Thursday, September 2, 2010

शहीदों की मजारों पर..............

कुछ समय पहले मैंने किसी अख़बार के भीतरी पन्ने के एक कोने में छपी एक खबर पढ़ी की  एक अमर शहीद की नब्बे वर्षीया विधवा के पास रहने के लिए घर नहीं है | वह एक खंडहरनुमा कमरे में किसी तरह गुजर बसर कर रही है , जिसकी छत से बरसात का लगभग आधा पानी अन्दर आ जाता है | बहुत लोगों ने यह खबर पढ़ी होगी | कुछेक प्रतिक्रियाएं भी आयीं | इसी क्रम में अभी कुछ दिनों पहले अख़बार में एक और खबर छपी | क़स्बा उतरौला , जनपद -बलरामपुर , उ० प्र० निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व० महादेव प्रसाद जी का प्रपौत्र कस्बे की सड़कों और गलियों में भीख मांग रहा है | वे दो भाई हैं |उनके रहने को न तो घर है और न खेती के लिए जमीन | छोटे भाई का एक पैर बीमारी के कारण ख़राब हो गया है और बड़ा भाई उसीके इलाज के लिए भीख मांग रहा है | वे सड़क के किनारे या किसी दयालु के दरवाजे पर रात  में सो जाते हैं और अगल-बगल के लोगों से खाने को जो कुछ मिल जाता है उसी से अपने पेट की आग बुझा लेते हैं | इस समाचार पर भी कुछ व्यक्तियों एवं संस्थाओं की प्रतिक्रियाएं पढने को मिलीं | समाज के कुछ बुद्धिजीवियों  ने राज्य एवं केंद्र सरकार को संवेदनहीन कहते हुए भर्त्सना की | कुछ स्थानीय नेताओं ने यथासंभव मदद करने का वादा किया तो अधिकारियों ने जांच करके उचित कार्यवाही किये जाने की बातें कहीं | तीसरे दिन सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो गया | मन ग्लानि से भर गया | शायद कुछ रुपये अमर शहीद की बुजुर्ग विधवा को दे दिए गए हों लेकिन नया घर तो नहीं ही दिया गया होगा | स्वतंत्रतासंग्राम सेनानी के प्रपौत्र को भी शायद कुछ आर्थिक सहायता दे दी गयी हो किन्तु रहने के लिए घर ,जीविकोपार्जन का कोई स्थाई साधन और बीमार भाई के सम्यक इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं ही उपलब्ध कराई गई होगी |                                          
                                                 ऐसा क्यों ? देश को आजादी   दिलाने के लिए  जिन बीर  बांकुरो ने या तो  लड़ते-लड़ते  अपने प्राण निछावर कर दिए  या आजीवन कारावास और काला पानी की सजा पाकर भयंकर यातनाएं झेली , उनके परिवार के लोगों को इस देश और समाज ने क्या दिया | हम सभी भारतवासियों को अंग्रेजों  की गुलामी से मुक्त कराने के एवज  में आज इनके परिवारों को ऐसे दिन क्यों देखने पड़ रहे हैं  ? हम कितने स्वार्थी और संवेदनहीन हो गए  हैं ? केंद्र और राज्य सरकारें जानबूझकर इनकी उपेक्षा  क्यों कर रही हैं ? सरकारी नौकरी वाले वेतन बढ़ाने के लिए हड़ताल करते हैं ,  सरकारें  झुकती हैं , मांगें मानती हैं | कुछ न कुछ वेतन जरूर बढ़ता है | व्यापारी हड़ताल करते हैं उन्हें भी रियायतें मिलती हैं | और तो और देश की संसद  में जनता द्वारा चुने गए सांसद भी अपना  वेतन कई गुना बढ़ाकर   नौकरशाहों से अधिक पाने की लालच में समानांतर लोकसभा कार्यवाही तक चलाते हैं | राजनैतिक पार्टियाँ देश स्तर से  ग्राम स्तर तक अपने सदस्य बनाती हैं | चुनाव  में अपनी हार जीत का सर्वे कराती हैं |
                                                       फिर क्या कारण है कि  आजादी की लड़ाई में शहीद बलिदानियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों  के परिवारों  की संख्या का सर्वे केंद्र और राज्य सरकारें नहीं  कराती| उनकी वर्तमान पारिवारिक स्थिति का आकलन करके आधारभूतआवश्यकताओं  को क्यों नहीं पूरा करती  ? हम आम लोग इसे क्यों अनदेखा कर रहे हैं ? हम इनकी दुर्दशा को समाप्त करने और इन्हें पूरी तरह सरकारी संरक्षण   दिए जाने के लिए कोई आन्दोलन क्यों नहीं चलाते ? जबकि कोई सांसद या विधायक , चाहे वह एक दिन के लिए ही क्यों न चुना जाए , पूरी पेंशन   और अन्य सुविधायें पाने का हक़दार हो जाता है तो जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुतियाँ दे दी  उनके परिवार के साथ ऐसा क्यों ? हम हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस  और गणतंत्र दिवस क्यों मनाते हैं   ? यह देश और देश के लिए अपना सब कुछ लुटा देने वालों के  साथ मजाक नहीं तो और क्या है ?
                                                     क्या इतना ही गा लेने से इनके प्रति हमारे कर्तव्यों की इतिश्री हो जाती है -
                                                       " शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस  मेले ,
                                                         वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा |"                        

1 comment:

  1. इस देस मैं शहीदो के साथ यही होता आया है और शायद होता रहेगा, इसी लिए मैने पांच साल NCC मैं लगाने के बाद भी आर्मी नही जोइन की. यहाँ तो किटबून मैं भी शहीदों को आतंकवादी और भगोड़ा बताया जाता है, ना जाने कितनी ख़बरे पड़ी मैने. पैसा कमाने की इतनी घिनौनी और गंदी होड़ शायद ही मैने कहीं देखी या सुनी हो !

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