Friday, November 19, 2010

--दर्द की छाँव में |

जिंदगी   दर्द   की  छाँव    में |
बस गयी  मौत  के गाँव में |
हर घड़ी सहमी-सहमी लगे ,
हैं   शिकारी   लगे  दाँव  में  |

आश की साँस चलती रही |
हर घड़ी मौत छलती रही |
नैन  सपने  सँजोते  रहे, पर -
ह्रदय    पीर     पलती   रही |

हर    सहारा    बहाना    बना |
स्वार्थ का   ताना-बाना  बना |
जितने मरहम लगे घाव पर ,
घाव    उतना   पुराना    बना |


13 comments:

  1. हर सहारा बहाना बना |
    स्वार्थ का ताना-बाना बना |
    जितने मरहम लगे घाव पर ,
    घाव उतना पुराना बना |

    बहुत सुन्दर क्या बात है जनाब ....

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  2. झंझट भाई,
    बढ़िया है!
    आशीष
    --
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  3. 6/10

    बहुत मनमोहक गीत
    आनंद प्राप्ति हुयी
    गीत थोडा और बड़ा होता तो क्या बात थी

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  4. आपके तीनों मुक्तक दिल को छूने वाले है.'झंझट' तखल्लुस से तो आप हास्य कवि लगते है.लेखन इतना गंभीर और संजीदा.बहरहाल अच्छे लेखन कि बधाई.

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  5. mahendraji,ashishbhai,sharadji,mark raiji!
    blog par aane aur apne anmol vicharon se utsahvardhan karne ka hardi aabhar!

    kunwar kusumeshji,
    aapne sach kaha.na jane kab se chahe-anchahe "jhanjhat" chipka hua hai.

    ustadji,
    aapki tippadiyon ka to badi besabri se intzaar rahta hai.rachna pasand ayee,likhna sarthak laga.

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  6. उत्तम प्रयास .
    शुभ कामनाएँ!

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  7. सुरेंद्र जी, बहुत ही सुंदर भाव समेटे सुंदर रचना...बहुत बढ़िया लिखते है आप...प्रस्तुति के लिए बधाई

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  8. बहुत सुन्दर रचना है!
    नियमित लिखते रहो!

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  9. जितने मरहम लगे घाव पर ,
    घाव उतना पुराना बना |

    बहुत सटीक बात कही है ..दर्द की छाँव घनीभूत है ....अच्छी रचना ..

    मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया

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  10. आश की साँस चलती रही |
    हर घड़ी मौत छलती रही |
    नैन सपने सँजोते रहे, पर -
    ह्रदय पीर पलती रही ..

    जब तक आशा है .. तब तक जीवन है ... आशा बनी रहनी चाहिए ... अच्छी रचना है ...

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  11. जितने मरहम लगे घाव पर , घाव उतना ही पुराना हुवा।

    बेहतरीन।

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