इधर-उधर लड़ने से पहले खुद अपने से लड़कर देख |
किसी परिंदे जैसा पहले पर फैलाकर उड़कर देख |
नफरत की दीवार ढहाकर प्यार की खेती-बारी कर ,
हरियाली फिर चैनोअमन की वतन में अपने मुड़कर देख |
टूटी हुई पतंग-जिन्दगी , बेमकसद क्यों ढोता है ?
उड़ेगा फिर से आसमान में एक बार तो जुड़कर देख |
कण-कण में मालिक बसता है क़ैद नहीं दीवारों में ,
मीरा औ रसखान की तरह अपने अन्दर घुसकर देख |
धर्म के ठेकेदारों की परवाह न कर बस दिल की सुन ,
खड़ा कबीरा अलख जगाता तू भी शामिल होकर देख |
बेहद खूबसूरत संदेश देती रचना।
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