comments:

  1. बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
    आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
    फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
    हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
    आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
    संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
    अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
    सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |

    ये काव्यलोक से उतरा काव्य. सच्ची देश भक्ति का तत्त्व बताती और उसका ख़ाका खींचती ओजपूर्ण कविता. बहुत बढ़िया सुरेंद्र जी.

    ReplyDelete
  2. बहुत जरूरी संकल्प ...बहुत बढ़िया रचना ! शुभकामनाएं ...

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर छंद बद्ध प्रस्तुति सुरेन्द्र भाई। बधाई। सृजन का सुंदर उदाहरण पेश कर रही है यह पोस्ट।

    ReplyDelete
  4. सुन्दर रचना, प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें .

    ReplyDelete
  5. फन-धारियों ने डँस लिया,सरसब्ज हिन्दुस्तान को ।
    वे कर रहे नीलाम हैं अब, मुल्क के सम्मान को ।
    घनघोर जंगल-राज जब , छाई घटा काली यहाँ ।
    फिर,कौन सा आलोक ? कैसा पर्व ? दीवाली कहाँ ?

    यथार्थ का सटीक चित्रण।

    ReplyDelete
  6. दीपक जलाने से तमस कटे या ना कटे..घटेगा तो है ही। हम तो जलायेंगे दीपक। जैसे आपने जो ज्ञान का जो यह दीपक जलाया है, कुछ तो तम कम करेगा।

    ReplyDelete
  7. सोते हुओं को जगाने में सक्षम अत्यंत ही ओजपूर्ण कविता.

    ReplyDelete
  8. यथार्थ समेटे ओजपूर्ण व्यंग्य विचार रचना गरीबों के प्रति सहानुभूति से संसिक्त भाव से परिमार्जित .बधाई इस श्रेष्ट प्रस्तुति के लिए .

    ReplyDelete
  9. यथार्थ समेटे ओजपूर्ण व्यंग्य विचार रचना गरीबों के प्रति सहानुभूति से संसिक्त भाव से परिमार्जित .बधाई इस श्रेष्ट प्रस्तुति के लिए .

    ReplyDelete
  10. बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
    आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
    फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
    हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |

    बहुत सुन्दर आह्वान

    ReplyDelete
  11. बहुत बढ़िया रचना ! शुभकामनाएं ...

    ReplyDelete
  12. अद्भुत छंद सुरेन्द्र भाई...
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  13. एक हुंकार भरती ओजपूर्ण रचना के लिये बधाई।

    ReplyDelete
  14. सुरेन्द्र जी-ओजस्वी ओजपूर्ण रचना प्रस्तुत करने की बधाई,मुझे अच्छी लगी......

    ReplyDelete
  15. बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
    आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
    फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
    हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |
    bahut hi badhiya

    ReplyDelete
  16. सार्थक सुन्दर आव्हान..

    ReplyDelete
  17. गजब की भावनाएं....

    ReplyDelete
  18. अत्यंत ओजपूर्ण कविता... सशक्त आव्हान... शुभकामनाये...

    ReplyDelete
  19. आपका सशक्त व प्रभावी आह्वाहन ह्रदय को झंकृत कर रहा है. आपको बधाई सुन्दर रचना के लिए..

    ReplyDelete
  20. आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
    संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
    अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
    सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |

    बहुत ही सुंदर..... सार्थक आव्हान

    ReplyDelete
  21. बहुत ही सुन्दर, सामयिक, प्रवाहपूर्ण और ओजमयी प्रस्तुति...बधाई और धन्यवाद

    ReplyDelete
  22. फन-धारियों ने डँस लिया,सरसब्ज़ हिन्दुस्तान को |
    वे कर रहे नीलाम हैं अब, मुल्क के सम्मान को |
    घनघोर जंगल-राज जब , छाई घटा काली यहाँ |
    फिर,कौन सा आलोक ? कैसा पर्व ? दीवाली कहाँ ?

    झंझट जी
    कुछ कुछ होता है ..आपकी रचना पढ़कर ,खून में उबाल सा आता है
    नि:शब्द कर दिया आपकी भावमयी रचना ने

    ReplyDelete
  23. बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
    आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
    फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
    हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें..

    सच है पहले अपनी ताकत को आंके ... फिर आगे बढ़ें ... और कर्म में जुट जाएं ... लाजवाब छंद हैं सभी ...

    ReplyDelete
  24. बहुत सुन्दर एंव सरस रचना है आपकी. ..."फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें" वाकई बहुत सुन्दर एंव लयबद्ध-आभार

    ReplyDelete
  25. आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
    संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
    अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
    सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |


    आशा जगाती और दिशा दिखाती है ये कविता!

    ReplyDelete
  26. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना! आपकी लेखनी को सलाम! ज़बरदस्त प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

    ReplyDelete
  27. बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
    आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
    फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
    हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |

    ....बहुत प्रेरक और सटीक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर रचना..बधाई

    ReplyDelete
  28. प्रिय सुरेन्द्र सिंह झंझट जी अभिवादन बहुत ही सुन्दर सन्देश ..हर पंक्ति लाजबाब ..सटीक सच कहा आप ने बिना संकल्प लिए और अपने अन्दर झांके खुद को सुधारे बिना ये गहन अँधेरा कभी भी मिटने वाला नहीं है -
    बहुत बहुत आभार इस प्यारी कृति के लिए
    शुक्ल भ्रमर 5

    बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
    आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
    फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
    हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |

    ReplyDelete
  29. आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
    संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
    अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
    सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा...

    Very inspiring and motivating creation .

    .

    ReplyDelete
  30. surendra ji mai bilkul swasth hu. bus thoda busy hu. abhi ghar bana raha hu isliye samay nahi mil pata hai. jaise hi waqt milega aaplogo ke nazdik hazir ho jaunga. aapne meri sudh li iske liye apka bahut bahut sukriya. asha hai yu hi aapka pyra or ashirwad milta rahega. dhanyad

    ReplyDelete
  31. गज़ब अभिव्यक्ति .....बेहतरीन शब्द सामर्थ्य ... !
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  32. Very nice creation Surendra Ji.. Very nice lesson and resolution... Thanks...

    ReplyDelete
  33. बस इसलिए अनुरोध है,पहले स्वयं में झाँक लें |
    आगे बढ़ें,फिर इस अँधेरे, की भी ताकत आँक लें |
    फिर दीप घर-घर में जलाने, के लिए आगे बढ़ें |
    हर अधर पर मुस्कान लाने, के लिए आगे बढ़ें |

    वाह! बहुत सुन्दर भाव हैं,जो मन को झकजोरते हैं.

    स्वयं में झाँकना हमारा प्रथम कर्तव्य है.

    मेरे ब्लॉग पर 'नाम जप' के बारे में अपने अमूल्य
    विचार और अनुभव प्रस्तुत कर अनुग्रहित कीजियेगा.

    ReplyDelete
  34. आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
    संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
    अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
    सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |

    बहुत सुंदर संकल्‍प !!

    ReplyDelete
  35. बहुत खूब.
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..

    ReplyDelete
  36. sandeshprad aur vichaarpurn rachna...

    हर वर्ष क्या रावण जलाने ,से कलुष मिट जाएगा ?
    याकि फिर दीपक जलाने से, तमस कट जाएगा ?

    shubhkaamnaayen.

    ReplyDelete
  37. आज की आवश्यकता यही है। दीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  38. आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
    संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे
    khoobsoorat sandesh.......

    ReplyDelete
  39. आओ कि हम संकल्प लें, घनघोर तम विनशायेंगे |
    संसार में सुख-शांति का, आलोक हम फैलायेंगे |
    अपना वतन,अपना चमन,अपना गगन,अपनी धरा |
    सब कुछ समर्पित है तुझे, हे मातृ-भू करूणाकरा |
    बहुत सुन्दर !!
    जी हाँ और इसके लिए जरुरी है एक विचार का होना
    आपकी ख्यालात से पूरी तरह सहमत
    मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !

    ReplyDelete
  40. बहुत ही सकारात्मक व देशप्रेम से ओत-प्रोत कविता,जय हिंद

    ReplyDelete