जीत कहूं या हार जिंदगी |
है कितनी दुश्वार ज़िन्दगी |
कभी कभी लगता था जैसे
है फूलों का हार ज़िन्दगी |
घूँट हलाहल के कह दूं , या-
कहूं सुधा की धार ज़िन्दगी |
ऊपर से तो खिली खिली ,पर -
भीतर से पतझार ज़िन्दगी |
कदम कदम पर कर बैठी है
संघर्षों से प्यार ज़िन्दगी |
कभी वक़्त की शहजादी तो
कभी वक़्त की मार ज़िन्दगी |
मुड़ मुड़ कर करती रहती है
जीने से इन्कार ज़िन्दगी |
जीना क्या मरना क्या उसका
मिली जिसे बीमार ज़िन्दगी |
शायद इससे अच्छी होगी
जीवन के उस पार ज़िन्दगी |
वाह वाह वाह
ReplyDeleteजिंदगी का पूरा हाल सुना दिया।
मजेदार और रोचक लगा
http://chokhat.blogspot.com
bahut rochak kavita hai dhanyawad.
ReplyDeleteपेश की गई ग़ज़ल अपने मापदंड पर पूरी तरह खरी है...
ReplyDeleteकदम कदम पर कर बैठी है
संघर्षों से प्यार ज़िन्दगी |
वाह...बहुत खूब
कभी वक़्त की शहजादी तो
कभी वक़्त की मार ज़िन्दगी
सच बयान किया है आपने.
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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