जंगल के कानून में , न्याय का हो सम्मान |
मछली चाहे मगर से , जैसे जीवनदान |
घर-घर अँधियारा घुसा ,सपना हुआ विहान |
मुट्ठी में सूरज लिए , हँसता है शैतान |
घड़ियाली आँसू भरे , नैनों की बरसात |
जाने कैसे दिन लिखे, जाने कैसी रात |
सदा छला जाता रहा, बेबस वन हर बार |
पोल खुली फिर भी जमा, राजा रँगा सियार |
जहर भरी फुफकार से, मची है भागम-भाग |
बीच सड़क पर नाचते , आस्तीन के नाग |
मन मनमानी कर रहा, गूँगा हुआ जमीर |
भरी सभा में खिंच रही, द्रुपदसुता की चीर |
मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |
तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |
आज हाशिये पर हुए , कर्ण और हरिचंद |
मुख्यपृष्ठ पर उभरते , जाफ़र औ जयचंद |
मछली चाहे मगर से , जैसे जीवनदान |
घर-घर अँधियारा घुसा ,सपना हुआ विहान |
मुट्ठी में सूरज लिए , हँसता है शैतान |
घड़ियाली आँसू भरे , नैनों की बरसात |
जाने कैसे दिन लिखे, जाने कैसी रात |
सदा छला जाता रहा, बेबस वन हर बार |
पोल खुली फिर भी जमा, राजा रँगा सियार |
जहर भरी फुफकार से, मची है भागम-भाग |
बीच सड़क पर नाचते , आस्तीन के नाग |
मन मनमानी कर रहा, गूँगा हुआ जमीर |
भरी सभा में खिंच रही, द्रुपदसुता की चीर |
मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |
तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |
आज हाशिये पर हुए , कर्ण और हरिचंद |
मुख्यपृष्ठ पर उभरते , जाफ़र औ जयचंद |
आज हाशिये पर हुए, कर्ण और हरिचंद ।
ReplyDeleteमुख्यपृष्ठ पर उभरते, जाफ़र औ जयचंद ।
जीवन के सत्य को उद्घाटित करते ये दोहे सूक्ति वचन जैसे हैं।
इन सुंदर पंक्तियों के लिए आपको बधाई।
सुरेन्द्र जी , हर दोहे में सत्य कों उजागर किया है आपने। प्रत्येक दोहा आज के सच का आइना है। बहुत ही उत्कृष्ट रचना ।
ReplyDeleteजहर भरी फुफकार से, मची है भागम-भाग |
ReplyDeleteबीच सड़क पर नाचते , आस्तीन के नाग |
मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |
तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |
सत्य को प्रस्तुत करते बेहद उम्दा दोहे………आभार्।
मन मनमानी कर रहा, गूँगा हुआ जमीर |
ReplyDeleteभरी सभा में खिंच रही, द्रुपदसुता की चीर |..............
हर दोहा अपने आप में परिपूर्ण है सुरेन्द्र जी .....आपकी सोंच में सदा ही समाज रहता है ...प्रार्थना है की हमेशा ऐसे ही रहना ! बहुत उम्दा दोहे !
Bahut achchhe dohe
ReplyDeleteआज हाशिये पर हुए , कर्ण और हरिचंद |
ReplyDeleteमुख्यपृष्ठ पर उभरते , जाफ़र औ जयचंद |
बहुत ख़ूबसूरती से आपने आज की हकिकत को बयां किया ... वाह !!
आप में सच को सच कहने का पुरजोर साहस है।
ReplyDeleteयह एक सशक्त प्रस्तुति है, तल्ख और तेवरदार भी।
प्रत्येक दोहा सार्थक अर्थों से ओतप्रोत.
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति...
बहुत ही उम्दा ! झंझट जी, आभार.
ReplyDeleteमौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
ReplyDeleteवन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |
तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |
पतझड़ की पाती बसंत के नाम.....बहुत खूब.
अच्छे दोहों के लिये बधाई स्वीकारें।
जीवन के कटु सत्यों को उदधाटित करती सशक्त और सार्थक रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत उम्दा दोहे.खासकर..
ReplyDeleteतेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |
और
मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |
माजरत के साथ एक बदलाव पेश करता हूँ.आशा है अच्छा लगेगा.
इंसान ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
वन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |
आपकी कलम को ढेरों सलाम.
इन सुंदर पंक्तियों के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा हे सुरेंदर जी.......
ॐ कश्यप में ब्लॉग में नया हूँ
कर्प्या आप मेरा मार्ग दर्शन करे
धन्यवाद
http://unluckyblackstar.blogspot.com/
घर-घर अँधियारा घुसा ,सपना हुआ विहान |
ReplyDeleteमुट्ठी में सूरज लिए , हँसता है शैतान |
आज की एक तस्वीर ...
एक अच्छी रचना
समय और समाज की सच्चाइयों का बयान करते दोहों के लिए बधाई और आभार.
ReplyDeleteसुरेंद्र भाई नमस्कार|
ReplyDeleteपहले से ले कर आख़िरी तक हर दोहा अपने आप में एक सम्पूर्ण कथा बखान रहा है| आज के दौर में भारतीय छन्द विधा के क्षेत्र में आपका यह प्रयास सज़ाह वन्दनीय है|
समस्या पूर्ति ब्लॉग [http://samasyapoorti.blogspot.com/] से जुड़ने हेतु निवेदन| अपना ईमेल आइडी भेजने की कृपा करें|
navincchaturvedi@gmail.com
सत्य को प्रस्तुत करते बेहद उम्दा दोहे………आभार्।
ReplyDeleteआपने हर दोहे में सत्य कों उजागर किया है| बहुत ही उत्कृष्ट रचना ।
ReplyDeleteआज की वास्तविकता को सामने लाते आपके यह दोहे अर्थपूर्ण हैं ...आपका शुक्रिया
ReplyDeleteयथार्थ आंकलन है
ReplyDeleteघर-घर अँधियारा घुसा ,सपना हुआ विहान |
ReplyDeleteमुट्ठी में सूरज लिए , हँसता है शैतान |
सदा छला जाता रहा, बेबस वन हर बार |
पोल खुली फिर भी जमा, राजा रँगा सियार
कमाल के दोहे हैं आखिरी दोहे मे तो और भी कमाल किया है । कोट करना मुश्किल हो रहा है कि किसे छोडें। बधाई
बहुत अच्छी प्रस्तुति....
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं |बधाई |आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए
ReplyDeleteआशा
इसके मेरे पास बस एक ही शब्द है - बहुत खुब।
ReplyDeleteघड़ियाली आँसू भरे , नैनों की बरसात |
ReplyDeleteजाने कैसे दिन लिखे, जाने कैसी रात |........
उम्दा दोहे.आभार्। .........
हर दोहा तीर सा मन में लगा...
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही सार्थक ....
विसंगतियों को इतने सुन्दर ढंग से आपने रेखांकित किया है कि सीधे वह मन तक पहुँच इसे झकझोर जाती है...
आपकी लेखनी ने मुग्ध कर लिया...
मौसम ने कुछ यूँ किया, धरती से खिलवाड़ |
ReplyDeleteवन-उपवन मुरझा गए, खिले झाड़-झंखाड़ |
तेरे तो दिन चार हैं, मेरे वख्त तमाम |
पतझड़ ने पाती लिखी, है बसंत के नाम |
waah waah waah!