झंझट के झटके
Friday, September 24, 2010
घाट-घाट पर पण्डे हैं
चारों ओर हथकंडे हैं |
घाट-घाट पर पण्डे हैं |
लोकतंत्र के चीरहरण में,
बड़े-बड़े मुस्टंडे हैं |
भ्रष्टाचारी महिमामंडित,
जनता के सर डंडे हैं |
आज तिरंगे के ही पीछे ,
लगे सैकड़ों झंडे हैं |
2 comments:
Unknown
September 24, 2010 at 6:30 PM
करारा व्यंग्य..........
उम्दा काव्य
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वीना श्रीवास्तव
September 24, 2010 at 11:11 PM
जोरदार व्यंग
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करारा व्यंग्य..........
ReplyDeleteउम्दा काव्य
जोरदार व्यंग
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