Thursday, June 30, 2011

साँप आस्तीन के, कंठ चूमने लगे

बाग़   सूखने   लगे | 
झाड़   झूमने   लगे | 

साँप   आस्तीन  के ,
कंठ    चूमने    लगे |

क्रान्ति का घोष था ,
लोग   ऊँघने    लगे |

हम  तो  आदर्श को ,
सिर्फ   पूजने   लगे |

देखिये  तो !  मधुप-
स्वर्ण   सूंघने   लगे |

उसने सच कह दिया ,
लोग    ढूँढने     लगे |

गाँव     के     पहरुए ,
गाँव     लूटने    लगे |

हम  स्वयं  का  पता ,
खुद   से  पूंछने  लगे |

स्वार्थ  के  सिन्धु  में ,
हंस      डूबने     लगे |

शूल   ने    छू   लिया ,
ज़ख्म   पूरने     लगे  | 

49 comments:

  1. सुरेन्द्र जी
    वाह..क्या खूब...बहुत लाजवाब

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  2. स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे |
    ...सच्चाई बता दी......जबर्दस्त

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  3. करीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ

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  4. स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे |

    शूल ने छू लिया ,
    ज़ख्म पूरने लगे

    वाह धारा प्रावाह ...और बेहद सटीक.

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  5. बहुत सुन्दर रचना

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  6. बेशक अच्छा लिखते हैं आप

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  7. स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे |

    शूल ने छू लिया ,
    ज़ख्म पूरने लगे

    बहुत अच्छी रचना....... सच कहती हुई.......

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  8. उसने सच कह दिया,
    लोग ढूँढने लगे|

    गाँव के पहरुए,
    गाँव लूटने लगे|
    बहुत सुंदर रचना बन पड़ी है.

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  9. 'हम स्वयं का पता ,
    खुद से पूंछने लगे'

    हालात का अच्छा चित्रण, भई वाह!

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  10. क्रान्ति का घोष था ,
    लोग ऊँघने लगे

    उसने सच कह दिया ,
    लोग ढूँढने लगे

    स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे

    सुभान अल्लाह...छोटी बहार में कमाल की ग़ज़ल हर शेर बेहतरीन है...दाद कबूल करें.

    नीरज

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  11. हम स्वयं का पता ,
    खुद से पूंछने लगे |

    स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे |
    bahut hi badhiyaa

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  12. गाँव के पहरुए ,
    गाँव लूटने लगे |

    उम्दा अभिव्यक्ति.....

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  13. लाजवाब....
    बेहतरीन रचना सुरेन्द्र भाई....
    सादर...

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  14. आज के हालत की सच्चाई बयान कर दी
    धन्यवाद

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  15. आपके दिए झटकों में
    हम तो झुलने लगे

    इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए
    बहुत खूब , बहुत खूब कहने लगे.

    एक पोस्ट लिखी कर अब
    आपका इंतजार करने लगे.

    जरा कंधा थपथपा दीजियेगा झंझट भाई.

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  16. स्वार्थ के सिंधु में
    हँस डूबने लगे ... सरीक कहा है ..अच्छी प्रस्तुति

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  17. हम स्वयं का पता,
    ख़ुद से पूछने लगे।

    छोटी बहर में बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। बधाई।

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  18. सच कहा कि निश्चित लोग खोजने लगेंगे

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  19. उसने सच कह दिया ,
    लोग ढूँढने लगे |
    गाँव के पहरुए ,
    गाँव लूटने लगे |

    छोटे बहर की उम्दा ग़ज़ल....

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  20. हम तो आदर्श को ,
    सिर्फ पूजने लगे |

    waah!!!...kya khub farmaya!!!!

    hum sirf aadarsho ko pujna aur unki charcha karna jaante hain....aadarshon ko apnana nahi.....

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  21. एक एक लफ्ज सच है आज के परिप्रेक्ष्य मे।

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  22. gaanv ke pehruve gaanv lootne lage .

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  23. गाँव के पहरुवे ,गाँव लूटने लगे .छोटी बहर की सार्थक ग़ज़ल ,जीवन का प्रतिबिम्ब उभारती ,विद्रूपों को बे नकाब करती .बधाई .

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  24. क्रान्ति का घोष था ,
    लोग ऊँघने लगे |

    छोटी बहर में गई गई उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई बधाई स्वीकार करें सुरेन्द्र भाई|

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  25. हम स्वयं का पता ,
    खुद से पूंछने लगे |

    hello Surendra ji
    aapki kavita puri bahot achchi hai par ye do line mind-blowing hain.........Surendre ji aapbhi ek baar mere blog ka anusaran kare.......meri blog site hai.......www.shikhakhare.blogspot.com

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  26. आपके झटके के सिन्धु में सब डूबने लगे.बहुत बढ़िया.

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  27. स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे | बहुत ही सुन्दर और चुटीली कविता !

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  28. सुरेन्द्र जी घोर कलयुग आ गया -सब उल्टा पुल्टा -हंस चुनेगा दाना पानी कौवा मोती खायेगा
    देखिये तो ! मधुप-
    स्वर्ण सूंघने लगे |

    उसने सच कह दिया ,
    लोग ढूँढने लगे |

    गाँव के पहरुए ,
    गाँव लूटने लगे |

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  29. bahut umda kavita...regrds era

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  30. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
    बहुत सुन्दर रचना...

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  31. देखिये तो ! मधुप-
    स्वर्ण सूंघने लगे | सुंदर पंक्तियाँ...बधाई.
    द्वार पाल द्वार पर
    हाय ऊँघने लगे.
    कोयलें स्तब्ध हैं
    काग कूकने लगे.
    शब्द-भेदी बाण भी
    लक्ष्य चूकने लगे.

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  32. छोटी बहर की बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन ग़ज़ल.बधाई आपको.

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  33. क्रान्ति का घोष था ,
    लोग ऊँघने लगे

    उसने सच कह दिया ,
    लोग ढूँढने लगे

    स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे

    गांव के पहरुये
    गाँव लूटने लगे
    सभी शेर इतने अच्छे हैं कि समझ नही पा रही किसे किस की तारीफ करूँ। बेहतरीन गज़ल के लिये बधाई।

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  34. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त रचना! बधाई!

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  35. स्वार्थ के सिंधु में
    हँस डूबने लगे sachchayee ko kholkar rakh di aapne.....bahut achcha kiya.

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  36. बहुत खूबसूरत रचना, सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार.

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  37. शब्द थोड़े,भाव पूरे।

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  38. बहुत लाजवाब ... सार्थक ... सटीक ... कुछ शब्दों में लंबी बात ... गहरी बात ...

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  39. वाह....छोटी बहर की क्या सुदर गीतमयी गज़ल है.....अति सुन्दर....

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  40. हम स्वयं का पता ,
    खुद से पूछने लगे ।

    बहुत बढ़िया शेर....वाह।
    छोटी बहर की यह ग़ज़ल अच्छी लगी, शिल्प और भाव, दोनों बेहतरीन।

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  41. स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे |

    शूल ने छू लिया ,
    ज़ख्म पूरने लगे
    बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

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  42. हम स्वयं का पता ,
    खुद से पूछने लगे

    वाह,
    आभार,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  43. गाँव के पहरुए ,
    गाँव लूटने लगे |

    हम स्वयं का पता ,
    खुद से पूंछने लगे |

    बहुत ही सटीक और उम्दा लिखा है...

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  44. हम स्वयं का पता ,
    खुद से पूंछने लगे |

    स्वार्थ के सिन्धु में ,
    हंस डूबने लगे

    मेरे प्रिय भाई सुरेन्द्र सिंह जी ...जब भी आप लिखते हैं मौलिकता होती है उसमे ..जिस विधा में भी लिखें छंद , ग़ज़ल, रुबाई, क्षणिका, सब कुछ कभी आपने सामाजिक दायित्वों से नही डिगते ..
    बधाई हो भैया जी !!

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  45. छोटे बहर की शानदार गज़ल के लिए बहुत बधाई।
    यह शेर तो अनूठा मुहावरा गढ़ता है...
    देखिये तो ! मधुप-
    स्वर्ण सूंघने लगे |
    ...वाह!

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  46. usne sach keh diya,log dhondhane lage.Bhai ji apki rachna kuch logon par prahar karti hai. is samay isi rachana ki jaroorat hai. JAI MATAJI.

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  47. hum swyam ka pata khud se puchne laga.....bahut khub......
    jai hind jai bharat

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