हाँ ! मैं देख रहा हूँ | क्या आपने नहीं देखा ? आप भी देख रहे हैं | हम सब देख रहे हैं , मगर तमाशबीन की तरह | कुछ करना भी चाहें तो क्या करें ? सिर्फ हो-हल्ला ही तो मचा सकते हैं | मचा भी रहे हैं मगर कोई असर नहीं |
हाँ , तो हम सबने देखा - काफी समय पहले से जिस भ्रष्टाचार के भीमकाय भयंकर अजगर ने देश के लोकतंत्र को निगलना शुरू किया था , अब पूरा का पूरा निगल गया - सिर से पाँव तक ! लोकतंत्र अब अजगर के पेट में है | वह अजगर की आँखों से ही थोडा-बहुत बाहर देख लेता है , उसी की साँस पर जिन्दा है ,बाहर आने को छटपटाता है | अजगर के पेट में फँसा बेचारा हाथ-पाँव मारता है मगर दूसरे ही पल आँखें मूँद लेता है | एक आम आदमी की तरह मौत से जूझ रहा है - बेचारा बेबस लोकतंत्र ! लगता है कि अब जान गई कि तब , पर दूसरे ही क्षण वह फिर हरकत में आ जाता है | मृतप्राय है पर जिजीविषा बाकी है |
क्या कोई चमत्कार होगा ? कोई मसीहा आएगा इसे बचाने ? कौन फाड़ेगा अजगर का पेट ? पेट फाड़कर लकवाग्रस्त हो चुके लोकतंत्र को बड़ी सावधानी से बाहर निकालेगा,उसके क्षतिग्रस्त अंगों की मरहम-पट्टी करेगा , खुली हवा में बाहर घुमायेगा | धीरे-धीरे घायल लोकतंत्र स्वस्थ हो जायेगा | तब वह बेचारा नहीं रहेगा |
अगर फिर कभी अजगर उसे दुबारा निगलने का प्रयास करेगा तो वह अपनी चारों बलिष्ठ भुजाओं से उसके जबड़ों को पकड़कर फाड़ देगा | भ्रष्टाचार का अजगर हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेगा | लोकतंत्र की घर-गृहस्थी फिर से बसेगी, उसके आँगन में बच्चों की किलकारियाँ गूँजेगी और वह बड़ी शान से सीना चौड़ा करके पूरे संसार को अपनी बलिष्ठता और स्वतंत्रता की चुनौती देगा |
हम सब देख रहे हैं ,
ReplyDeleteaapne sahi kaha sir ji
halat bahut kharab he
hum sab aankh hote huye bhi andhe hain, kaan haote huye bahre
ReplyDeleteपता नही कब क्या होगा?
ReplyDeleteकुछ पंक्तियाँ याद आई है -
ReplyDeleteअपनी भी सायकिल है समाजवाद देश का ,
पंक्चर कभी है तो कभ ब्रेक फेल हैं ..........
लोकतंत्र को निगल गया भ्रष्टाचार का अजगर ..चिंतनीय विषय,
आभार............
असंख्य हृदयों की पीड़ा शब्दों में टांक दी आपने...
ReplyDeleteसचमुच सभी यही अभिलाषा धारे हुए हैं...
फिलहाल तो अजगर के पेट में ही दिख रहा है । शायद कोई चमत्कार हो जावे ?
ReplyDeleteबहुत ही गंभीर विषय.
ReplyDeleteमौन से काम न चलेगा.
सलाम
बहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें .
ReplyDeleteआइये हमारे साथ उत्तरप्रदेश ब्लॉगर्स असोसिएसन पर और अपनी आवाज़ को बुलंद करें .कृपया फालोवर बनकर उत्साह वर्धन कीजिये
सबसे बड़ी बात है कि अजगर का पेट फाड़ेगा कौन।
ReplyDelete"लोकतंत्र अब अजगर के पेट में है"
ReplyDeleteबड़ा सही वाक्य इस्तेमाल किया है आपने. अजगर कोई और नहीं ये सब नेता गण हैं..
बहुत ही उम्दा रचना , बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteब्लॉग लेखन को एक बर्ष पूर्ण, धन्यवाद देता हूँ समस्त ब्लोगर्स साथियों को ......>>> संजय कुमार
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख .
ReplyDeleteकोई मसीहा नही आयेगा, हमे ही पहल करनी होगी
ReplyDeleteसार्थक लेखन के लिए शुभकामनाये
Ultimately we are responsible for it !
ReplyDeleteमुझे लगता है कि भ्रष्टाचार के अजगर और लोकतंत्र की पुरानी दोस्ती है. कहीं कोई समस्या नज़र नहीं आती. सब वैसा ही चल रहा है. बधाई.
ReplyDeleteन चमत्कार होता दिख रहा है...न मसीहा आता...हम जब तक अपने घर का कचरा पड़ोसी के दरवाज़े पर डालते रहेंगे तब तक हम मिलजुल कर कोई अलख नहीं जगा सकते हैं...मेरे कहने का आशय ये हैकि पहले बुनियाद दुरुस्त होनी ज़रूरी है।
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया...
आपके लिए दुष्यंत के यह शेर -
कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो ।
आपने तबीयत से पत्थर उछाला है....बधाई ।
डॉ.(मिस)शरद सिंह जी के विचारों से मै पूर्ण सहमत हूँ.इस अजगर को पाला पोसा भी तो हमही ने था .और आज भी इसको किसी न किसी प्रकार से बढ़ावा भी हमही से मिल रहा है इसको. हम जब खुद अन्धकार से प्रकाश की और बढ़ने का प्रयत्न करेंगे तभी कुछ हल संभव है .समय कभी एकसा नहीं रहता .जब जागृति और चेतना विकसित होती जाती है तो विकट से विकट परिस्थिति भी सरल हो
ReplyDeleteने लगती है..इतिहास इस बात का गवाह है ,फिर चाहे वह भक्ति युग हो या ब्रिटिश शासन या आज का युग .सोच को जाग्रत करनेवाली कृति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई .
लोकतंत्र एक मेट्रिक्स है जो हम आम आदमी के बेब्कुफ़ बनाने के लिए बनायीं गयी है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी अनमोल राय की अपेक्षा करती है हमारी यह पोस्ट-
‘‘क्या अन्ना हजारे द्वारा संचालित भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की प्रक्रिया और कार्यपद्धति लोकतन्त्र के लिए एक चुनौती है?’’