महल का कब ? सड़क का साथ करती है मेरी कविता |
वख्त से भी तो दो- दो हाथ करती है मेरी कविता |
नफरतों से झगड़ती है तो अम्नोंचैन की खातिर ,
जहाँ में प्रेम का उन्माद भरती है मेरी कविता |
नहाकर चांदनी में ये कभी लगती परी जैसी ,
कभी आगों की दरिया से गुजरती है मेरी कविता |
रंग पर रंग का मौसम फुहारें घन-घटाओं की ,
फाल्गुन में भी सावन बन बरसती है मेरी कविता |
अंधेरो की सियासत से अकेली जूझती भी है ,
जुगनुओं की तरह पल पल चमकती है मेरी कविता ||
शहर की तंग गलियों में घुटन की पीर पी-पी कर ,
खेत-खलिहान के रस्ते विचरती है मेरी कविता |
थपेड़े झेलती है काँपती आँसू बहाती है '
रोज पतझड़ के साये में सँवरती है मेरी कविता |
प्रशंसनीय बहुत ही उम्दा रचना .....बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteरंग पर रंग का मौसम फुहारें घन-घटाओं की ,
ReplyDeleteफागुन में भी सावन बन उतरती है मेरी कविता
नफरतों से झगड़ती है तो अम्नोंचैन की खातिर ,
जहाँ में प्रेम का उन्माद भरती है मेरी कविता
बेमिसाल पंक्तियाँ..... गहरे अर्थ लिए आपकी कविता .....बधाई
शहर की तंग गलियों में घुटन की पीर पी-पी कर ,
ReplyDeleteखेत-खलिहान के रस्ते विचरती है मेरी कविता |
प्रशंसनीय बहुत ही उम्दा रचना .....बधाई स्वीकार करें
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
लुभाती, मन भाती सुंदर कविता.
ReplyDeleteबेमिसाल पंक्तियाँ..... गहरे अर्थ लिए आपकी कविता .....बधाई
ReplyDeleteनहाकर चांदनी में ये कभी लगती परी जैसी ,
ReplyDeleteकभी आगों की दरिया से गुजरती है मेरी कविता |
tabhi itni suljhi hui hai kavita
sabko ek disha deti hai ..kavita ..sundar abhivykti .badhai
ReplyDeleteनहाकर चांदनी में ये कभी लगती परी जैसी ,
ReplyDeleteकभी आगों की दरिया से गुजरती है मेरी कविता |
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति.
कभी ग़ज़ल के रूप में भी ढल जाती है आपकी कविता
सलाम.
प्रेरणात्मक ! मेरे ब्लोग पर पोस्ट आप का इंत्ज़ार कर रही है !
ReplyDeleteआपकी भाषिक संवेदना पाठक को आत्मीय दुनिया की सैर कराने में सक्षम है।
ReplyDeleteआप प्रभाव डालने में सफल रहे भैया !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको!!
बहुत सुन्दर है आपकी कविता। बधाई।
ReplyDeletebahut payari hai aapki kavita
ReplyDeletesabse nyari hai aapki kavita
hamare hiahsaso ko shabd mile
jaise hamari hi hai aapki kavita
नफरतों से झगड़ती है तो अम्नोंचैन की खातिर ,
ReplyDeleteजहाँ में प्रेम का उन्माद भरती है मेरी कविता |
नहाकर चांदनी में ये कभी लगती परी जैसी ,
कभी आगों की दरिया से गुजरती है मेरी कविता |
बहुत ही प्यारी है आपकी कविता...
हर रंग में न्यारी है आपकी कविता ...
प्रियवर सुरेन्द्र सिंह "झंझट"जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
कविता की व्याख्या करती हुई सरस कविता के लिए आभार !
बस, ज़रा-सी दूरी रह गई बह्रे-हज़ज पर आधारित मुकम्मल ग़ज़ल बनने में …
विविध भाव-भंगिमाओं के साथ कई विषय समाहित हुए हैं आपकी कविता में ,
जिनमें पाठक बंध कर रह जाता है ।
महल का कब ? सड़क का साथ करती है मेरी कविता
वक़्त से भी तो दो- दो हाथ करती है मेरी कविता
वाह जी वाऽऽह !
नहाकर चांदनी में ये कभी लगती परी जैसी ,
कभी आगों की दरिया से गुजरती है मेरी कविता
शुभकामनाएं हैं …
♥ बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
aapki kavita ko shat-shat naman .bahut sarthak rachna .
ReplyDeleteमहल का कब ? सड़क का साथ करती है मेरी कविता |
ReplyDeleteवख्त से भी तो दो- दो हाथ करती है मेरी कविता |
बहुत खूब कहा है. सुंदर रचना.
बहुत अच्छी लगी हमें आपकी ये कविता !
ReplyDeleteवाह ....बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द है ....।
ReplyDeleteसुन्दर ख्यालात का मुजाहरा है आपकी रचना में....
ReplyDeleteकविता की यही तो बानगी है कि वह हमेशा सच और मनोभावों के करीब होती है.
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबदकिस्मती की नींदों में, उम्मीदों की अंगड़ाईयां लेकर
ReplyDeleteअंधेरों के श्मशान में, प्रभात करती है मेरी कविता
बहुत खूब, झंझटों से निपटे रहे हैं। बधाई हो।
excellent...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteसुरेंद्र जी रसबतिया में आपका स्वागत है बहुत बहुत धन्यवाद आपकी कविता पढ़ी अच्छी लगी। बिल्ली का संन्यास काफी रोचक शीर्षक है जो आपने अपने परिचय में ज़िकर् किया है इसे कैसे पढ़ा जा सकता है
ReplyDeleteथपेड़े झेलती है काँपती आँसू बहाती है '
ReplyDeleteरोज पतझड़ के साये में सँवरती है मेरी कविता |
best lines....
शहर की तंग गलियों में घुटन की पीर पी-पी कर ,
ReplyDeleteखेत-खलिहान के रस्ते विचरती है मेरी कविता |
थपेड़े झेलती है काँपती आँसू बहाती है '
रोज पतझड़ के साये में सँवरती है मेरी कविता |
बहुत खूब ....
अब राजेन्द्र जी ने इसे ग़ज़ल के आस पास कह ही दिया तो गुरु भी उन्हें ही बना लीजिये .....
पंजाबी में कहावत है ....
जो बोले सो कुंडा खोले .....
):):
आदरणीया हीर जी ,
ReplyDeleteसप्रेम अभिवादन !
आप मेरे ब्लॉग पर बराबर आती हैं और अपनी अनमोल राय देती हैं , इसके लिए मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँ | भविष्य में भी स्नेह बनाये रखेंगी , पूरा विश्वाश है |
रही बात भाई राजेन्द्र स्वर्णकार जी को गुरु बना लेने की तो यह बात कुछ जँची नहीं | मैं राजेन्द्र जी की रचनाधर्मिता एवं उनके सरल-सहज स्वभाव का प्रशंसक हूँ | मैं मानवीय , बांधवीय और मैत्रीय संबंधों को अहम् मानता हूँ | राजेन्द्र जी मेरे भाई सदृश्य हैं |
बात जब ग़ज़ल की आती है तो मुकम्मल और गैर मुकम्मल दोनों तरह की ग़ज़लें लिखी जा रही हैं | मेरी एक ख़राब आदत है कि कभी-कभी मैं तुरंत की लिखी रचना को बिना परिष्करण के ही ब्लाग पर पोस्ट कर देता हूँ जिससे छंद शास्त्र की कुछ मात्रिक कमियों का हो जाना स्वाभाविक है | मेरी इसी ब्लाग पर मुकम्मल ग़ज़लें भी पोस्ट हैं | कभी-कभी 'बह्ने हज़ज' और 'pingal' ki कसौटी पर खरा उतारने ki चाहत में रचना के भाव और उसकी सम्प्रेषण क्षमता क्षरित होने लगते हैं | इसीलिए आज बहुत से रचनाकार ग़ज़ल के साथ-साथ 'ग़ज़लनुमा' और हज़ल भी लिख रहे हैं |
वैसे भी किसी एक रचना के आधार पर गुरु बदल देने ki बात उचित नहीं लगती | सौभाग्य से मुझे 'हैरत पहाड़ापुरी' और जिगर मुरादाबादी के नवासे जनाब नियाज़ अहमद 'सहर' जैसे उर्दू के नामचीन शायरों का काफी सान्निध्य मिला है और उनसे बहुत कुछ सीखने का अवसर भी | मेरा ग़ज़ल संग्रह 'जीत कहूं या हार जिंदगी' शीघ्र प्रकाश्य है जिसकी भूमिका 'नियाज़ सहर ' साहब ने लिखी है |
भाई राजेन्द्र जी के संकेत के बाद मैंने कमियां दूर करने का प्रयास किया है , अब शायद पोस्ट रचना 'ग़ज़ल' हो गयी हो |
मैं आपकी रचनाधर्मिता और सौम्य स्वभाव का प्रशंसक रहा हूँ , आज भी हूँ | उम्मीद है उदगार को अन्यथा नहीं लेंगी |
पुनः बहुत-बहुत आभार
आदरणीय सर्जना शर्माजी ,
ReplyDeleteपहले तो आपका बहुत-बहुत आभार | अपने मेरी प्रकाशित कृति 'बिल्ली का संन्यास ' को पढने की उत्सुकता जाहिर की है , यह एक बाल कविता संग्रह है | इसमें कई रचनाएँ हास्य-व्यंगपरक भी हैं | संग्रह की कुछ रचनाएँ शीघ्र ही ब्लाग पर पोस्ट करूंगा |
पुनः कोटिशः धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना बधाई
ReplyDeleteअंधेरो की सियासत से अकेली जूझती भी है ,
ReplyDeleteजुगनुओं की तरह पल पल चमकती है मेरी कविता
wah wah .. badhaiyaan sweekar karen ,, khoobsurat prastuti
Very Nice, Good take on our own poems. Many times we talk abt everything else thn our poems!!!
ReplyDeleteआपकी कविता में जीवन के सारे आयाम हैं सुरेन्द्र जी....और ये सच में हैं ...मैं लगातार आपको पढता आ रहा हूँ ...आपकी ये कविता वाकई आप की विषय सूची है ...इसके एक-एक शब्द के लिए आपके लेखन के पन्ने पलटने ही होंगे .....!जीवन और जन से जुड़े रहने के लिए साधुवाद भाई !!
ReplyDelete.
ReplyDeleteनफरतों से झगड़ती है तो अम्नोंचैन की खातिर ,
जहाँ में प्रेम का उन्माद भरती है मेरी कविता ...
waah ! waah ! waah !
A mind blowing creation !
I enjoy reading the wonderful ghazals by you .
.
आपकी रचनाएॅ ऐसे ही हम पर बरसती रहे और हम उस बारिश में सदा भीगतें रहे। बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteकेवल रचना पढ़ टिप्पणी करती तो वह बिलकुल अलग होती,पर अब चूँकि टिप्पणियां भी पढ़ ली हैं...तो यही कहूँगी कि रचना भाव प्रवाह सम्प्रेषणशीलता हर तरह से इतनी मुक्कम्मल और बेजोड़ है कि इस पर इस प्रकार की टिपण्णी मुझे भी उचित न जान पडी...
ReplyDeleteमेरे हिसाब से बेहतरीन रचना है...बेहतरीन...
सुंदर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteभावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई।
bahut sundar bhav abhivyakti-ek achchhe kavi ki kavita aisee pareshaniyon ko mahsoos avashay karti hai...
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर सुरेन्द्र सिंह जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
अचानक आपके यहां दुबारा आना हुआ तो पता चला कि कुछ ग़लतफ़हमी का माहौल बन रहा है ।
हरकीरत 'हीर'जी जितनी गंभीर रचनाएं लिखती हैं , कमेंट करते समय वे
तमाम बोझिलता से परे सर्वत्र हल्का फुल्का परिहास , विनोद का वातावरण बनाती हुई पाई जाती हैं , यह सर्वत्र विदित है ।
मुझे तो अभी ब्लॉगिंग करते हुए पूरा एक साल भी नहीं हुआ … लेकिन इस बात का एहसास शुरू से ही हो गया ।
उनके कहे का हालांकि आपने ज़्यादा बुरा माना भी नहीं है … फिर भी क्योंकि मेरे कमेंट से जुड़ी बात मूल में है ,
इसलिए मैं आपसे निवेदन करता हूं कि इस बात को सामान्य सौहार्द पूर्ण विनोद मानते हुए अधिक तूल न दें , कृपया !
निस्संदेह आप स्वयं छंद के गुणी रचनाकार हैं , मैं आपके यहां कितनी ही बार आपके गुणों की प्रशंसा करके गया हूं ।
और मैं तो स्वयं घोषित आजीवन विद्यार्थी हूं । आप तो अच्छा लिखने वालों में हैं , आपसे क्या मैं तो निम्न रचनाएं करने वालों से भी
सीखते रहने की प्रवृत्ति रखता हूं ।
हां , अपनत्व से कोई (नामधारी भी )मेरे पास आता है तो मेरे ज्ञान , मेरी समझ , मेरी सामर्थ्य के अनुसार मैं
काव्यशास्त्र के नियमों की सीमा में रचना शिल्पगत भावगत दोष दूर करने का कार्य ईमानदारी से सरस्वती की आराधना मानते हुए करता रहता हूं ।
कवि का मन कोमल होता ही है … आपको हरकीरत 'हीर'जी के विनोद से कष्ट हुआ हो तो मैं सविनय क्षमायाचना करता हूं ।
लेकिन बंधुवर , आपने अपनी रचना को ग़ज़ल घोषित करके लिखा भी नहीं था
तब ही मैंने कहा था कि ज़रा-सी दूरी रह गई बह्रे-हज़ज पर आधारित मुकम्मल ग़ज़ल बनने में …
आदरणीया रंजनाजी साक्षात् करुणामूर्ति हैं , मुझ सहित हर ढंग के रचनाकार को उनका निरंतर स्नेह और प्रोत्साहन मिलता रहता है ;
( आज के बाद न मिला तो लगेगा कि उन्होंने नाहक़ मन में ग्रंथि पाल ली है
… लेकिन उनका स्नेह सागर कभी सूख नहीं सकता ऐसा मेरा विश्वास है । )
- वे स्वीकार करेंगी कि ग़ज़ल की गणित से वे पूर्णतः परिचित नहीं हैं ।
बहुत श्रेष्ठ रचना है यह , लेकिन इस रचना के संदर्भ में मेरा अब भी यही कहना है कि ज़रा-सी दूरी रह गई बह्रे-हज़ज पर आधारित मुकम्मल ग़ज़ल बनने में …
पहले क्या था , स्मरण नहीं (अब तो कॉपी करके रख लिया है ) आप कहते हैं कि
भाई राजेन्द्र जी के संकेत के बाद मैंने कमियां दूर करने का प्रयास किया है , अब शायद पोस्ट रचना 'ग़ज़ल' हो गयी हो |
यहां मेरा विद्वता प्रदर्शित करने का कोई मानस नहीं था , न है ।
इस रचना को ग़ज़ल ही होना चाहिए , ऐसा भी आग्रह न तब था न अब है । बस, इतना आशय था कि बहुत निकट है , मा'मूली दूरी है ।
बहरहाल पुनः करबद्ध निवेदन है कि आपसी सौहार्द में नाहक़ कमी न आए …
# ब्लॉग जगत की यह सुविधा बहुत बड़ी कमी भी बन कर बार बार सामने आती है कि तृतीय पक्ष , विषय की जानकारी और समझ न रखते हुए भी
उस बात पर अपना पक्ष रखता है , मूल प्रविष्टि को दरकिनार करके ।
मेरे ब्लॉग पर प्रस्तुत सामग्री विषयवस्तु पर मेरे अलावा कौन अधिकृत रूप से स्पष्टीकरण दे पाएगा … ??
लेकिन अनेक अनुभव हुए हैं , इधर - उधर से भ्रमण करते पथिक आ'कर घर-मालिक के बोलने से पूर्व कुछ का कुछ कह कर रवाना हो जाते हैं ,
चाहे फिर चार माह तक उधर वे झांकने भी न आएं :)
यह बात तो प्रसंगवश कही है ,कृपया, इस पोस्ट से किसी रूप में न जोड़ें ।
आशा है , सद्भाव - स्नेह हमेशा की तरह बना रहेगा …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अंधेरो की सियासत से अकेली जूझती भी है ,
ReplyDeleteजुगनुओं की तरह पल पल चमकती है मेरी कविता ।
रचना के भाव और शिल्प में मौलिकता स्पष्ट परिलक्षित हो रही है।
कवि और कविता की क्षमता अनुपमेय है।
bahut achchi lagi.
ReplyDeleteथपेड़े झेलती है काँपती आँसू बहाती है '
ReplyDeleteरोज पतझड़ के साये में सँवरती है मेरी कविता |
अच्छी सुंदर रचना
आदरणीय राजेन्द्र जी,
ReplyDeleteसप्रेम नमस्कार
इधर दो दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका |
सच्चे हीरे की परख कोई कुशल जौहरी ही कर सकता है | आपने मेरी कविता में कुछ हीरे जैसा देखा जो मामूली तराश से मुकम्मल हीरा बनने में समर्थ है , तभी अपनी बहुमूल्य राय व्यक्त की | यह मेरे लिए हर्ष की बात है | इसमें कुछ बुरा मानने जैसा है ही नहीं |
जिन्दगी, मृत्युपर्यंत कुछ न कुछ सीखते रहने की अनवरत प्रक्रिया ही है | जहाँ, जिस भी रूप में, किसी से भी , कुछ भी नया सीखने योग्य मिलता है तो उसे सीखना चाहिए ; मैं भी इसी सिद्धांत का समर्थक हूँ |
मैं ब्लाग पर हुई आपसी बातचीत को सार्थक चर्चा मान रहा हूँ और इसे सकारात्मक तौर पर ही देख रहा हूँ |
आदरणीया रंजना जी ने भी आप ही की तरह कविता के भाव और सम्प्रेषण क्षमता को आधार मानकर ही अपनी राय व्यक्त की है , न कि छंद- शास्त्र को , अतः इसमें भी कोई बुरा मानने जैसी बात नहीं |
आदरणीया हरकीरत 'हीर' जी की रचनाधर्मिता और व्यक्तित्व का मैं ह्रदय से सम्मान करता हूँ | आपकी रचनाओं में तो कभी-कभी मैं
अपनी रचनाएँ झाँक लेता हूँ किन्तु हीर जी की रचनाओं को तो सिर्फ महसूस ही करता हूँ | हीर जी का हास-परिहास और विनोदी स्वभाव भी अनोखा लगा |
अतः अगर कहीं मेरे कारण 'हीरजी' अथवा आपको अनजाने कोई कष्ट पहुंचा हो तो क्षमा करेंगे | पूर्ववत आत्मिक सम्बन्ध बनाये रखें रहे | कहीं कोई कटुता मेरे मन में नहीं है और मेरा ऐसा ही विश्वास आप पर भी है |
हम सब एक डाल के पंछी हैं , मिलकर चहचहाते हैं तो असीम आनंद मिलता है |
बहुत-बहुत हार्दिक आभार सहित |
आपका अपना ही.....
सुरेन्द्र सिंह 'झंझट'
राजेन्द्र जी,हीर जी और सुरेन्द्र जी आप तीनो ही कलम के इतने बड़े उस्ताद हैं कि आपका लिखा पढना हम पाठक अपना सौभाग्य समझते हैं....मेरी दृष्टि में कोई किसीसे कम नहीं...अपने अपने स्थान पर आप तीनो जगमगाते ,प्रकाश बिखेरते प्रदीप स्तम्भ है,जो साहित्य साधकों को मार्ग दिखाते हैं....यहाँ हुई चर्चाओं को व्यक्तिगत कदापि न लें...कोई बात छिड़ी ,इसपर सहमति असहमति बनी..और बस...
ReplyDeleteगुणी लोग बातें करें, विमर्श करें तो इससे लेखक का लेखन तो परिष्कृत होता ही है,साहित्य भी समृद्ध होता है...