चिड़ियन सी चहक चमक चंचलता चपला सी ,
चंदा की चाँदनी सी चित की सितलाई है |
चन्दन सी चारु महक चटकीली चंपा सी ,
चकित चकात जात चटक गोराई है |
कचक कचोट चोट चितवनि सुलोचनि की ,
रुचिर सुचक्री चितचोरनी बनाई है |
चकई चकोर प्रीति चलत सुचाल ब्याल ,
चित चोरिबे को चली चित में समाई है |
लखिकै चहुँ ओर सुनैनन सों जस मोरनी कंठ घुमाय गयी |
चमकी-दमकी बिजुरी बनिकै बिजुरी जियरा पै गिराय गयी |
रूप की रानी सयानी जवानी सों पानी मा आगि लगाय गयी |
उर पीर उठै न घटे न बढे अस नैन सों तीर चलाय गयी |
सखि लागेहु बौर रसाल की डाल सुगंध समीर हू डोलन लागे |
फूलि रहीं सरसों अलिहूँ सखि ! कोष पराग के खोलन लागे |
प्रीति भरी रससानी सी बानी में कोकिल को मन बोलन लागे |
स्वाती के बूँद लखौं अजहूँ पिय आये नहीं कछु नीक न लागे |
ऋतुएँ नहि सोहैं बसंत बिना निशि चंद बिना कवि छंद बिना |
नहि सोहै सुमन मकरंद बिना जिमि कामिनि प्रेम प्रबंध बिना |
भगवान न सोहत भक्त बिना वन सोहै न मत्त गयंद बिना |
छलकै रस कुम्भ सुरेन्द्र चहै पर नारि न सोहत कंत बिना |
चंदा की चाँदनी सी चित की सितलाई है |
चन्दन सी चारु महक चटकीली चंपा सी ,
चकित चकात जात चटक गोराई है |
कचक कचोट चोट चितवनि सुलोचनि की ,
रुचिर सुचक्री चितचोरनी बनाई है |
चकई चकोर प्रीति चलत सुचाल ब्याल ,
चित चोरिबे को चली चित में समाई है |
लखिकै चहुँ ओर सुनैनन सों जस मोरनी कंठ घुमाय गयी |
चमकी-दमकी बिजुरी बनिकै बिजुरी जियरा पै गिराय गयी |
रूप की रानी सयानी जवानी सों पानी मा आगि लगाय गयी |
उर पीर उठै न घटे न बढे अस नैन सों तीर चलाय गयी |
सखि लागेहु बौर रसाल की डाल सुगंध समीर हू डोलन लागे |
फूलि रहीं सरसों अलिहूँ सखि ! कोष पराग के खोलन लागे |
प्रीति भरी रससानी सी बानी में कोकिल को मन बोलन लागे |
स्वाती के बूँद लखौं अजहूँ पिय आये नहीं कछु नीक न लागे |
ऋतुएँ नहि सोहैं बसंत बिना निशि चंद बिना कवि छंद बिना |
नहि सोहै सुमन मकरंद बिना जिमि कामिनि प्रेम प्रबंध बिना |
भगवान न सोहत भक्त बिना वन सोहै न मत्त गयंद बिना |
छलकै रस कुम्भ सुरेन्द्र चहै पर नारि न सोहत कंत बिना |
bahut sundar rachna
ReplyDeletesurendraji,
basant panchmi ki hardik badhai
सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी
ReplyDeleteबहुत प्रभावी ...आपका अंदाज बहुत बढ़िया है .....यूँ ही लिखते रहें
चित्त चोरिबे को चली चित्त में समायी है ....
ReplyDeleteछंद लिखना ही अपने आप में समग्रता का परिचायक होता है....भव लिखना सरल है सुरेन्द्र जी पर काव्य लिखना कठिन.... और आप छंद को भी उसे सहजता से लिखते हैं जैसे मुक्तक .... मुझे आप पर फक्र है सुरेन्द्र जी.
कोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना, दिलकश अंदाज.
ReplyDeleteबसन्त की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
waah... bahut achha laga
ReplyDeleteकोमल भाव, वसन्त की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteसखि लागेहु बौर रसाल की डाल सुगंध समीर हू डोलन लागे |
ReplyDeleteफूलि रहीं सरसों अलिहूँ सखि ! कोष पराग के खोलन लागे |
प्रीति भरी रससानी सी बानी में कोकिल को मन बोलन लागे |
स्वाती के बूँद लखौं अजहूँ पिय आये नहीं कछु नीक न लागे |
बहुत ही बढ़िया छंद.भाषा पर आपकी पकड़ अद्भुत.
शुभ कामनाएं.
बहुत अच्छे छंद हैं । उत्कृष्ट , अद्भुत
ReplyDeleteआपकी रचनायें मन मोह लेती हैं !
ReplyDeleteकोमल भावों से परिपूर्ण सुन्दर बासन्ती गीत के लिये सुरेन्द्र जी को शत शत बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर श्रीमान जी ! आभार.
ReplyDeletewah.baut hi sunder hai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवसन्त की हार्दिक शुभकामनायें !
http://unluckyblackstar.blogspot.com/
झंझट के झटकों में वसंत के मौसम के लटके-झटके बहुत खूबसूरत बन पड़े हैं. हिन्दी साहित्य का रीति-कालीन माहौल इन छंदों में छा गया है. बधाई और वसंत-पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं .
ReplyDeleteकोमल भावों से परिपूर्ण सुन्दर बासन्ती गीत,
ReplyDeleteसुन्दर आलेख के लिए आभार और वसंत-पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं .
अहहहहः...परमानन्द की प्राप्ति हो गयी...
ReplyDeleteनीरज
वाह ......
ReplyDeleteबसंत को छंद में सजा दिया आपने तो .....
बहुत खूब .....
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
behtarin surendra ji........
ReplyDeleteaapko vasant panchami ki dher saari shubhkaamna.
ReplyDeleteसुन्दर छंद.
ReplyDeleteसुरेन्द्र सिंह जी ,
ReplyDeleteनमस्कार !
बसंत के रंग और रस से भीगे कवित्त और सवैयों के लिए जितना आभार व्यक्त करूं , जितनी बधाई दूं , कम है ।
ऐसा प्रतीत होता है कि रीतिकालीन किसी छंद के उद्भट विशेषज्ञ कवि को पढ़ रहे हैं … वाह वाह !
बहुत सुंदर !
बसंत पंचमी की शुभ कामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुंदर छंद।
ReplyDeleteवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
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समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
आप सभी विद्वान/विदुषी रचनाकारों का मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ | आप ने मेरे ब्लॉग पर आकर रचनाओं को पढ़ा और अपनी अनमोल टिप्पड़ियों से मेरा उत्साहवर्धन किया ,मैं वास्तव में अभिभूत हूँ | पुनः आप सब को कोटिशः धन्यवाद |
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