क्या कहूं ? कभी-कभी ऐसी मनःस्थिति हो जाती है या यूं कहें कि रचना संसार में डूबते-उतराते कुछ ऐसे मुकाम मिल जाते हैं जहाँ मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ह्रदय में छुपा दर्द का सागर अचानक आंदोलित हो उठता है | यह सब अनायास ही नहीं होता बल्कि कहीं जब यही दर्द पन्नों पर बिखरा हुआ मिलता है तो आँखें स्वतः गीली होने लगती हैं |
मैं हरकीरत 'हीर' की रचनाओं को जब भी समय मिलता है जरूर पढता हूँ | हर कविता दिल तक पहुँचती है | अभी दीवाली पर नवीनतम पोस्ट - छोटी-छोटी क्षणिकाएं पढ़ी, स्वयं को सामान्य नहीं रख सका |
प्रकृति के सुकुमार कवि पन्त जी की पंक्तियाँ ----
वियोगी होगा पहला कवि , आह से उमगा होगा गान
निकलकर आँखों से चुपचाप , बही होगी कविता अनजान
चुपचाप आँखों से निकलकर ही तो बह रही हैं 'हीर' की कवितायेँ |
महादेवी वर्मा का गीत ------
" मैं नीर भरी दुःख की बदली
परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी थी कल मिट आज चली "
कितनी करीब दिखती हैं 'हीर' काव्य की इन परिभाषाओं के ! वियोग का इतना मर्मश्पर्सी चित्रण , दिमाग से नहीं दिल से ही संभव है |
मेरे शब्दों में -------
दीनों के घर में उजाला करे चाहे छोटा सा दीप वही सविता है
प्यासों की प्यास बुझाये सदा भरा कीच तलाव वही सरिता है
न्याय के संग चले जो सदा न झुके जो कभी नर सो नर सा है
कवि से कविताई न पूछो सखे उर की जो व्यथा है वही कविता है
ह्रदय की व्यथा को कागज के पन्नों पर यूं ही बिखेरती रहिये 'हीर' जी ! बहुत कुछ मिल रहा है हिंदी साहित्य को आप से ! ब्लॉगों का क्या ? बहुत कुछ लिखा-पढ़ा जा रहा है , मगर आप की भावनाएं एवं अनुभूतियाँ अनंतकाल तक काव्यरूप में सबके सामने अपनी उपस्थिति का एहसास दिलाती रहें , यही हमारी ईश्वर से प्रार्थना है |
महादेवी वर्मा का गीत ------
" मैं नीर भरी दुःख की बदली
परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी थी कल मिट आज चली "
कितनी करीब दिखती हैं 'हीर' काव्य की इन परिभाषाओं के ! वियोग का इतना मर्मश्पर्सी चित्रण , दिमाग से नहीं दिल से ही संभव है |
मेरे शब्दों में -------
दीनों के घर में उजाला करे चाहे छोटा सा दीप वही सविता है
प्यासों की प्यास बुझाये सदा भरा कीच तलाव वही सरिता है
न्याय के संग चले जो सदा न झुके जो कभी नर सो नर सा है
कवि से कविताई न पूछो सखे उर की जो व्यथा है वही कविता है
ह्रदय की व्यथा को कागज के पन्नों पर यूं ही बिखेरती रहिये 'हीर' जी ! बहुत कुछ मिल रहा है हिंदी साहित्य को आप से ! ब्लॉगों का क्या ? बहुत कुछ लिखा-पढ़ा जा रहा है , मगर आप की भावनाएं एवं अनुभूतियाँ अनंतकाल तक काव्यरूप में सबके सामने अपनी उपस्थिति का एहसास दिलाती रहें , यही हमारी ईश्वर से प्रार्थना है |
सचमुच, गोंडवी जी, हरकीरत जी की रचनाएं साहित्यिक धरोहर हैं।
ReplyDeleteसुरेन्द्र बहादुर सिंह जी
ReplyDeleteनमस्कार एवम् मंगलकामनाएं !
हरकीरत 'हीर'जी' की रचनाएं निस्संदेह हमारे युग की एक उपलब्धि है । आप प्रभावित हुए ; अवश्य ही आपकी कविता के प्रति समझ और सृजन क्षमता पुख्ता होगी । आपकी रचनाएं अभी ज़्यादा नहीं पढ़ पाया हूं , लेकिन शुरुआती पोस्ट की ग़ज़लें देखीं , जो अच्छी ही लगीं । मंगलकामनाएं हैं ।
जहां तक हरकीरत 'हीर'जी' की रचनाओं की बात है , हर गुणी को उनसे प्रभावित होना ही पड़ेगा । आप उनके ब्लॉग की पुरानी पोस्ट्स के अलावा कविताकोश पर उनकी रचनाएं भी अवश्य देखें , मन की स्थिति जो हो जाएगी वह न भूलने वाला सहित्यिक अनुभव होगा ।
हरकीरत 'हीर'जी' के लिए परमात्मा से सुखी जीवन की प्रार्थना है , हम सबकी ओर से ! आमीन !
आपके संवेदनशील हृदय की मैं अंतःस्थल की गहराई से प्रशंसा करता हूं । … और एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई और आभार व्यक्त करता हूं ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आदरणीय सुरेन्द्र जी ,
ReplyDeleteपलास ब्लॉग वाली अर्पणा जी से पता चला आपने मुझे लेकर कोई पोस्ट लिखी है ....
तो चली आई देखने ....
क्या कहूँ ....शुक्रगुज़ार हूँ ......
मेरा लिखना सार्थक हुआ ....
देता नहीं ये वक़्त कभी साथ यहाँ ...
बुत हैं ये पत्थर के खामोश रहेगें सदा
गर रही कलम भी खामोश मेरी ...
तो रूह ये मेरी तड़पती रहेगी सदा ....
राजेन्द्र जी ......
आमीन .....!!
झंझटी जी,
ReplyDeleteहीर जी की जिन लघु कविताओं के संदर्भ में आपने यह पोस्ट लगायी है, उन पर मैं अपनी एक विस्तृत प्रतिक्रिया उनके ब्लॉग पर दर्ज कर चुका हूँ। यक़ीनन ब्लॉग्ज़ के मेले में हरकीरत ‘हीर’ जी एक ‘हीरा’ हैं।
आपने उन पर यहाँ पोस्ट लगाकर अपनी गुणग्राही-वृत्ति का परिचय दिया है... आपको धन्यवाद और ‘हीर’ जैसे हीरे को बधाई!
आपको बताता चलूँ कि मैं शीघ्र उनके समग्र सृजन पर एक समीक्षा-कृति (लगभग 100 पृष्ठ) का प्रकाशन करने जा रहा हूँ!
आपकी इस राय को उसमें शामिल करूँगा ही!
rajendraji,jauharji !
ReplyDeleteaapki belag vistrit tippadiyon ko padhkar achchha laga. bahut-bahut dhanyvad .
mahendra varma ji !
sneh dete rahne ke liye aabhar .
heerji !
aap apni kritiyon se sarvpriy bane .
main fakkadmijaji hoon . achchhe ko achchha kahna achchha lagta hai . sahityjagat me bahut se naye rachnakar blog par hain , unhe utsahit karne ki jaroorat hai . bahut se sthapit lekhak\rachnakar hain unhe padhna achchha lagta hai. iske atirikt jo koi bhi swayambhoo hain unhe pranaam karta rahta hoon kyonki we pranamy hi hain .
punah aap sab ko dhanyvad .
वाह..... बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDelete' हीर ' की नज्मों में महादेवी की गहराई की टीस है , अमृता की उदासी की मिठास की झलक है. मन को छू निकल नहीं जाती , उसकी अनुगूंज बन पैठ बना लेती है दिल में .
ReplyDeleteheer ji ki kavita ko naya aasman diya hai aapne.
ReplyDeleteadarniy yogendraji,raj sinh ji, sammanniya sharad singhji !
ReplyDeleteblog par aaye aur apni anmol tippadiyan deen
hriday se aabhari hoon