Monday, May 16, 2011

" उजला कौआ "...............(रिपोस्ट )


बचपन में दादी मुझे सुलाने के लिए कहतीं भैया सो जा, नहीं तो उजला कौवा आ जायेगा | मै डरकर सो जाता |दादी ने एक दिन एक किस्सा सुनाया था | एक था राजा, राजा बड़ा बहादुर था | अपनी प्रजा के सुखदुख का हमेशा ध्यान रखता था | राजा के राज्य में काले कौवों की संख्या बहुत थी | प्रजा सुखी थी तो उनका जूठन खाकर कौए भी खुश होकर काँव- काँव करते पेड़ों पर , मुंडेरों पर उड़ते, बैठते और मँडराते रहते थे |मगर एक दिन पश्चिम दिशा के जंगल की ओर से झाँव-झाँव , खाँव-खाँव की आवाज आने लगी | लोग कौतूहलवश उसी ओर देखने लगे | तभी बड़े-बड़े डैनो वाले उजले रंग के दैत्याकार कौए आसमान में मडराने लगे | देखते ही देखते उन्होंने काले कौवों पर हमला बोल दिया | जब तक राजा के सिपाही कुछ कर पाते , उजले कौवों का झुण्ड वापस लौट गया लेकिन काफी संख्या में काले कौवों को नोच फाड़कर |काँव -काँव करने वाले कौए चीख चिल्ला रहे थे | कुछ घायल पड़े कराह रहे थे तो कुछ मृतप्राय हो चुके थे | दयालु राजा ने घायल कौवों का इलाज़ करवाया और जो मर गए थे उनका अंतिम संस्कार | फिर तो यह घटना अक्सर घटित होने लगी | थक-हारकर राजा ने पश्चिम के जंगलों में अपना शांतिदूत भेजा | वहां से उजले कौवों के सरदार ने सन्देश भिजवाया कि यदि राजा उसके अधीन हो जाये तो काले कौवों पर हमला नहीं करेंगे बल्कि रोज़ एक-एक का थोड़ा-थोड़ा खून पियेंगे और कभी कभार थोड़ा मांस भी खायेंगे जिससे काले कौए आराम से इसे बर्दाश्त करने के आदी हो जायेंगे | राजा का राजकाज भी चलता रहेगा और उनका पेट भी भरता रहेगा | राजा ने शर्त मान ली | काले कौए धीरे-धीरे कम होने |                                                 

                           तब से कई वर्षों बाद ----------
                                    
                आज देखा कि एक काला कौवा रोटी के जुगाड़ में इधर-उधर भाग रहा है | कभी पेड़ की डाल पर बैठता है तो कभी उड़कर जमीन पर आ जाता है और बर्तन साफ़ कर रही घरैतिन से बस थोड़ी दूरी पर सतर्क बैठ जाता है |दांव मिलते ही पड़ा हुआ बचाखुचा जूठन चोंच में दबाकर भाग जाता है और छत की मुंडेर पर बैठकर खा रहा है | बीच बीच में कांव -कांव की कर्कश आवाज से अपनी बिरादरी के लोंगो को भी बतलाता जा रहा है कि भूख  लगी हो तो आ जाओ , पेट भरने को अभी यहाँ रोटी के टुकड़े और सीझे चावल काफी हैं | दो -चार कौए कांव-कांव करते और आ गए |तभी जोर-जोर से गाड़ियों की घरघराहट और हार्न बजने की आवाज सुनाई देने लगी | गाँव के बच्चे , कुछ नंगे तो कुछ अधनंगे सभी कुलांचे भरते गाड़ियों की ओर दौड़े | गाड़ियों की झांव-झांव आवाज ने पूरे गाँव को चौंका दिया | सभी घरों के मर्द बाहर निकल आये तो औरतें किवाड़ों को आधा खोल बाहर झाँकने लगीं | अचानक सभी गाड़ियाँ गाँव के बीचोबीच नेताजी के दरवाजे पर रुक गयीं | गाड़ी में से सफ़ेद लकझक कुर्ता पाजामा पहने दो तीन व्यक्ति कई असलहा धारियों के साथ बाहर निकले और सबकी ओर दोनों हाथ जोड़ हवा में हिलाते हुए बोले  "भैया ,राम राम "|
                                     नंगे-अधनंगे बच्चे जो ठिठक कर रुक गए थे और देख रहे थे , वे धीरे-धीरे पीछे वापस लौटने लगे | दौड़ते हुए उल्टे पाँव आते लडको से ,लकड़ी के सहारे धीरे धीरे आ रहे जगन लोहार ने पूछा , "कौन है रे , कौन आया है " लड़के सुर में सुर मिलाकर चिल्लाये ....

                   काला कौवा  काँव काँव  , उजला कौवा खाँव खाँव  |
                   काला कौवा जूठन खाय, उजला कौवा मांस चबाय |  
                   काला कौवा  पानीपून ,  उजला  कौवा  पीवै  खून  |
                    हांड मांस का न्यौता है , राजा से  समझौता  है |

                   भागो भैया भागो !   उजला कौआ आया   है.....    
  

38 comments:

  1. बहुत सुंदर लिखा आपने.

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  2. भैया 'झंझट'जी
    आपने रोचक ढंग से काले कौवा का दर्द अपनी प्रस्तुति में उंडेला है.
    उजले कौवा के बहाने से नेता जी पर आपने दे मारा ढेला है.
    जिंदगी का भी तो बस यही अब रेलम पेला है.
    और यही कहना पड़ रहा है कि 'काला कौवा पानीपून , उजला कौवा पीवै खून'.
    आभार.

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  3. एक था राजा, राजा बड़ा बहादुर था|अपनी प्रजा के सुखदुख का हमेशा ध्यान रखता था|राजा के राज्य में काले कौवों की संख्या बहुत थी|............


    एक कहानी को आपकी लेखनी ने बढ़िया बना दिया है

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  4. बहुत खूब ! your Pen is blessed by Maa Saraswati.

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  5. ज़िन्दगी का सच बयाँ कर दिया।

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  6. काले और गोरो का संगम दिल को छु गया जी ..चंगा है !!!

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  7. झन्नाटेदार झटका .........बहुत ही सटीक व्यंग्य

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  8. काले कौवे तो पुस्तौनी है ! आखिर कब तक रंग बदलेंगे ?

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  9. Ujale kauwon ke bahane netaon ko to lapeta hee sath hee goron ko bhee nahee choda. Badhiya rachna

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  10. बहुत सुंदर ढंग से आपने अपनी बात कह दी |बधाई और शुभकामनाएं |

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  11. बहुत बढ़िया ....हकीकत बयां करती पोस्ट

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  12. बहुत बढ़िया लिखा है....

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  14. jane in ujale kauvo ka khoon choosne wala kab paida hoga

    badhiya kahani

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  15. सार्थक प्रस्तुति।

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  16. सराहनीय लेखन के लिए बधाई एवं मंगल-कामनाएं।
    ========================
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  17. ग़ज़ब का व्यंग नेताओं पर.

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  18. बहुत सशक्त व्यंग्य लिखा है आपने सुरेंद्र जी. आपके लिए शुभाकामनाएँ.

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  19. सच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! इस शानदार पोस्ट के लिए बधाई!

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  20. सही वर्णन किया है अपने कष्ट का.... शुभकामनायें आपको !

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  21. सफेदपोश नेताओं पर तीखा व्यंग्य।
    काले कौवे तो जूठन ही खाते हैं लेकिन ये सफेदपोश कौवे जनता का मांस नोच नोच कर खा रहे हैं।

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  22. प्रशंसा को शब्द नहीं मेरे पास....

    जिस ढंग से आपने विषय रखा है...ओह...लाजवाब !!!

    कृपया अपने सधे हुए लेखनी को इसी प्रकार गद्य में भी चलाया कीजिये आप...

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  23. अच्छा व्यंग है ... उजला कव्वा तो आज नही है पर इन काले काओ के बीच से ही कुछ उजले हो गये अहीं और माज़ नोचने लगे हैं ...

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  24. बहुत बढ़िया लिखा है

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  25. बिल्कुल नये स्टाईल में करारा व्यग्ंय। आभार।

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  26. उजले कौए तो चले गये। अब काले ही उजले बन, अपनों का खून पी रहे हैं।

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  27. बहुत सटीक व्यंग...बहुत सार्थक

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  28. .
    'काला कौवा पानीपून , उजला कौवा पीवै खून'.

    ये सफेदपोश नेता ही तो खून चूस रहे हैं जनता का , और कर रहे हैं खोखला देश को।
    शानदार व्यंग सुरेश जी , बधाई।

    .

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  29. नानी की मार्फ़त सफ़ेद बगुलों पर करारा व्यंग्य ."अभी तो कोयलों में काब बहुत बाकी हैं ,अभी कुछ और करो ...."
    बहुत पहले सुनी थी ये कविता -अभी तो खेलने को फाग बहुत बाकी हैं ,अभी कुछ और करो -इधर कोवे ही कोवे हो गएँ हैं कोयलें गायब हैं ,दादुर अब वक्ता भये कोयल साधो मौन ।
    जिन्हें नहीं मालूम फर्क गुंचा और गुल का ,चमन हो गया आज उनके हवाले .

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  30. अब तो लोग खेतों में भी "बिजूका" सफ़ेद रंग का बनाने लगे हैं,कहते हैं इनसे ही सबसे ज्यादा जानवर और पक्षी भी डरते हैं ।

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  31. व्यंग का नया अंदाज ..बहुत खूब.

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  32. झंझट जी, उजला कौवा नहीं यहाँ तो "उजले कौवे" आ धमके हैं. बहुत ही सुन्दर और सटीक व्यंग्य........आभार.

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  33. करारा व्यंग...
    गंभीर मुद्दे को सहज ढंग से उठाने के लिए हार्दिक बधाई !

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  34. सुरेन्द्र भाई, क्या खूब लिखा है, श्वेत खद्दर धारी उजले कौवों की खूब पोल खोली है आपने. ऐसे ही आपकी लेखनी चलती रहे, मेरी शुभकामनाएँ.

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  35. aapki pranshasa me kuch kahane ko sabd nahi hai mer pass

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  36. सटीक एवं सार्थक प्रस्‍तुति.. लाजवाब

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