Thursday, December 1, 2011

(रिपोस्ट ..यह लघुलेख फरवरी २०११ में पोस्ट किया था | मन की आवाज़ पर पुनः पोस्ट कर रहा हूँ |)


लोकतंत्र को निगल गया भ्रष्टाचार का अजगर ..

हाँ ! मैं देख रहा हूँ | क्या आपने नहीं देखा ? आप भी देख रहे हैं | हम सब देख रहे हैं , मगर तमाशबीन की तरह | कुछ करना  भी चाहें तो क्या करें ? सिर्फ हो-हल्ला ही तो मचा सकते हैं | मचा भी रहे हैं मगर कोई असर नहीं |
हाँ , तो हम सबने देखा - काफी समय पहले से जिस भ्रष्टाचार के भीमकाय भयंकर अजगर ने  देश के लोकतंत्र को निगलना शुरू किया था , अब पूरा का पूरा निगल गया - सिर से पाँव तक ! लोकतंत्र अब अजगर के पेट में है | वह अजगर की आँखों से ही थोडा-बहुत बाहर देख लेता है , उसी की साँस पर जिन्दा है ,बाहर आने को छटपटाता है | अजगर के पेट में फँसा बेचारा हाथ-पाँव मारता है मगर दूसरे ही पल आँखें मूँद लेता है | एक आम आदमी की तरह मौत से जूझ रहा है - बेचारा बेबस लोकतंत्र ! लगता है कि अब जान गई कि तब , पर दूसरे ही क्षण वह फिर हरकत में आ जाता है | मृतप्राय है पर जिजीविषा बाकी है |
     क्या कोई चमत्कार होगा ? कोई मसीहा आएगा इसे बचाने ? कौन फाड़ेगा अजगर का पेट ? पेट फाड़कर लकवाग्रस्त हो चुके लोकतंत्र को बड़ी सावधानी से बाहर निकालेगा,उसके क्षतिग्रस्त अंगों की मरहम-पट्टी  करेगा , खुली हवा में बाहर घुमायेगा | धीरे-धीरे घायल लोकतंत्र स्वस्थ हो जायेगा | तब वह बेचारा नहीं रहेगा  |
अगर फिर कभी अजगर  उसे दुबारा निगलने का प्रयास करेगा तो वह अपनी चारों बलिष्ठ भुजाओं से उसके जबड़ों को पकड़कर फाड़ देगा | भ्रष्टाचार का अजगर हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेगा | लोकतंत्र की घर-गृहस्थी फिर से बसेगी, उसके आँगन में बच्चों की किलकारियाँ गूँजेगी और वह बड़ी शान से सीना चौड़ा करके पूरे संसार को अपनी बलिष्ठता और स्वतंत्रता की चुनौती  देगा |

35 comments:

  1. ना जाने यह भ्रष्टाचार .....!

    ReplyDelete
  2. भ्रष्टाचार का अचार भी कितने दिन चलेगा !

    ReplyDelete
  3. कोई न कोई बड़ी मुहिम भ्रष्टाचारी सिस्टम को खा जाएगी.

    ReplyDelete
  4. बिल्‍कुल सही कहा है आपने ।

    ReplyDelete
  5. वह दिन जल्दी ही आए .....

    ReplyDelete
  6. सच हो यह और जिजीविषा जीत जाये!

    ReplyDelete
  7. बहुत सही कह रहे हैं आप सार्थक वा सशक्त प्रस्तुति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका भी स्वागत है

    ReplyDelete
  8. उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसा ही होगा

    ReplyDelete
  9. स्थिति सचमुच बद है और बदतर हो रही है...
    सार्थक चिंतन है सुर्नेंद्र भाई....
    सादर बधाई....

    ReplyDelete
  10. क्या कोई चमत्कार होगा ? कोई मसीहा आएगा इसे बचाने ? कौन फाड़ेगा अजगर का पेट ? पेट फाड़कर लकवाग्रस्त हो चुके लोकतंत्र को बड़ी सावधानी से बाहर निकालेगा,उसके क्षतिग्रस्त अंगों की मरहम-पट्टी करेगा, खुली हवा में बाहर घुमायेगा | धीरे-धीरे घायल लोकतंत्र स्वस्थ हो जायेगा | तब वह बेचारा नहीं रहेगा |

    वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
    आईये चलिए फिर अपने अंदर हनुमान को जगाएं.
    मेरे ब्लॉग पर आप तुरन्त ही चले आयें.

    ReplyDelete
  11. कैसे ख़त्म होगा वह अजगर - जिसे अजगर कहने वाले हम सभी उसे पोषण दे रहे हैं ? अपनी ही आहुति देकर उसे मजबूत करते हैं ? हममे से कितने लोग अपनी हर खरीद का बिल बनवाते हैं - या अधिकतर नहीं बनवाते - क्योंकि दुकानदार कहता है - बिना बिल के इतना - बिल चाहिए तो इतना टैक्स ?

    बच्चों को बेहतर स्कूल भेजने को भ्रष्टाचार क्या हम नहीं करते ? अपना driving licence बनवाने ? डॉक्टर की line में बैठे हुए उनके attender को १० रुपये दे कर बारी आगे करवाने ? ............ यह सब ही तो उस अजगर को पोषित करता है |

    ReplyDelete
  12. सार्थक, सटीक और सामयिक प्रस्तुति, आभार.

    ReplyDelete
  13. सही और सटीक कहा है आपने.

    ReplyDelete
  14. आस पर तो जग है ..

    ReplyDelete
  15. बहुत सही चित्रण किया है आपने...

    पर मन हताशा के गहरे भंवर में डूब उतरा रहा है...प्रार्थना तो है परमेश्वर से पर आस बाँधने का कोई आधार नहीं मिला रहा...नहीं लग रहा कि निकट भविष्य में कुछ ऐसा हो जायेगा कि अजगर के पेट में फंसा वह लोकतंत्र मुक्त और स्वस्थ हो पायेगा,क्योंकि किसी भी परिवर्तन से सत्ता परिवर्तन तो होगा पर व्यवस्था परिवर्तन नहीं...

    ReplyDelete
  16. भ्रष्टाचार और लोकतंत्र में युद्ध का काव्यमयी भाषा में अच्छा चित्रण।
    आशा रखें कि लोकतंत्र विजयी होगा।

    ReplyDelete
  17. जब तक हम आप नही सुधरेगें तब तक भ्रष्टाचार समाप्त नही होगा,....
    सटीक सामायिक सुंदर पोस्ट ,.....

    ReplyDelete
  18. जब से देश आज़ाद हुआ कमोबेश लोकतंत्र अजगर के पेट में ही रहा है बिनाई ज़रूर उसकी कम ज्यादा होती रही है .अब आस अन्ना से है .किरण बेदी से है ,अना के दूसरे साथियों से है केजरीवाल जी से है .कोई तो चीरेगा अजगर का पेट .

    ReplyDelete
  19. एक चिंतनीय आलेख..!

    मेरे पोस्ट पे आकर उत्साहवर्धन के लिये
    तहे दिल से शुक्रिया आपका ..!

    ReplyDelete
  20. बहुत भावपूर्ण और सार्थक आलेख..

    ReplyDelete
  21. पुरानी लिखी हुई बाते भी भविष्य में सच होती रहती है।

    ReplyDelete
  22. Well ...your post is really very good! still I feel that we should hope for better! Congrats on writing such a meaningful post!

    ReplyDelete
  23. काश ऐसा ही हो. हम सब दुआ करते है.

    ReplyDelete
  24. बहुत सटीक और सार्थक आलेख

    ReplyDelete
  25. aaderniy sanjay jee...ajgar ka pet to ham yuwaon ko hee phadna padega...vartmaan ki jwalant samsya per bahut hee akarshak tareeke se dhyan kheencha hai aapne..sadar badhayee ke sath

    ReplyDelete
  26. बहुत सुन्दर, शानदार और सटीक आलेख! सार्थक चिंतन!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com/

    ReplyDelete
  27. उफ ये भ्रष्टाचार, जो न करे वो थोड़ा है

    ReplyDelete
  28. भ्रष्टाचार के अजगर का पेट फाड़ना अत्यंत आवश्यक है. सुंदर पोस्ट.

    ReplyDelete
  29. सुंदर सटीक सार्थक पोस्ट ,,,,,
    मेरे नए पोस्ट में इंतजार है,....

    ReplyDelete
  30. आपने सही लिखा है! सार्थक विवेचन पसंद आया! आपको बधाई !

    ReplyDelete
  31. बहुत सार्थक लेख .

    ReplyDelete
  32. आशा तो बनाए रखनी ही होगी

    ReplyDelete