भाईचारा और एकता का अमृत बरसाती है |
देशवासियों और देश को सुखी देख हर्षाती है |
अंगारों में पड़कर भी जो आग उगलती रहती है |
सुविधाओं के नाम बिकी वह कलम नहीं हो सकती है |
देख देश को संकट में गर कलम बनी तलवार नहीं |
तो फिर कलमकार कहलाने का हमको अधिकार नहीं |
नीचे
ReplyDeleteअंगारों में पड़कर भी जो आग उगलती रहती है |
ReplyDeleteसुविधाओं के नाम बिकी वह कलम नहीं हो सकती है |
बहुत बढ़िया मित्र ... अच्छी रचना ....
बहुत बेहतरीन!
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