Thursday, September 30, 2010

---एक राम-रहमान

मालिक तो घट-घट  बसा   जग उसका विस्तार |
दीवारों    में     क़ैद     हैं     कुछ संकीर्ण विचार  |

मंदिर में    घंटा   बजे     मस्जिद में हो  अजान |
दोनों में क्या फर्क जब     एक       राम-रहमान |

प्रेमडोर   में है    बंधी      इक    दूजे   की   जान |
हिन्दू-मुस्लिम   बाद में     पहले      हैं     इंसान |

आओ कुछ ऐसा करें     पल-पल     उपजे   हर्ष  |
खड़ा हिमालय सा रहे    अपना          भारतवर्ष | 
 

3 comments:

  1. एक बहुत प्यारी,गंभीर रचना !!!
    कभी भटकते भटकते " आवारगी" पर भी नज़र -ऐ--इनायत करें.

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