Saturday, February 5, 2011

नव दोहे

जंगल  के  कानून में  , न्याय का हो सम्मान |
मछली चाहे मगर से  ,  जैसे       जीवनदान |

घर-घर अँधियारा घुसा ,सपना हुआ विहान |
मुट्ठी में  सूरज  लिए  ,   हँसता है  शैतान |

घड़ियाली आँसू  भरे , नैनों की बरसात |
जाने कैसे दिन लिखे,  जाने  कैसी रात |

सदा  छला   जाता  रहा,  बेबस वन हर बार |
पोल खुली फिर भी जमा, राजा रँगा सियार |

जहर भरी फुफकार से, मची है भागम-भाग |
बीच सड़क पर नाचते ,  आस्तीन  के  नाग |

मन मनमानी  कर रहा, गूँगा हुआ  जमीर |
भरी सभा में खिंच रही, द्रुपदसुता की चीर |

मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |

तेरे  तो  दिन  चार  हैं,  मेरे   वख्त  तमाम |
पतझड़ ने पाती लिखी, है   बसंत  के  नाम |

आज हाशिये पर हुए , कर्ण और  हरिचंद |
मुख्यपृष्ठ पर उभरते , जाफ़र औ जयचंद  | 

27 comments:

  1. आज हाशिये पर हुए, कर्ण और हरिचंद ।
    मुख्यपृष्ठ पर उभरते, जाफ़र औ जयचंद ।

    जीवन के सत्य को उद्घाटित करते ये दोहे सूक्ति वचन जैसे हैं।
    इन सुंदर पंक्तियों के लिए आपको बधाई।

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  2. सुरेन्द्र जी , हर दोहे में सत्य कों उजागर किया है आपने। प्रत्येक दोहा आज के सच का आइना है। बहुत ही उत्कृष्ट रचना ।

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  3. जहर भरी फुफकार से, मची है भागम-भाग |
    बीच सड़क पर नाचते , आस्तीन के नाग |

    मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
    वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |

    तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
    पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |

    सत्य को प्रस्तुत करते बेहद उम्दा दोहे………आभार्।

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  4. मन मनमानी कर रहा, गूँगा हुआ जमीर |
    भरी सभा में खिंच रही, द्रुपदसुता की चीर |..............
    हर दोहा अपने आप में परिपूर्ण है सुरेन्द्र जी .....आपकी सोंच में सदा ही समाज रहता है ...प्रार्थना है की हमेशा ऐसे ही रहना ! बहुत उम्दा दोहे !

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  5. आज हाशिये पर हुए , कर्ण और हरिचंद |
    मुख्यपृष्ठ पर उभरते , जाफ़र औ जयचंद |


    बहुत ख़ूबसूरती से आपने आज की हकिकत को बयां किया ... वाह !!

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  6. आप में सच को सच कहने का पुरजोर साहस है।
    यह एक सशक्त प्रस्तुति है, तल्ख और तेवरदार भी।

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  7. प्रत्येक दोहा सार्थक अर्थों से ओतप्रोत.
    उम्दा प्रस्तुति...

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  8. बहुत ही उम्दा ! झंझट जी, आभार.

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  9. मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
    वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |
    तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
    पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |

    पतझड़ की पाती बसंत के नाम.....बहुत खूब.
    अच्छे दोहों के लिये बधाई स्वीकारें।

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  10. जीवन के कटु सत्यों को उदधाटित करती सशक्त और सार्थक रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  11. बहुत उम्दा दोहे.खासकर..

    तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
    पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |

    और
    मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
    वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |

    माजरत के साथ एक बदलाव पेश करता हूँ.आशा है अच्छा लगेगा.

    इंसान ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
    वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |

    आपकी कलम को ढेरों सलाम.

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  12. इन सुंदर पंक्तियों के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
    बहुत अच्छा लिखा हे सुरेंदर जी.......

    ॐ कश्यप में ब्लॉग में नया हूँ
    कर्प्या आप मेरा मार्ग दर्शन करे
    धन्यवाद
    http://unluckyblackstar.blogspot.com/

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  13. घर-घर अँधियारा घुसा ,सपना हुआ विहान |
    मुट्ठी में सूरज लिए , हँसता है शैतान |
    आज की एक तस्वीर ...
    एक अच्छी रचना

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  14. समय और समाज की सच्चाइयों का बयान करते दोहों के लिए बधाई और आभार.

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  15. सुरेंद्र भाई नमस्कार|
    पहले से ले कर आख़िरी तक हर दोहा अपने आप में एक सम्‍पूर्ण कथा बखान रहा है| आज के दौर में भारतीय छन्‍द विधा के क्षेत्र में आपका यह प्रयास सज़ाह वन्दनीय है|

    समस्या पूर्ति ब्लॉग [http://samasyapoorti.blogspot.com/] से जुड़ने हेतु निवेदन| अपना ईमेल आइडी भेजने की कृपा करें|
    navincchaturvedi@gmail.com

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  16. सत्य को प्रस्तुत करते बेहद उम्दा दोहे………आभार्।

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  17. आपने हर दोहे में सत्य कों उजागर किया है| बहुत ही उत्कृष्ट रचना ।

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  18. आज की वास्तविकता को सामने लाते आपके यह दोहे अर्थपूर्ण हैं ...आपका शुक्रिया

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  19. यथार्थ आंकलन है

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  20. घर-घर अँधियारा घुसा ,सपना हुआ विहान |
    मुट्ठी में सूरज लिए , हँसता है शैतान |

    सदा छला जाता रहा, बेबस वन हर बार |
    पोल खुली फिर भी जमा, राजा रँगा सियार
    कमाल के दोहे हैं आखिरी दोहे मे तो और भी कमाल किया है । कोट करना मुश्किल हो रहा है कि किसे छोडें। बधाई

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  21. बहुत अच्छी प्रस्तुति....

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  22. सुरेन्द्र जी बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं |बधाई |आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए
    आशा

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  23. इसके मेरे पास बस एक ही शब्द है - बहुत खुब।

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  24. घड़ियाली आँसू भरे , नैनों की बरसात |
    जाने कैसे दिन लिखे, जाने कैसी रात |........
    उम्दा दोहे.आभार्। .........

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  25. हर दोहा तीर सा मन में लगा...

    बहुत बहुत बहुत ही सार्थक ....

    विसंगतियों को इतने सुन्दर ढंग से आपने रेखांकित किया है कि सीधे वह मन तक पहुँच इसे झकझोर जाती है...

    आपकी लेखनी ने मुग्ध कर लिया...

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  26. मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
    वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |

    तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
    पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |

    waah waah waah!

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