Monday, July 18, 2011

कोई ऐसी प्रीति करे तो

                 कोई ऐसी प्रीति करे तो 
प्रेम भवन की ड्योढ़ी पर ही, काट के अपना शीश धरे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
      
               डरता   कहाँ   मरण  के  भय से 
               कोई     प्यार    निभाये      ऐसे 
               जल जाना ही जिसकी परिणति 
               नेह   पतिंगे   का   ज्यों   लौ  से 
प्रेम यज्ञ  की ज्वाला में , बन हव्य ,स्वयं को हवन करे तो ||कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

               मछली जल में ही जीती है 
               सदा   प्रेम अमृत  पीती  है 
               पर विछोह होते ही पल में 
               प्राण निछावर  कर देती है 
कोई देवता के चरणों में , अर्पित जीवन सुमन करे तो ||कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

               प्रीति  चन्द्र से  करे चकोरी 
               निरखे सदा  प्रेम रस  बोरी 
               जीवन   इंतज़ार  में   बीते 
               मगर न टूटे आश की डोरी 
अगम,अलभ्य रूप से ऐसी , चाहत की इक डोर जुड़े तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

               जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
               काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
               त्याग और बलिदान का पथ है, 
               प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
               

54 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना... सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  2. भाव और छंद को सुंदरता से निभाया गया है....रचना अति सुंदर बन पड़ी है.

    ReplyDelete
  3. जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
    काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
    त्याग और बलिदान का पथ है,
    प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
    प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति .बधाई

    ReplyDelete
  4. सहज, सरल शब्दों के प्रयोग से सुंदर भावाभिव्यक्ति। हमेशा की तरह एक बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  6. बहुत ही बढि़या ..।

    ReplyDelete
  7. बहुत ही बढि़या भावाभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  8. बहुत खुबसूरत रचना सुरेन्द्र भाई..... आनंद आ गया...
    सादर....

    ReplyDelete
  9. सुंदर शब्दों के साथ प्रेम को अभिवयक्त किया आपने.. बहुत ही खुबसूरत...

    ReplyDelete
  10. ऐसी प्रीति से श्याम घनश्याम ही मिल जायें वैसे ऐसी प्रीति पाने के लिये नही समर्पण करने के लिये होती है

    ReplyDelete
  11. मन प्रसन्न हो गया इस रचना को पढ़ कर
    बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  12. bahut hi badhiya rachna....
    jai hind jai bharat

    ReplyDelete
  13. खुबसूरत रचना सुरेन्द्र जी.....बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर भावों को संजोये अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  15. ऐसी ही प्रीत अमर होती है। बेहतरीन भाव।

    ReplyDelete
  16. जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
    काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
    त्याग और बलिदान का पथ है,
    प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
    प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो....

    सुरेन्द्र सिंह जी,
    मन को उद्वेलित करने वाली इस रचना को नमन.....आपकी लेखनी को नमन.

    ReplyDelete
  17. प्रीति चन्द्र से करे चकोरी
    निरखे सदा प्रेम रस बोरी
    जीवन इंतज़ार में बीते
    मगर न टूटे आश की डोरी

    निर्झर की तरह कल-कल करती सुन्दर रचना....

    ReplyDelete
  18. झटके तो जोरदार है जनाब ..

    जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?

    ReplyDelete
  19. bahut hi badhiya rachna....
    jo baat dil ko chubh jaye use fatke kahate hai

    aur jo rachana dil me sama jaye use "झंझट के झटके "
    kahate hai.

    ReplyDelete
  20. मन गदगद हो गया इतनी सुन्दर रचना को पढकर.बहुत ही सुन्दर लिखा है. हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  21. " बन हव्य " शब्द क्या जादू कर सकते हैं, उस का बेहतरीन उदाहरण दे रहे हैं ये दो शब्द|
    बहुत बहुत बधाई मित्र एक और सुंदर प्रस्तुति पढ़वाने के लिए|

    ReplyDelete
  22. कोई ऐसी प्रीति करे तो
    प्रेम भवन की ड्योढ़ी पर ही, काट के अपना शीश धरे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||
    भाई जी बिना अपना शीश (अहम् को) को काटे प्रीत हो ही नही सकती फिर तो बस चाहत ही होती है जिसे आजकल लोग प्रेम समझ बैठते हैं...
    बहुत सुन्दर भाव भाई जी !

    ReplyDelete
  23. जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
    काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
    त्याग और बलिदान का पथ है,
    प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
    प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

    बहुत सुन्दर भक्ति भाव का पोषण करती आपकी प्रस्तुति के लिए दिल से आभार.
    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,आपसे भक्ति की प्रेरणा लेकर नई पोस्ट जारी की है.

    ReplyDelete
  24. bahut sundar |

    nai rachna ka intjar hai

    ReplyDelete
  25. कोई ऐसी प्रीति करे तो ................बहुत बहुत खूब सूरत अभिव्यक्ति इस मन की


    जहाँ दर्द का रिश्ता हो मन से

    जहाँ सिर्फ आँखों की बोली

    पढ़ी जाये ...

    कुछ बोलने से पहले ही

    वो खुद से सब समझ

    जाये ....(अनु )

    ReplyDelete
  26. मछली जल में ही जीती है
    सदा प्रेम अमृत पीती है
    पर विछोह होते ही पल में
    प्राण निछावर कर देती है
    अहा क्या बात कही है! बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
  27. सुकोमल हिन्दी शब्द पुष्पों की सुरभित माला.बधाई.

    ReplyDelete
  28. कोई ऐसी प्रीति करे तो ....

    तो ....?????

    ReplyDelete
  29. अगम,अलभ्य रूप से ऐसी , चाहत की इक डोर जुड़े तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

    Awesome !

    You have given great heights to love by this creation .

    .

    ReplyDelete
  30. जी बहुत अच्छी प्रस्तुति .बहुत खूब .भाव अर्थ और बुनावट में बहुत सुन्दर रचना .

    ReplyDelete
  31. मन आत्मा रससिक्त हो जाती है आपकी कृतियाँ पढ़कर...

    आह्लाद की अभिव्यक्ति किन शब्दों में करूँ,जो इस रसमय रचना को पढ़कर हुई है,सचमुच बिलकुल भी समझ नहीं पड़ रहा...

    आपकी लेखनी को नमन !!!

    ReplyDelete
  32. बहुत सुन्दर रचना... सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  33. सरक-सरक के निसरती, निसर निसोत निवात |
    चर्चा-मंच पे आ जमी, पिछली बीती रात ||

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  34. बहुत सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  35. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  36. प्रिय बंधुवर सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी
    सस्नेहाभिवादन !
    सुमधुर स्मृतियां !

    जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है ?
    काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?

    बहुत सुंदर सौम्य प्रेम गीत लिखा है ...
    डरता कहाँ मरण के भय से
    कोई प्यार निभाये ऐसे
    जल जाना ही जिसकी परिणति
    नेह पतिंगे का ज्यों लौ से
    प्रेम यज्ञ की ज्वाला में , बन हव्य ,स्वयं को हवन करे तो ...
    कोई ऐसी प्रीति करे तो ...


    आपकी लेखनी भी निरंतर कमाल करती रहती है ...
    एक श्रेष्ठ रचनाकार के सब गुण हैं आपमें ...
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  37. कोई ऐसी प्रीति करे तो...bahut sundar rachna

    ReplyDelete
  38. प्रेम भवन की ड्योढ़ी पर ही, काट के अपना शीश धरे तो ........
    सुंदर भावमय प्रस्तुती हेतु आभार और शुभकामनाएं .

    ReplyDelete
  39. http://sb.samwaad.com/
    yr next satire is awaited .

    ReplyDelete
  40. सुरेन्द्र सिंह झंझट जी प्यारी रचना सुन्दर मूल भाव और सन्देश
    --ढेर सारी शुभ कामनाये -सुन्दर शब्द संयोजन
    शुक्ल भ्रमर ५
    जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
    काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
    त्याग और बलिदान का पथ है,
    प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?

    ReplyDelete
  41. बहुत ही सुन्दर कविता भाई सुरेन्द्र जी और लगातार उत्साहवर्धन के लिए आभार |

    ReplyDelete
  42. जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
    काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
    त्याग और बलिदान का पथ है
    प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?
    प्रेम दिवानी मीरा सा, हँस-हँस कोई विषपान करे तो || कोई ऐसी प्रीति करे तो ||

    बेहद खूबसूरती से पिरोई दिल को छू जाने वाली रचना.आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  43. प्रीति चन्द्र से करे चकोरी
    निरखे सदा प्रेम रस बोरी
    जीवन इंतज़ार में बीते
    मगर न टूटे आश की डोरी

    प्रेम की महिमा का गुणगान करता एक श्रेष्ठ गीत।
    गीत के भाव-रस से मन भीग गया।

    ReplyDelete
  44. मछली जल में ही जीती है
    सदा प्रेम अमृत पीती है
    पर विछोह होते ही पल में
    प्राण निछावर कर देती है

    अगर इंसानों एँ भी ये निश्छल प्रीत आ जाए तो दुनिया का नक्शा ही बदल जाए ... बहुत लाजवाब लिखा है ...

    ReplyDelete
  45. बहुत ही सुन्दर,शानदार और उम्दा प्रस्तुती

    ReplyDelete
  46. आप सभी रचनाकारों का मेरे ब्लॉग पर आने और अपनी अनमोल टिप्पड़ियां देने का बहुत-बहुत हार्दिक आभार |
    विश्वास है कि इसी तरह स्नेह बनाए रखेंगे |
    पुनः हार्दिक धन्यवाद ....

    ReplyDelete
  47. जहाँ वासना.... ..प्यार कहाँ है?
    काम जहाँ... निष्काम कहाँ है ?
    प्रेम यहाँ..........आराम कहाँ है ?

    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती, बधाई !

    ReplyDelete