उनके दिन बहुरे हैं शायद |
बस थोडा सा गिरे हैं शायद |
नैतिकता की बातें करते ,
सब के सब सिरफिरे हैं शायद |
खुद से नज़रें चुरा रहे हैं |
कई बार हम मरे हैं शायद |
गाँधी जी के तीनो बन्दर |
जल्लादों से घिरे हैं शायद |
कानाफूसी गली गली में ,
कुछ बागी उभरे हैं शायद |
घुप्प अंधेरे के सागर में |
फिर जुगनू उतरे हैं शायद |
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