बचपन में दादी मुझे सुलाने के लिए कहतीं भैया सो जा, नहीं तो उजला कौवा आ जायेगा | मै डरकर सो जाता |दादी ने एक दिन एक किस्सा सुनाया था | एक था राजा, राजा बड़ा बहादुर था | अपनी प्रजा के सुखदुख का हमेशा ध्यान रखता था | राजा के राज्य में काले कौवों की संख्या बहुत थी | प्रजा सुखी थी तो उनका जूठन खाकर कौए भी खुश होकर काँव- काँव करते पेड़ों पर , मुंडेरों पर उड़ते, बैठते और मँडराते रहते थे |मगर एक दिन पश्चिम दिशा के जंगल की ओर से झाँव-झाँव , खाँव-खाँव की आवाज आने लगी | लोग कौतूहलवश उसी ओर देखने लगे | तभी बड़े-बड़े डैनो वाले उजले रंग के दैत्याकार कौए आसमान में मडराने लगे | देखते ही देखते उन्होंने काले कौवों पर हमला बोल दिया | जब तक राजा के सिपाही कुछ कर पाते , उजले कौवों का झुण्ड वापस लौट गया लेकिन काफी संख्या में काले कौवों को नोच फाड़कर |काँव -काँव करने वाले कौए चीख चिल्ला रहे थे | कुछ घायल पड़े कराह रहे थे तो कुछ मृतप्राय हो चुके थे | दयालु राजा ने घायल कौवों का इलाज़ करवाया और जो मर गए थे उनका अंतिम संस्कार | फिर तो यह घटना अक्सर घटित होने लगी | थक-हारकर राजा ने पश्चिम के जंगलों में अपना शांतिदूत भेजा | वहां से उजले कौवों के सरदार ने सन्देश भिजवाया कि यदि राजा उसके अधीन हो जाये तो काले कौवों पर हमला नहीं करेंगे बल्कि रोज़ एक-एक का थोड़ा-थोड़ा खून पियेंगे और कभी कभार थोड़ा मांस भी खायेंगे जिससे काले कौए आराम से इसे बर्दाश्त करने के आदी हो जायेंगे | राजा का राजकाज भी चलता रहेगा और उनका पेट भी भरता रहेगा | राजा ने शर्त मान ली | काले कौए धीरे-धीरे कम होने |
तब से कई वर्षों बाद ----------
आज देखा कि एक काला कौवा रोटी के जुगाड़ में इधर-उधर भाग रहा है | कभी पेड़ की डाल पर बैठता है तो कभी उड़कर जमीन पर आ जाता है और बर्तन साफ़ कर रही घरैतिन से बस थोड़ी दूरी पर सतर्क बैठ जाता है |दांव मिलते ही पड़ा हुआ बचाखुचा जूठन चोंच में दबाकर भाग जाता है और छत की मुंडेर पर बैठकर खा रहा है | बीच बीच में कांव -कांव की कर्कश आवाज से अपनी बिरादरी के लोंगो को भी बतलाता जा रहा है कि भूख लगी हो तो आ जाओ , पेट भरने को अभी यहाँ रोटी के टुकड़े और सीझे चावल काफी हैं | दो -चार कौए कांव-कांव करते और आ गए |तभी जोर-जोर से गाड़ियों की घरघराहट और हार्न बजने की आवाज सुनाई देने लगी | गाँव के बच्चे , कुछ नंगे तो कुछ अधनंगे सभी कुलांचे भरते गाड़ियों की ओर दौड़े | गाड़ियों की झांव-झांव आवाज ने पूरे गाँव को चौंका दिया | सभी घरों के मर्द बाहर निकल आये तो औरतें किवाड़ों को आधा खोल बाहर झाँकने लगीं | अचानक सभी गाड़ियाँ गाँव के बीचोबीच नेताजी के दरवाजे पर रुक गयीं | गाड़ी में से सफ़ेद लकझक कुर्ता पाजामा पहने दो तीन व्यक्ति कई असलहा धारियों के साथ बाहर निकले और सबकी ओर दोनों हाथ जोड़ हवा में हिलाते हुए बोले "भैया ,राम राम "|
नंगे-अधनंगे बच्चे जो ठिठक कर रुक गए थे और देख रहे थे , वे धीरे-धीरे पीछे वापस लौटने लगे | दौड़ते हुए उल्टे पाँव आते लडको से ,लकड़ी के सहारे धीरे धीरे आ रहे जगन लोहार ने पूछा , "कौन है रे , कौन आया है " लड़के सुर में सुर मिलाकर चिल्लाये ....
काला कौवा काँव काँव , उजला कौवा खाँव खाँव |
काला कौवा जूठन खाय, उजला कौवा मांस चबाय |
काला कौवा पानीपून , उजला कौवा पीवै खून |
हांड मांस का न्यौता है , राजा से समझौता है |
भागो भैया भागो ! उजला कौआ आया है.....
बहुत सुंदर लिखा आपने.
ReplyDeleteभैया 'झंझट'जी
ReplyDeleteआपने रोचक ढंग से काले कौवा का दर्द अपनी प्रस्तुति में उंडेला है.
उजले कौवा के बहाने से नेता जी पर आपने दे मारा ढेला है.
जिंदगी का भी तो बस यही अब रेलम पेला है.
और यही कहना पड़ रहा है कि 'काला कौवा पानीपून , उजला कौवा पीवै खून'.
आभार.
एक था राजा, राजा बड़ा बहादुर था|अपनी प्रजा के सुखदुख का हमेशा ध्यान रखता था|राजा के राज्य में काले कौवों की संख्या बहुत थी|............
ReplyDeleteएक कहानी को आपकी लेखनी ने बढ़िया बना दिया है
बहुत खूब ! your Pen is blessed by Maa Saraswati.
ReplyDeleteज़िन्दगी का सच बयाँ कर दिया।
ReplyDeleteकाले और गोरो का संगम दिल को छु गया जी ..चंगा है !!!
ReplyDeleteझन्नाटेदार झटका .........बहुत ही सटीक व्यंग्य
ReplyDeleteकाले कौवे तो पुस्तौनी है ! आखिर कब तक रंग बदलेंगे ?
ReplyDeleteबहुत खूब,
ReplyDeleteझंझट जी,
Ujale kauwon ke bahane netaon ko to lapeta hee sath hee goron ko bhee nahee choda. Badhiya rachna
ReplyDeleteबहुत सुंदर ढंग से आपने अपनी बात कह दी |बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....हकीकत बयां करती पोस्ट
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeletejane in ujale kauvo ka khoon choosne wala kab paida hoga
ReplyDeletebadhiya kahani
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसराहनीय लेखन के लिए बधाई एवं मंगल-कामनाएं।
ReplyDelete========================
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
ग़ज़ब का व्यंग नेताओं पर.
ReplyDeleteबहुत सशक्त व्यंग्य लिखा है आपने सुरेंद्र जी. आपके लिए शुभाकामनाएँ.
ReplyDeleteसच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! इस शानदार पोस्ट के लिए बधाई!
ReplyDeleteसही वर्णन किया है अपने कष्ट का.... शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteसफेदपोश नेताओं पर तीखा व्यंग्य।
ReplyDeleteकाले कौवे तो जूठन ही खाते हैं लेकिन ये सफेदपोश कौवे जनता का मांस नोच नोच कर खा रहे हैं।
प्रशंसा को शब्द नहीं मेरे पास....
ReplyDeleteजिस ढंग से आपने विषय रखा है...ओह...लाजवाब !!!
कृपया अपने सधे हुए लेखनी को इसी प्रकार गद्य में भी चलाया कीजिये आप...
अच्छा व्यंग है ... उजला कव्वा तो आज नही है पर इन काले काओ के बीच से ही कुछ उजले हो गये अहीं और माज़ नोचने लगे हैं ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है
ReplyDeleteबिल्कुल नये स्टाईल में करारा व्यग्ंय। आभार।
ReplyDeleteउजले कौए तो चले गये। अब काले ही उजले बन, अपनों का खून पी रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सटीक व्यंग...बहुत सार्थक
ReplyDelete.
ReplyDelete'काला कौवा पानीपून , उजला कौवा पीवै खून'.
ये सफेदपोश नेता ही तो खून चूस रहे हैं जनता का , और कर रहे हैं खोखला देश को।
शानदार व्यंग सुरेश जी , बधाई।
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नानी की मार्फ़त सफ़ेद बगुलों पर करारा व्यंग्य ."अभी तो कोयलों में काब बहुत बाकी हैं ,अभी कुछ और करो ...."
ReplyDeleteबहुत पहले सुनी थी ये कविता -अभी तो खेलने को फाग बहुत बाकी हैं ,अभी कुछ और करो -इधर कोवे ही कोवे हो गएँ हैं कोयलें गायब हैं ,दादुर अब वक्ता भये कोयल साधो मौन ।
जिन्हें नहीं मालूम फर्क गुंचा और गुल का ,चमन हो गया आज उनके हवाले .
अब तो लोग खेतों में भी "बिजूका" सफ़ेद रंग का बनाने लगे हैं,कहते हैं इनसे ही सबसे ज्यादा जानवर और पक्षी भी डरते हैं ।
ReplyDeleteव्यंग का नया अंदाज ..बहुत खूब.
ReplyDeleteझंझट जी, उजला कौवा नहीं यहाँ तो "उजले कौवे" आ धमके हैं. बहुत ही सुन्दर और सटीक व्यंग्य........आभार.
ReplyDeleteकरारा व्यंग...
ReplyDeleteगंभीर मुद्दे को सहज ढंग से उठाने के लिए हार्दिक बधाई !
सुरेन्द्र भाई, क्या खूब लिखा है, श्वेत खद्दर धारी उजले कौवों की खूब पोल खोली है आपने. ऐसे ही आपकी लेखनी चलती रहे, मेरी शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteaapki pranshasa me kuch kahane ko sabd nahi hai mer pass
ReplyDeleteसटीक एवं सार्थक प्रस्तुति.. लाजवाब
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