प्रेम भवन की ड्योढ़ी पर ही, काट के अपना शीश धरे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
डरता कहाँ मरण के भय से
कोई प्यार निभाये ऐसे
जल जाना ही जिसकी परिणति
नेह पतिंगे का ज्यों लौ से
प्रेम यज्ञ की ज्वाला में , बन हव्य ,स्वयं को हवन करे तो ||कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
मछली जल में ही जीती है
सदा प्रेम अमृत पीती है
पर विछोह होते ही पल में
प्राण निछावर कर देती है
कोई देवता के चरणों में , अर्पित जीवन सुमन करे तो ||कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
प्रीति चन्द्र से करे चकोरी
निरखे सदा प्रेम रस बोरी
जीवन इंतज़ार में बीते
मगर न टूटे आश की डोरी
अगम,अलभ्य रूप से ऐसी , चाहत की इक डोर जुड़े तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
त्याग और बलिदान का पथ है,
प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
bahut hi sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना... सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबेहतरीन , बधाई।
ReplyDeleteभाव और छंद को सुंदरता से निभाया गया है....रचना अति सुंदर बन पड़ी है.
ReplyDeleteजहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
ReplyDeleteकाम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
त्याग और बलिदान का पथ है,
प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .बधाई
सहज, सरल शब्दों के प्रयोग से सुंदर भावाभिव्यक्ति। हमेशा की तरह एक बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या ..।
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या भावाभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना सुरेन्द्र भाई..... आनंद आ गया...
ReplyDeleteसादर....
सुंदर शब्दों के साथ प्रेम को अभिवयक्त किया आपने.. बहुत ही खुबसूरत...
ReplyDeleteऐसी प्रीति से श्याम घनश्याम ही मिल जायें वैसे ऐसी प्रीति पाने के लिये नही समर्पण करने के लिये होती है
ReplyDeleteअति सुंदर रचना
ReplyDeleteमन प्रसन्न हो गया इस रचना को पढ़ कर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
bahut hi badhiya rachna....
ReplyDeletejai hind jai bharat
खुबसूरत रचना सुरेन्द्र जी.....बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों को संजोये अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteऐसी ही प्रीत अमर होती है। बेहतरीन भाव।
ReplyDeleteजहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
ReplyDeleteकाम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
त्याग और बलिदान का पथ है,
प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो....
सुरेन्द्र सिंह जी,
मन को उद्वेलित करने वाली इस रचना को नमन.....आपकी लेखनी को नमन.
प्रीति चन्द्र से करे चकोरी
ReplyDeleteनिरखे सदा प्रेम रस बोरी
जीवन इंतज़ार में बीते
मगर न टूटे आश की डोरी
निर्झर की तरह कल-कल करती सुन्दर रचना....
झटके तो जोरदार है जनाब ..
ReplyDeleteजहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
bahut hi badhiya rachna....
ReplyDeletejo baat dil ko chubh jaye use fatke kahate hai
aur jo rachana dil me sama jaye use "झंझट के झटके "
kahate hai.
मन गदगद हो गया इतनी सुन्दर रचना को पढकर.बहुत ही सुन्दर लिखा है. हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeletebeautiful poem
ReplyDelete" बन हव्य " शब्द क्या जादू कर सकते हैं, उस का बेहतरीन उदाहरण दे रहे हैं ये दो शब्द|
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई मित्र एक और सुंदर प्रस्तुति पढ़वाने के लिए|
कोई ऐसी प्रीति करे तो
ReplyDeleteप्रेम भवन की ड्योढ़ी पर ही, काट के अपना शीश धरे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
भाई जी बिना अपना शीश (अहम् को) को काटे प्रीत हो ही नही सकती फिर तो बस चाहत ही होती है जिसे आजकल लोग प्रेम समझ बैठते हैं...
बहुत सुन्दर भाव भाई जी !
जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
ReplyDeleteकाम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
त्याग और बलिदान का पथ है,
प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
बहुत सुन्दर भक्ति भाव का पोषण करती आपकी प्रस्तुति के लिए दिल से आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,आपसे भक्ति की प्रेरणा लेकर नई पोस्ट जारी की है.
bahut sundar |
ReplyDeletenai rachna ka intjar hai
कोई ऐसी प्रीति करे तो ................बहुत बहुत खूब सूरत अभिव्यक्ति इस मन की
ReplyDeleteजहाँ दर्द का रिश्ता हो मन से
जहाँ सिर्फ आँखों की बोली
पढ़ी जाये ...
कुछ बोलने से पहले ही
वो खुद से सब समझ
जाये ....(अनु )
मछली जल में ही जीती है
ReplyDeleteसदा प्रेम अमृत पीती है
पर विछोह होते ही पल में
प्राण निछावर कर देती है
अहा क्या बात कही है! बहुत सुंदर।
सुकोमल हिन्दी शब्द पुष्पों की सुरभित माला.बधाई.
ReplyDeleteकोई ऐसी प्रीति करे तो ....
ReplyDeleteतो ....?????
अगम,अलभ्य रूप से ऐसी , चाहत की इक डोर जुड़े तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
ReplyDeleteAwesome !
You have given great heights to love by this creation .
.
जी बहुत अच्छी प्रस्तुति .बहुत खूब .भाव अर्थ और बुनावट में बहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeleteमन आत्मा रससिक्त हो जाती है आपकी कृतियाँ पढ़कर...
ReplyDeleteआह्लाद की अभिव्यक्ति किन शब्दों में करूँ,जो इस रसमय रचना को पढ़कर हुई है,सचमुच बिलकुल भी समझ नहीं पड़ रहा...
आपकी लेखनी को नमन !!!
खुबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना... सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसरक-सरक के निसरती, निसर निसोत निवात |
ReplyDeleteचर्चा-मंच पे आ जमी, पिछली बीती रात ||
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
सुमधुर स्मृतियां !
जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है ?
काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
बहुत सुंदर सौम्य प्रेम गीत लिखा है ...
डरता कहाँ मरण के भय से
कोई प्यार निभाये ऐसे
जल जाना ही जिसकी परिणति
नेह पतिंगे का ज्यों लौ से
प्रेम यज्ञ की ज्वाला में , बन हव्य ,स्वयं को हवन करे तो ...
कोई ऐसी प्रीति करे तो ...
आपकी लेखनी भी निरंतर कमाल करती रहती है ...
एक श्रेष्ठ रचनाकार के सब गुण हैं आपमें ...
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
कोई ऐसी प्रीति करे तो...bahut sundar rachna
ReplyDeleteप्रेम भवन की ड्योढ़ी पर ही, काट के अपना शीश धरे तो ........
ReplyDeleteसुंदर भावमय प्रस्तुती हेतु आभार और शुभकामनाएं .
http://sb.samwaad.com/
ReplyDeleteyr next satire is awaited .
सुरेन्द्र सिंह झंझट जी प्यारी रचना सुन्दर मूल भाव और सन्देश
ReplyDelete--ढेर सारी शुभ कामनाये -सुन्दर शब्द संयोजन
शुक्ल भ्रमर ५
जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
त्याग और बलिदान का पथ है,
प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
बहुत ही सुन्दर कविता भाई सुरेन्द्र जी और लगातार उत्साहवर्धन के लिए आभार |
ReplyDeleteवाह! सुंदर गीत.
ReplyDeleteजहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
ReplyDeleteकाम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
त्याग और बलिदान का पथ है
प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
बेहद खूबसूरती से पिरोई दिल को छू जाने वाली रचना.आभार.
सादर,
डोरोथी.
प्रीति चन्द्र से करे चकोरी
ReplyDeleteनिरखे सदा प्रेम रस बोरी
जीवन इंतज़ार में बीते
मगर न टूटे आश की डोरी
प्रेम की महिमा का गुणगान करता एक श्रेष्ठ गीत।
गीत के भाव-रस से मन भीग गया।
मछली जल में ही जीती है
ReplyDeleteसदा प्रेम अमृत पीती है
पर विछोह होते ही पल में
प्राण निछावर कर देती है
अगर इंसानों एँ भी ये निश्छल प्रीत आ जाए तो दुनिया का नक्शा ही बदल जाए ... बहुत लाजवाब लिखा है ...
बहुत ही सुन्दर,शानदार और उम्दा प्रस्तुती
ReplyDeletekeep writing..!!
ReplyDeleteआप सभी रचनाकारों का मेरे ब्लॉग पर आने और अपनी अनमोल टिप्पड़ियां देने का बहुत-बहुत हार्दिक आभार |
ReplyDeleteविश्वास है कि इसी तरह स्नेह बनाए रखेंगे |
पुनः हार्दिक धन्यवाद ....
जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
ReplyDeleteकाम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती, बधाई !