Monday, May 2, 2011

हम अपना सूरज लाये हैं

                          ( १ मई --मजदूर दिवस पर  ......देश के मेहनतकशों के नाम )

क्या कुछ तेरे पास नहीं है ?
अरे जरा अपनी ताक़त को 
जान और पहचान तो भाई !

       तेरे दो  मज़बूत हाथ हैं 
       हाथों में हल है कुदाल है 
       हँसिया, खुरपा और फावड़ा 
       जिनसे तू बंज़र धरती  भी 
       चीर चीर जीवन उपजाता
तेरे दो मज़बूत हाथ हैं 
हाथों में दमदार हथौड़ा 
याकि बंसुला और रुखानी 
मिलों और कारखानों की 
बड़ी दैत्याकार मशीनें 
जिन्हें चलाकर 
लहू से अपने 
देश की तू किस्मत लिखता है
       तुझमे तो मेहनत का बल है 
       साहस का पहाड़ जैसा तू 
       तुझ जैसा कर्तव्यपरायण 
       भला विश्व  में और कौन है ?

फिर भी तू कितना सहता है !

       बना है क्यों भाड़े का टट्टू
       लोगों के हाथों का लट्टू 
       बिलकुल एक भिखारी जैसा 
       भाग्य और भगवान भरोसे..
       
       क्यों ऐसा जीवन जीता है ? 
       मात्र दया पर जिंदा रहना 
       सीख लिया क्यों आखिर तूने ?

आज न कोई मालिक नौकर 
सब के सब इंसान बराबर 
स्वाभिमान से जिंदा रहना 
और शान से जीवन जीना 
अपने अधिकारों की खातिर 
लड़ना पड़े तो खुलकर लड़ना 
यही सत्य है ...और नहीं कुछ 

       हाथों में जलती मशाल ले 
       अपने जीवन का अँधियारा 
       तुझको ही है आज मिटाना.. 

तेरा सूरज क़ैद किये जो 
मुट्ठी में हैं बंद किये जो 
जोर लगाके खोल दे मुट्ठी  
तोड़ दे हाथ मरोड़ दे मुट्ठी 

       जो तुझको भरमाते आये 
       सपनों में भटकाते आये 
       तेरा चैन चुराते आये 
       उल्टे  पाठ पढ़ाते आये 
       कभी तेरा सम्मान न समझा 
       कभी तुम्हें इंसान न समझा        
       नोच दे इनका आज मुखौटा 
       असली चेहरा दिखा दे सबको 
       भलीभाँति ये बता दे इनको... 

अब हम और नहीं रोयेंगे 
अब हम और नहीं सोयेंगे

जाग उठे हम-जगी ज़वानी 
जागी खेती जगी किसानी 
खेत ज़गे खलिहान जगे हैं 
धरती की संतान जगे हैं 
हम भी हैं इंसान-जगे हैं 

शहरों के फुटपाथ जगे हैं  
झोपड़पट्टे  साथ जगे हैं 
आज करोड़ों हाथ जगे हैं 
मिलों के गर्द गुबार ज़गे हैं 
हम  धरती के भार ज़गे हैं 
गद्दारों के काल ज़गे है 
सोकर सालोंसाल, ज़गे हैं 
       
       अपना हक लेने आये हैं 
       हम अपना सूरज लाये हैं 

अब हमको भरमाना छोड़ो
अब हमको भटकाना छोड़ो 
जाति-धरम के दाँव चलाकर 
आपस में लड़वाना   छोड़ो..

       भागो-हटो हवाला वालों 
       रोज़बरोज़ घोटाला वालों 
       शांति और सुख हरने वालों 
       हरियाली  को  चरने वालों 
       सिर्फ तिजोरी भरने वालों 
       देश का सौदा करने वालों 

देश को अब नीलाम करो मत 
और इसे बदनाम करो मत 
लोकतंत्र की चीर हरो मत 
देश का बंटाधार करो मत 

       हमें छलावा नहीं चाहिए 
       हमें भुलावा नहीं चाहिए 
       हमको अपना अमन चाहिए 
       हमको अपना वतन चाहिए 
       हमको अपनी धरती प्यारी 
       हमको अपना गगन चाहिए 

अपना हक लेने आये हैं ...
हम अपना सूरज लाये हैं..

55 comments:

  1. अपना हक लेने आये हैं ...
    हम अपना सूरज लाये हैं

    bahut achchha likha hai

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  2. हमें छलावा नहीं चाहिए
    हमें भुलावा नहीं चाहिए
    हमको अपना अमन चाहिए
    हमको अपना वतन चाहिए
    हमको अपनी धरती प्यारी
    हमको अपना गगन चाहिए
    क्रान्तिकारी भावों से भरी प्रभावशाली रचना........

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  3. देश को अब नीलाम करो मत
    और इसे बदनाम करो मत
    लोकतंत्र की चीर हरो मत
    देश का बंटाधार करो मत

    desh ka bntaadhar karne wale ye neta ab jaag jaao?
    bahut achchhi kvita hae .

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  4. बहुत सुन्दर आह्वान किया है……………जागृत करती रचना के लिये बधाई।

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  5. तेरा सूरज क़ैद किये जो
    मुट्ठी में हैं बंद किये जो
    जोर लगाके खोल दे मुट्ठी
    तोड़ दे हाथ मरोड़ दे मुट्ठी
    apne aakash ka vistar yahin se shuru hai, aage badho- apni takdir badal do saath mein unki bhi, jo tumhare suraj ko band kiye baithe hain

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  6. शहरों के फुटपाथ जगे हैं
    झोपड़पट्टे साथ जगे हैं
    आज करोड़ों हाथ जगे हैं
    मिलों के गर्द गुबार ज़गे हैं
    हम धरती के भार ज़गे हैं
    गद्दारों के काल ज़गे है
    सोकर सालोंसाल, ज़गे हैं

    अपना हक लेने आये हैं
    हम अपना सूरज लाये हैं ....
    भैया जी आपकी रचना धर्मिता को प्रणाम है.....पता नही आपको कब आपका सही स्थान मिल पायेगा.

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  7. भाई सुरेन्द्र जी मई दिवस पर एक बेहतरीन कविता मजदूरों के हक में लिखकर अपने अपने रचना धर्म का बखूबी निर्वाह किया है |बधाई और शुभकामनाएं |

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  8. सुरेन्द्र जी,
    हमें छलावा नहीं चाहिए
    हमें भुलावा नहीं चाहिए
    हमको अपना अमन चाहिए
    हमको अपना वतन चाहिए
    हमको अपनी धरती प्यारी
    हमको अपना गगन चाहिए

    अपना हक लेने आये हैं ...
    हम अपना सूरज लाये हैं..
    बहुत सुन्दर! पूरी रचना ने मन छू लिया !

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  9. हम मजदूर नीव की ईंट होते है ! भारो से दबना और जुल्म सहना ...पीढियों से मिली है ! इस क्षेत्र में जागरुक करती , ललकारती आप की यह कविता !

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  10. अब हमको भरमाना छोड़ो
    अब हमको भटकाना छोड़ो
    जाति-धरम के दाँव चलाकर
    आपस में लड़वाना छोड़ो..
    ...बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति!
    काश! मजदूर का दर्द हर कोई समझ पाता!
    मजदूर
    सबके पास
    सबसे दूर
    कितने मजबूर!

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  11. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  12. हमें छलावा नहीं चाहिए
    हमें भुलावा नहीं चाहिए
    हमको अपना अमन चाहिए
    हमको अपना वतन चाहिए
    हमको अपनी धरती प्यारी
    हमको अपना गगन चाहिए

    धरती और गगन पर सभी प्राणियों का समान अधिकार है, लेकिन मनुष्यों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि हर व्यक्ति का अपना-अपना गगन और अपनी-अपनी धरती होती है। आपका यह सुंदर गीत इसी तथ्य को स्पष्टता से रेखांकित करता है।
    मुझे यह गीत बहुत...बहुत अच्छा लगा।
    शुभकामनाएं आपको।

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  13. हाथों में जलती मशाल ले
    अपने जीवन का अँधियारा
    तुझको ही है आज मिटाना..

    एक दम सही बात

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  14. श्रमिकों को समर्पित यह रचना अच्छी लगी ! शुभकामनायें !!

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  15. तेरा सूरज क़ैद किये जो
    मुट्ठी में हैं बंद किये जो
    जोर लगाके खोल दे मुट्ठी
    तोड़ दे हाथ मरोड़ दे मुट्ठी

    सटीक बात...सुंदर विचार।

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  16. अपना हक लेने आये हैं ...
    हम अपना सूरज लाये हैं..
    बहुत ओजस्वी एवं जोश से भरपूर कविता ! आज इसी बात की बहुत ज़रूरत है कि श्रमिक अपनी शक्ति को पहचाने ! जो औरों के लिये पहाड़ तोड़ सकते हैं वे अपने विकास के मार्ग का एक छोटा सा पत्थर हटाने के लिये औरों का मुख क्यों ताकते रह जाते हैं ! बहुत बढ़िया रचना !

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  17. हमको अपना अमन चाहिए
    हमको अपना वतन चाहिए
    हमको अपनी धरती प्यारी
    हमको अपना गगन चाहिए
    क्रान्तिकारी भावों से भरी प्रभावशाली रचना........

    सुंदर रचना...

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  18. भावपूर्ण सुंदर रचना श्रमशक्ति को समर्पित । धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ ...

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  19. अपने अधिकारों के प्रति जागृति जितनी आवश्यक है , कर्तव्य निभाने की वफादारी भी ...
    प्रेरक रचना !

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  20. हम अपना सूरज लाये हैं .
    वाह बेहतरीन ..

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  21. तमाम दावों के बावजूद,श्रम सुधार आज भी एक छलावा ही है।

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  22. क्या कुछ तेरे पास नहीं है ?
    अरे जरा अपनी ताक़त को
    जान और पहचान तो भाई !
    bahut achchha likha hai
    sarthak rachna .

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  23. अधूरी पढ़ ही हम वाह वाह कर उठे थे...पूरी पढ़ क्या कहें....

    बहुत बहुत सुन्दर सार्थक ओजपूर्ण इस रचना के लिए आपका साधुवाद !!!

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  24. शहरों के फुटपाथ जगे हैं
    झोपड़पट्टे साथ जगे हैं
    आज करोड़ों हाथ जगे हैं
    मिलों के गर्द गुबार ज़गे हैं
    हम धरती के भार ज़गे हैं
    गद्दारों के काल ज़गे है
    सोकर सालोंसाल, ज़गे हैं ...

    बहुत ओजमयी प्रेरक रचना...बहुत सुन्दर आह्वान..

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  25. आज न कोई मालिक नौकर
    सब के सब इंसान बराबर
    स्वाभिमान से जिंदा रहना
    और शान से जीवन जीना
    अपने अधिकारों की खातिर
    लड़ना पड़े तो खुलकर लड़ना

    मजदूर दिवस पर सार्थक कविता ......!!

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  26. जो तुझको भरमाते आये
    सपनों में भटकाते आये
    तेरा चैन चुराते आये
    उल्टे पाठ पढ़ाते आये
    कभी तेरा सम्मान न समझा
    कभी तुम्हें इंसान न समझा
    नोच दे इनका आज मुखौटा
    असली चेहरा दिखा दे सबको
    भलीभाँति ये बता दे इनको...

    Very motivating lines Surendra ji . Hope the energy in this creation will reach out to the people addressed.

    Mind blowing creation !

    .

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  27. josh se bharpoor bahut hi saarthak kavita!

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  28. जोशोखरोश से भरपूर ओजपूर्ण शानदार अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.जो भाव व्यक्त किये गएँ हैं वे बेमिशाल है,शब्दों का चयन भी सरल व सटीक है.ईश्वर करे आपकी भावना जन जन में पहुँच समाज को चेतना प्रदान करे .

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  29. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  30. अपना हक लेने आये हैं ...
    हम अपना सूरज लाये हैं..
    प्रभावशाली सुंदर रचना...

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  31. जो तुझको भरमाते आये
    सपनों में भटकाते आये
    तेरा चैन चुराते आये
    उल्टे पाठ पढ़ाते आये
    कभी तेरा सम्मान न समझा
    कभी तुम्हें इंसान न समझा
    नोच दे इनका आज मुखौटा
    असली चेहरा दिखा दे सबको

    प्रेरणा है तो सजगता भी,कोमलता है तो ललकार भी,साहित्य है तो छंदबद्धता भी.बहुत ही प्यारी रचना है मजदूर दिवस के अवसर पर आपकी.बधाई आपको.
    भलीभाँति ये बता दे इनको...

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  32. भलीभाँति ये बता दे इनको...
    ये पंक्ति मेरी उपर्युक्त टिप्पणी के नीचे पता नहीं कैसे पहुंच गई.

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  33. अब हमको भरमाना छोड़ो
    अब हमको भटकाना छोड़ो
    जाति-धरम के दाँव चलाकर
    आपस में लड़वाना छोड़ो..

    बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी सुरेन्द्र जी. पूरी रचना में एक जोश है.

    आभार.

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  34. हमेशा की तरह ही सुदंर।

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  35. अच्छी अभिव्यक्ति |
    बधाई

    आशा

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  36. मेरे पास तारीफ़ करने के सिवा कोई रास्ता ही नहीं है| आपकी लेखनी तो शोलों से भी ज्यादा आग उगल रही है| बेहतरीन कविता लिखी है| व्यवस्था पर चोट करने और ज़मीर को झकझोरने की हिम्मत भी आज के कवियों में नहीं दिखती आप में दोनों हैं| धन्यवाद|

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  37. श्रमिकों को समर्पित रचना अच्छी लगी !

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  38. एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
    यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!

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  39. अपना हक लेने आये हैं ...
    हम अपना सूरज लाये हैं.
    बहुत सुन्दर आह्वान बधाई .

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  40. बहुत सुंदर रचना.बधाई।

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  41. आज न कोई मालिक नौकर
    सब के सब इंसान बराबर
    स्वाभिमान से जिंदा रहना
    और शान से जीवन जीना
    अपने अधिकारों की खातिर
    लड़ना पड़े तो खुलकर लड़ना
    बहुत बहुत सुन्दर सार्थक ओजपूर्ण इस रचना के लिए आपका साधुवाद !!!

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  42. This comment has been removed by the author.

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  43. अपने बाजुओं पर भरोसा है तो सब कुछ संभव है |
    बहुत सुन्दर रचना |

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  44. मजदूर दिवस पर एक बेहतरीन प्रस्तुति..मजदूर के पास ही तो सब कुछ है.. आज हम देखते है उँची-उँची मंजिले,सुंदर सड़कें,समान हर चीज़ मजदूर के ही हाथों से ह कर हमारे पास आती है..उनके मेहनत पर हमें गर्व होता है.. हम सब भी तो मजदूर ही हैं किसी ना किसी के लिए काम करते है..

    इस भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई

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  45. आदरणीय सुरेन्द्र सिंहजी
    नमस्कार

    निस्संदेह ऎसी पोस्ट सिर्फ आप ही लिख सकते है

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  46. मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.

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  47. हमें छलावा नहीं चाहिए
    हमें भुलावा नहीं चाहिए
    हमको अपना अमन चाहिए
    हमको अपना वतन चाहिए
    हमको अपनी धरती प्यारी
    हमको अपना गगन चाहिए

    अपना हक लेने आये हैं ...
    हम अपना सूरज लाये हैं..
    काश ये आवाज़ हुक्मरानों तक पहुँचे। सुब्दर रचना। शुभकामनायें।

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  48. तेरा सूरज क़ैद किये जो
    मुट्ठी में हैं बंद किये जो
    जोर लगाके खोल दे मुट्ठी
    तोड़ दे हाथ मरोड़ दे मुट्ठी

    padhke aisa laga jaise ...........
    koi kah raha ho ..

    dekhna hai jor kitna baju-e-katil mein hai

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