Tuesday, August 24, 2010

यह देश है हमारे शहीदों की अमानत , यह देश ,देश बेचने वालों का नहीं है ||

शब्दों का हरिश्चंद्र   हूँ जयचंद नहीं हूँ |
 बेबाक कलमकार हूँ  अनुबंध नहीं हूँ |
दिल चाहता दूं नोंच गद्दारों का मुखौटा ,
अफ़सोस मगर इतना भी स्वछंद नहीं हूँ ||


कहता हूँ  सीधी  बात  कोई  शेर  नहीं है |
लफ्फाजी या  शब्दों का  हेरफेर  नहीं है |
दिल को कुरेद जाती है बच्चों की परवरिश ,
वरना निराला बनने में   कोई देर नहीं है||


अन्याय जो बर्दाश्त कभी  कर नहीं सकते  |
तलवार तोप से  भी  कभी डर नहीं सकते   |
हर दिल  में सदा  रहते  शूरवीर  की  तरह,
होतें हैं जो शहीद  कभी  मर  नहीं  सकते  ||


गुंडों का नहीं है ये दलालों का नहीं है |
डंडों का नहीं है ये हवालों का नहीं है |
यह देश है हमारे शहीदों की अमानत ,
यह देश ,देश बेचने वालों का नहीं है ||

3 comments:

  1. ओजपूर्ण कविता, धन्‍यवाद.

    आपको रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनांए.

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  2. खून में रवानी पैदा करने वाली कविता है।
    ‍हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है।

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