मालिक तो घट-घट बसा जग उसका विस्तार |
दीवारों में क़ैद हैं कुछ संकीर्ण विचार |
मंदिर में घंटा बजे मस्जिद में हो अजान |
दोनों में क्या फर्क जब एक राम-रहमान |
प्रेमडोर में है बंधी इक दूजे की जान |
हिन्दू-मुस्लिम बाद में पहले हैं इंसान |
आओ कुछ ऐसा करें पल-पल उपजे हर्ष |
खड़ा हिमालय सा रहे अपना भारतवर्ष |
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ReplyDeletebeautiful creation
ReplyDeleteएक बहुत प्यारी,गंभीर रचना !!!
ReplyDeleteकभी भटकते भटकते " आवारगी" पर भी नज़र -ऐ--इनायत करें.