आती है दीवाली रंग लाती ज़माने में
सारा समाज क्या खुशियाँ मनाता है ?
कहीं पर चलते हैं व्हिस्की के हज़ारों पैग
सारा धन-वैभव सिर्फ जुए में ही जाता है
साकी के नज़रों में डूब डूब प्यालों में
पीता है कोई मौज-मस्ती मनाता है
ज़ख्मों की तरह जो उभरी हैं धरती पर
पूंछो झोपड़ियों से कैसे मनाएँगी ?
मिलता नहीं मिटटी का खिलौना जहाँ बच्चों को
झोपड़ी मिठाई के खिलौने कहाँ पायेगी ?
जलाने को शेष नहीं रहा पास जिसके कुछ
क्या वह दीवाली में झोपड़ी जलाएगा ?
जिन्दगी ही बन गयी होली-दिवाली जिसकी
कैसे बेचारा वह दीवाली मनायेगा ?
जिन्दगी ही बन गयी होली-दिवाली जिसकी
कैसे बेचारा वह दीवाली मनायेगा ?
गरीबों का हर जगह और हर वक्त ही बुरा हाल है ..रही सही कसर महंगाई ने पूरी कर दी है..ऐसे में क्या दिवाली क्या होली..
ReplyDeletebahut hi badhiya rachana hai .
ReplyDelete