जिंदगी दर्द की छाँव में |
बस गयी मौत के गाँव में |
हर घड़ी सहमी-सहमी लगे ,
हैं शिकारी लगे दाँव में |
आश की साँस चलती रही |
हर घड़ी मौत छलती रही |
नैन सपने सँजोते रहे, पर -
ह्रदय पीर पलती रही |
हर सहारा बहाना बना |
स्वार्थ का ताना-बाना बना |
जितने मरहम लगे घाव पर ,
घाव उतना पुराना बना |
बस गयी मौत के गाँव में |
हर घड़ी सहमी-सहमी लगे ,
हैं शिकारी लगे दाँव में |
आश की साँस चलती रही |
हर घड़ी मौत छलती रही |
नैन सपने सँजोते रहे, पर -
ह्रदय पीर पलती रही |
हर सहारा बहाना बना |
स्वार्थ का ताना-बाना बना |
जितने मरहम लगे घाव पर ,
घाव उतना पुराना बना |
हर सहारा बहाना बना |
ReplyDeleteस्वार्थ का ताना-बाना बना |
जितने मरहम लगे घाव पर ,
घाव उतना पुराना बना |
बहुत सुन्दर क्या बात है जनाब ....
झंझट भाई,
ReplyDeleteबढ़िया है!
आशीष
--
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
6/10
ReplyDeleteबहुत मनमोहक गीत
आनंद प्राप्ति हुयी
गीत थोडा और बड़ा होता तो क्या बात थी
आपके तीनों मुक्तक दिल को छूने वाले है.'झंझट' तखल्लुस से तो आप हास्य कवि लगते है.लेखन इतना गंभीर और संजीदा.बहरहाल अच्छे लेखन कि बधाई.
ReplyDeleteबढ़्या झटका है ।
ReplyDeletevery nice poem...
ReplyDeletemahendraji,ashishbhai,sharadji,mark raiji!
ReplyDeleteblog par aane aur apne anmol vicharon se utsahvardhan karne ka hardi aabhar!
kunwar kusumeshji,
aapne sach kaha.na jane kab se chahe-anchahe "jhanjhat" chipka hua hai.
ustadji,
aapki tippadiyon ka to badi besabri se intzaar rahta hai.rachna pasand ayee,likhna sarthak laga.
उत्तम प्रयास .
ReplyDeleteशुभ कामनाएँ!
सुरेंद्र जी, बहुत ही सुंदर भाव समेटे सुंदर रचना...बहुत बढ़िया लिखते है आप...प्रस्तुति के लिए बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है!
ReplyDeleteनियमित लिखते रहो!
जितने मरहम लगे घाव पर ,
ReplyDeleteघाव उतना पुराना बना |
बहुत सटीक बात कही है ..दर्द की छाँव घनीभूत है ....अच्छी रचना ..
मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
आश की साँस चलती रही |
ReplyDeleteहर घड़ी मौत छलती रही |
नैन सपने सँजोते रहे, पर -
ह्रदय पीर पलती रही ..
जब तक आशा है .. तब तक जीवन है ... आशा बनी रहनी चाहिए ... अच्छी रचना है ...
जितने मरहम लगे घाव पर , घाव उतना ही पुराना हुवा।
ReplyDeleteबेहतरीन।