Tuesday, August 17, 2010

मुक्तक

तिल तिल जलाता हुआ दिया हूँ |
जाने कितना    तिमिर   पिया हूँ |
नियति   हमारी   अँधियारा ,पर -
कितने घर    उजियार    किया हूँ  |

वेदना     का     घर हूँ मै |
वज्र     से   बढ़कर     हूँ मै |
तुम भी इक ठोकर लगा दो ,
राह    का पत्थर   हूँ     मै |

निर्वासित सा जीवन मेरा
              एक अजनबी ,एक अपरिचित |
सन्नाटा ही साथी जिसका
              परम मित्र एकांत अपरिमित |
तम का हूँ अभ्यस्त
               उजाले से वंचित रहने दो |
गुमनाम मुझे रहने दो |


          

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