हे हमारी प्यारी राजभाषा हिंदी ! तू आज तक राष्ट्रभाषा भले न बन पाई हो लेकिन हम "हिंदी दिवस " के बहाने तेरी पूजा जरूर कर रहे हैं , पूजा क्या तेरी उपेक्षा पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं | आज ही नहीं हर वर्ष ! हिंदी दिवस नहीं बल्कि हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाडा के बहाने भी तुझे याद करते रहते हैं लेकिन वर्ष में बस एक बार | आखिर हम सरकारी विभाग हैं | हमारी तरह ही अर्धसरकारी विभाग , निगम , बैंक आदि भी तुझे भूले नहीं हैं | आखिर तुम्हे याद करने के लिए वर्ष में एक बार जो थोड़ा बहुत धन आबंटित होता है सो उसे खर्च तो करना ही होता है | कुछ बैनर वगैरह कार्यालयों के बाहर टंग जाते हैं तो लोगबाग एक नजर देखते तो जरूर हैं कि हिंदी के लिए कुछ हो रहा है ! अरे ! आज अंग्रेजी माध्यम से पढने वाले बच्चे किसी हिंदी कवि की एक कविता भी ढंग से मुह्जबानी सुना सकें तो इसे संसार का आठवां आश्चर्य नहीं तो क्या कहा जायेगा ? कार्यालयों में काम-काज की भाषा भी तू न बन सकी आज तक ! अंग्रेजीपरस्त अधिकारी-कर्मचारी अगर अंग्रेजी में न बोलें या काम न करें तो उनकी ठसक कैसे बरक़रार रह पायेगी ? महोदय हिंदी दिवस पर भाषण दे रहे हैं ,"बाई द वे हम हर साल हिंदी वीक मनाते हैं | हमें हिंदी को आनर देना चाहिए | हर ओफिसिअल को हिंदी में वर्क करना होगा तभी हम हिंदी को टॉप पोजीसन पर ला पाएंगे |" एक श्रोता बोला ," बस-बस रहने दें महोदय ! हो गया कल्याण ! हिंदी को उसके हाल पर छोड़ दें ! महोदय , हिंदी आपके भाषणों से नहीं , आपके हिंदी सप्ताह या हिंदी पखवाड़ों से नहीं बल्कि हिंदी तो जिन्दा है -- गाँव के अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोगों की जिंदगी में | उनकी बोलचाल में ! उनके रोने गाने में ! उनके रहन- सहन में !" भला कब सोचेगी सरकार और कब जागेंगे हमसब ? कैसे हो पायेगा वास्तविक विकास अपनी प्यारी भाषा हिंदी का ?
और अंत में ------
अपने भारतवर्ष की पहचान है हिंदी |
गरिमा है गौरव है हिंदुस्तान है हिंदी |
और अंत में ------
अपने भारतवर्ष की पहचान है हिंदी |
गरिमा है गौरव है हिंदुस्तान है हिंदी |
अपने भारतवर्ष की पहचान है हिंदी |
ReplyDeleteगरिमा है गौरव है हिंदुस्तान है हिंदी |
....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई.
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'शब्द-शिखर' : एक वृक्ष देता है 15.70 लाख के बराबर सम्पदा.
सुरेन्द्र जी............... चाहे कोई कुछ भी कहे लेकिन हिन्दी हिन्दुस्तान की आत्मा है।
ReplyDeleteअगर किसी देश की सभ्यता को मिटाना है तो पहले उसकी भाषा को मिटा दो, सभ्यता खुद मिट जायगी, और भारत मैं यह काफ़ी हद तक हो चुका है !
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