Friday, February 10, 2012

अलौकिक सुन्दरी

संगमरमर की   तराशी मूर्ति  हो तुम ,
या   अजन्ता की   कोई जीवित   कला ।
याकि हो अभिशप्त उतरी मृत्युभू पर ,
देवबाला    हो    कि .........कोई  अप्सरा ।

शांत यमुना सी    सुकोमल सुमन सी ,
श्याम घन सम केश सुन्दर कामिनी ।
या कि.......... भादौं की अँधेरी रात में ,
चीर घन   चमकी हो   चंचल दामिनी ।

स्वर्ण   सी    काया   महक चन्दन  उठे ,
या   सुमन   की  मधुर मोहक गंध हो ।
या  मनुज-स्वप्नों   की  अद्भुत सुन्दरी ,
या किसी कवि का सरस मधु छंद हो ।  

24 comments:

  1. सुन्दर, सुन्दर....

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. अच्छी कल्पना है "सुरेन्द्र जी" सुन्दरता की .....लेकिन इन सुन्दरियों के "झंझट" में मत पड़ना ...!

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  4. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति शब्द संयोजन कमाल का बधाई

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  5. सुन्दर कल्पना से भी सुन्दर...

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  6. वाह वाह, कमाल की प्रस्तुति

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  7. भाई केवल राम जी की सलाह पर जरूर गौर कीजियेगा,झंझट भाई.

    आपकी प्रस्तुति श्रृन्गार रस में पगी अच्छी लगी.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

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  8. श्रृंगार का ऐसा सरस चित्रण अब कम ही देखने को मिलता है. बहुत ही सुंदर.

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  9. वाह! सुन्दर...
    बहुत बधाई...

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  10. अच्छी लगी कविता

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  11. " या किसी कवि का सरस मधु छंद हो " । - आखिरी लाइन बेहद रोचक ! हम नहीं तो वो सुन्दरता नहीं ! बधाई जी !

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  12. बहुत सुन्दर ...

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  13. Visit my new blog post @
    http://rahulpoems.blogspot.in/2012/02/blog-post.html

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  14. सुन्दर रूपसी चित्रण ...

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  15. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  16. कमाल की प्रस्तुति....
    सुंदर प्रस्तुति , स:परिवार होली की हार्दिक शुभकानाएं.......

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  17. बहुत अच्छी प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  18. कमाल की रचना ...
    रंगोत्सव पर आपको शुभकामनायें !

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  19. श्रृंगार रस से परिपूर्ण सरस प्रस्तुति....

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