( १ मई --मजदूर दिवस पर ......देश के मेहनतकशों के नाम )
क्या कुछ तेरे पास नहीं है ?
अरे जरा अपनी ताक़त को
जान और पहचान तो भाई !
तेरे दो मज़बूत हाथ हैं
हाथों में हल है कुदाल है
हँसिया, खुरपा और फावड़ा
जिनसे तू बंज़र धरती भी
चीर चीर जीवन उपजाता
तेरे दो मज़बूत हाथ हैं
हाथों में दमदार हथौड़ा
याकि बंसुला और रुखानी
मिलों और कारखानों की
बड़ी दैत्याकार मशीनें
जिन्हें चलाकर
लहू से अपने
देश की तू किस्मत लिखता है
तुझमे तो मेहनत का बल है
साहस का पहाड़ जैसा तू
तुझ जैसा कर्तव्यपरायण
भला विश्व में और कौन है ?
फिर भी तू कितना सहता है !
बना है क्यों भाड़े का टट्टू
लोगों के हाथों का लट्टू
बिलकुल एक भिखारी जैसा
भाग्य और भगवान भरोसे..
क्यों ऐसा जीवन जीता है ?
मात्र दया पर जिंदा रहना
सीख लिया क्यों आखिर तूने ?
आज न कोई मालिक नौकर
सब के सब इंसान बराबर
स्वाभिमान से जिंदा रहना
और शान से जीवन जीना
अपने अधिकारों की खातिर
लड़ना पड़े तो खुलकर लड़ना
यही सत्य है ...और नहीं कुछ
हाथों में जलती मशाल ले
अपने जीवन का अँधियारा
तुझको ही है आज मिटाना..
तेरा सूरज क़ैद किये जो
मुट्ठी में हैं बंद किये जो
जोर लगाके खोल दे मुट्ठी
तोड़ दे हाथ मरोड़ दे मुट्ठी
जो तुझको भरमाते आये
सपनों में भटकाते आये
तेरा चैन चुराते आये
उल्टे पाठ पढ़ाते आये
कभी तेरा सम्मान न समझा
कभी तुम्हें इंसान न समझा
नोच दे इनका आज मुखौटा
असली चेहरा दिखा दे सबको
भलीभाँति ये बता दे इनको...
अब हम और नहीं रोयेंगे
अब हम और नहीं सोयेंगे
जाग उठे हम-जगी ज़वानी
जागी खेती जगी किसानी
खेत ज़गे खलिहान जगे हैं
धरती की संतान जगे हैं
हम भी हैं इंसान-जगे हैं
शहरों के फुटपाथ जगे हैं
झोपड़पट्टे साथ जगे हैं
आज करोड़ों हाथ जगे हैं
मिलों के गर्द गुबार ज़गे हैं
हम धरती के भार ज़गे हैं
गद्दारों के काल ज़गे है
सोकर सालोंसाल, ज़गे हैं
अपना हक लेने आये हैं
हम अपना सूरज लाये हैं
अब हमको भरमाना छोड़ो
अब हमको भटकाना छोड़ो
जाति-धरम के दाँव चलाकर
आपस में लड़वाना छोड़ो..
भागो-हटो हवाला वालों
रोज़बरोज़ घोटाला वालों
शांति और सुख हरने वालों
हरियाली को चरने वालों
सिर्फ तिजोरी भरने वालों
देश का सौदा करने वालों
देश को अब नीलाम करो मत
और इसे बदनाम करो मत
लोकतंत्र की चीर हरो मत
देश का बंटाधार करो मत
हमें छलावा नहीं चाहिए
हमें भुलावा नहीं चाहिए
हमको अपना अमन चाहिए
हमको अपना वतन चाहिए
हमको अपनी धरती प्यारी
हमको अपना गगन चाहिए
अपना हक लेने आये हैं ...
हम अपना सूरज लाये हैं..
अपना हक लेने आये हैं ...
ReplyDeleteहम अपना सूरज लाये हैं
bahut achchha likha hai
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहमें छलावा नहीं चाहिए
ReplyDeleteहमें भुलावा नहीं चाहिए
हमको अपना अमन चाहिए
हमको अपना वतन चाहिए
हमको अपनी धरती प्यारी
हमको अपना गगन चाहिए
क्रान्तिकारी भावों से भरी प्रभावशाली रचना........
देश को अब नीलाम करो मत
ReplyDeleteऔर इसे बदनाम करो मत
लोकतंत्र की चीर हरो मत
देश का बंटाधार करो मत
desh ka bntaadhar karne wale ye neta ab jaag jaao?
bahut achchhi kvita hae .
बहुत सुन्दर आह्वान किया है……………जागृत करती रचना के लिये बधाई।
ReplyDeleteतेरा सूरज क़ैद किये जो
ReplyDeleteमुट्ठी में हैं बंद किये जो
जोर लगाके खोल दे मुट्ठी
तोड़ दे हाथ मरोड़ दे मुट्ठी
apne aakash ka vistar yahin se shuru hai, aage badho- apni takdir badal do saath mein unki bhi, jo tumhare suraj ko band kiye baithe hain
शहरों के फुटपाथ जगे हैं
ReplyDeleteझोपड़पट्टे साथ जगे हैं
आज करोड़ों हाथ जगे हैं
मिलों के गर्द गुबार ज़गे हैं
हम धरती के भार ज़गे हैं
गद्दारों के काल ज़गे है
सोकर सालोंसाल, ज़गे हैं
अपना हक लेने आये हैं
हम अपना सूरज लाये हैं ....
भैया जी आपकी रचना धर्मिता को प्रणाम है.....पता नही आपको कब आपका सही स्थान मिल पायेगा.
भाई सुरेन्द्र जी मई दिवस पर एक बेहतरीन कविता मजदूरों के हक में लिखकर अपने अपने रचना धर्म का बखूबी निर्वाह किया है |बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी,
ReplyDeleteहमें छलावा नहीं चाहिए
हमें भुलावा नहीं चाहिए
हमको अपना अमन चाहिए
हमको अपना वतन चाहिए
हमको अपनी धरती प्यारी
हमको अपना गगन चाहिए
अपना हक लेने आये हैं ...
हम अपना सूरज लाये हैं..
बहुत सुन्दर! पूरी रचना ने मन छू लिया !
हम मजदूर नीव की ईंट होते है ! भारो से दबना और जुल्म सहना ...पीढियों से मिली है ! इस क्षेत्र में जागरुक करती , ललकारती आप की यह कविता !
ReplyDeletebhut acchi rachna hai...
ReplyDeleteअब हमको भरमाना छोड़ो
ReplyDeleteअब हमको भटकाना छोड़ो
जाति-धरम के दाँव चलाकर
आपस में लड़वाना छोड़ो..
...बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति!
काश! मजदूर का दर्द हर कोई समझ पाता!
मजदूर
सबके पास
सबसे दूर
कितने मजबूर!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
हमें छलावा नहीं चाहिए
ReplyDeleteहमें भुलावा नहीं चाहिए
हमको अपना अमन चाहिए
हमको अपना वतन चाहिए
हमको अपनी धरती प्यारी
हमको अपना गगन चाहिए
धरती और गगन पर सभी प्राणियों का समान अधिकार है, लेकिन मनुष्यों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि हर व्यक्ति का अपना-अपना गगन और अपनी-अपनी धरती होती है। आपका यह सुंदर गीत इसी तथ्य को स्पष्टता से रेखांकित करता है।
मुझे यह गीत बहुत...बहुत अच्छा लगा।
शुभकामनाएं आपको।
bahut badhiya aujpurn rachna
ReplyDeleteहाथों में जलती मशाल ले
ReplyDeleteअपने जीवन का अँधियारा
तुझको ही है आज मिटाना..
एक दम सही बात
श्रमिकों को समर्पित यह रचना अच्छी लगी ! शुभकामनायें !!
ReplyDeleteतेरा सूरज क़ैद किये जो
ReplyDeleteमुट्ठी में हैं बंद किये जो
जोर लगाके खोल दे मुट्ठी
तोड़ दे हाथ मरोड़ दे मुट्ठी
सटीक बात...सुंदर विचार।
अपना हक लेने आये हैं ...
ReplyDeleteहम अपना सूरज लाये हैं..
बहुत ओजस्वी एवं जोश से भरपूर कविता ! आज इसी बात की बहुत ज़रूरत है कि श्रमिक अपनी शक्ति को पहचाने ! जो औरों के लिये पहाड़ तोड़ सकते हैं वे अपने विकास के मार्ग का एक छोटा सा पत्थर हटाने के लिये औरों का मुख क्यों ताकते रह जाते हैं ! बहुत बढ़िया रचना !
हमको अपना अमन चाहिए
ReplyDeleteहमको अपना वतन चाहिए
हमको अपनी धरती प्यारी
हमको अपना गगन चाहिए
क्रान्तिकारी भावों से भरी प्रभावशाली रचना........
सुंदर रचना...
भावपूर्ण सुंदर रचना श्रमशक्ति को समर्पित । धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ ...
ReplyDeleteअपने अधिकारों के प्रति जागृति जितनी आवश्यक है , कर्तव्य निभाने की वफादारी भी ...
ReplyDeleteप्रेरक रचना !
हम अपना सूरज लाये हैं .
ReplyDeleteवाह बेहतरीन ..
very nice post
ReplyDeleteप्रेरणा देते भाव.........
ReplyDeleteतमाम दावों के बावजूद,श्रम सुधार आज भी एक छलावा ही है।
ReplyDeleteक्या कुछ तेरे पास नहीं है ?
ReplyDeleteअरे जरा अपनी ताक़त को
जान और पहचान तो भाई !
bahut achchha likha hai
sarthak rachna .
अधूरी पढ़ ही हम वाह वाह कर उठे थे...पूरी पढ़ क्या कहें....
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सार्थक ओजपूर्ण इस रचना के लिए आपका साधुवाद !!!
शहरों के फुटपाथ जगे हैं
ReplyDeleteझोपड़पट्टे साथ जगे हैं
आज करोड़ों हाथ जगे हैं
मिलों के गर्द गुबार ज़गे हैं
हम धरती के भार ज़गे हैं
गद्दारों के काल ज़गे है
सोकर सालोंसाल, ज़गे हैं ...
बहुत ओजमयी प्रेरक रचना...बहुत सुन्दर आह्वान..
आज न कोई मालिक नौकर
ReplyDeleteसब के सब इंसान बराबर
स्वाभिमान से जिंदा रहना
और शान से जीवन जीना
अपने अधिकारों की खातिर
लड़ना पड़े तो खुलकर लड़ना
मजदूर दिवस पर सार्थक कविता ......!!
जो तुझको भरमाते आये
ReplyDeleteसपनों में भटकाते आये
तेरा चैन चुराते आये
उल्टे पाठ पढ़ाते आये
कभी तेरा सम्मान न समझा
कभी तुम्हें इंसान न समझा
नोच दे इनका आज मुखौटा
असली चेहरा दिखा दे सबको
भलीभाँति ये बता दे इनको...
Very motivating lines Surendra ji . Hope the energy in this creation will reach out to the people addressed.
Mind blowing creation !
.
josh se bharpoor bahut hi saarthak kavita!
ReplyDeleteजोशोखरोश से भरपूर ओजपूर्ण शानदार अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.जो भाव व्यक्त किये गएँ हैं वे बेमिशाल है,शब्दों का चयन भी सरल व सटीक है.ईश्वर करे आपकी भावना जन जन में पहुँच समाज को चेतना प्रदान करे .
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteअपना हक लेने आये हैं ...
ReplyDeleteहम अपना सूरज लाये हैं..
प्रभावशाली सुंदर रचना...
जो तुझको भरमाते आये
ReplyDeleteसपनों में भटकाते आये
तेरा चैन चुराते आये
उल्टे पाठ पढ़ाते आये
कभी तेरा सम्मान न समझा
कभी तुम्हें इंसान न समझा
नोच दे इनका आज मुखौटा
असली चेहरा दिखा दे सबको
प्रेरणा है तो सजगता भी,कोमलता है तो ललकार भी,साहित्य है तो छंदबद्धता भी.बहुत ही प्यारी रचना है मजदूर दिवस के अवसर पर आपकी.बधाई आपको.
भलीभाँति ये बता दे इनको...
भलीभाँति ये बता दे इनको...
ReplyDeleteये पंक्ति मेरी उपर्युक्त टिप्पणी के नीचे पता नहीं कैसे पहुंच गई.
अब हमको भरमाना छोड़ो
ReplyDeleteअब हमको भटकाना छोड़ो
जाति-धरम के दाँव चलाकर
आपस में लड़वाना छोड़ो..
बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी सुरेन्द्र जी. पूरी रचना में एक जोश है.
आभार.
sunder, utsaah aur ahwahan deti prabhavshali abhivyakti.
ReplyDeleteहमेशा की तरह ही सुदंर।
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteबधाई
आशा
मेरे पास तारीफ़ करने के सिवा कोई रास्ता ही नहीं है| आपकी लेखनी तो शोलों से भी ज्यादा आग उगल रही है| बेहतरीन कविता लिखी है| व्यवस्था पर चोट करने और ज़मीर को झकझोरने की हिम्मत भी आज के कवियों में नहीं दिखती आप में दोनों हैं| धन्यवाद|
ReplyDeleteश्रमिकों को समर्पित रचना अच्छी लगी !
ReplyDeleteएक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
ReplyDeleteयही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
अपना हक लेने आये हैं ...
ReplyDeleteहम अपना सूरज लाये हैं.
बहुत सुन्दर आह्वान बधाई .
बहुत सुंदर रचना.बधाई।
ReplyDeletebahut yathaarth poorn kavita
ReplyDeleteआज न कोई मालिक नौकर
ReplyDeleteसब के सब इंसान बराबर
स्वाभिमान से जिंदा रहना
और शान से जीवन जीना
अपने अधिकारों की खातिर
लड़ना पड़े तो खुलकर लड़ना
बहुत बहुत सुन्दर सार्थक ओजपूर्ण इस रचना के लिए आपका साधुवाद !!!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअपने बाजुओं पर भरोसा है तो सब कुछ संभव है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना |
मजदूर दिवस पर एक बेहतरीन प्रस्तुति..मजदूर के पास ही तो सब कुछ है.. आज हम देखते है उँची-उँची मंजिले,सुंदर सड़कें,समान हर चीज़ मजदूर के ही हाथों से ह कर हमारे पास आती है..उनके मेहनत पर हमें गर्व होता है.. हम सब भी तो मजदूर ही हैं किसी ना किसी के लिए काम करते है..
ReplyDeleteइस भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय सुरेन्द्र सिंहजी
ReplyDeleteनमस्कार
निस्संदेह ऎसी पोस्ट सिर्फ आप ही लिख सकते है
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteहमें छलावा नहीं चाहिए
ReplyDeleteहमें भुलावा नहीं चाहिए
हमको अपना अमन चाहिए
हमको अपना वतन चाहिए
हमको अपनी धरती प्यारी
हमको अपना गगन चाहिए
अपना हक लेने आये हैं ...
हम अपना सूरज लाये हैं..
काश ये आवाज़ हुक्मरानों तक पहुँचे। सुब्दर रचना। शुभकामनायें।
तेरा सूरज क़ैद किये जो
ReplyDeleteमुट्ठी में हैं बंद किये जो
जोर लगाके खोल दे मुट्ठी
तोड़ दे हाथ मरोड़ दे मुट्ठी
padhke aisa laga jaise ...........
koi kah raha ho ..
dekhna hai jor kitna baju-e-katil mein hai