शब्दों का हरिश्चंद्र हूँ जयचंद नहीं हूँ |
बेबाक कलमकार हूँ अनुबंध नहीं हूँ |
दिल चाहता दूं नोंच गद्दारों का मुखौटा ,
अफ़सोस मगर इतना भी स्वछंद नहीं हूँ ||
कहता हूँ सीधी बात कोई शेर नहीं है |
लफ्फाजी या शब्दों का हेरफेर नहीं है |
दिल को कुरेद जाती है बच्चों की परवरिश ,
वरना निराला बनने में कोई देर नहीं है||
अन्याय जो बर्दाश्त कभी कर नहीं सकते |
तलवार तोप से भी कभी डर नहीं सकते |
हर दिल में सदा रहते शूरवीर की तरह,
होतें हैं जो शहीद कभी मर नहीं सकते ||
गुंडों का नहीं है ये दलालों का नहीं है |
डंडों का नहीं है ये हवालों का नहीं है |
यह देश है हमारे शहीदों की अमानत ,
यह देश ,देश बेचने वालों का नहीं है ||
ओजपूर्ण कविता, धन्यवाद.
ReplyDeleteआपको रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनांए.
waah waah
ReplyDeleteखून में रवानी पैदा करने वाली कविता है।
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है।