कविता ..
जो भी व्यक्त हो रही है
कविता नहीं है
कविता है वह
जो व्यक्त होना चाहते हुए भी
अव्यक्त है
बंद है अंतस में
उस भँवरे की तरह
जो साँझ होते ही
बंद हो जाता है
कमल की पंखुड़ियों में
कविता और भँवरा
दोनों को इंतज़ार है
उड़ सकें
सूरज हैं अलग-अलग
भँवरा
मुक्त हो जाता है
आते ही
अपने सूरज के
पर कविता
जीती है
एक सतत घुटन
अपने सूरज की
अनवरत प्रतीक्षा में....
खर्चती साँसें.....
बेवजह ही
खर्च होती जा रही हैं
जिंदगी की साँसे...
उन
फुटकर रुपयों की तरह
जो नोट से टूटकर
इस महँगाई में
जाने अनजाने
राशन
आलू-प्याज..
की खरीदारी पर
जेबों से खुद बखुद
निकलकर
अव्यक्त है
बंद है अंतस में
उस भँवरे की तरह
जो साँझ होते ही
बंद हो जाता है
कमल की पंखुड़ियों में
कविता और भँवरा
दोनों को इंतज़ार है
सुबह के सूरज का
ताकि बंधनमुक्त हो उड़ सकें
वे अपने
उन्मुक्त आकाश में
किन्तु दोनों के सूरज हैं अलग-अलग
भँवरा
मुक्त हो जाता है
आते ही
अपने सूरज के
पर कविता
जीती है
एक सतत घुटन
अपने सूरज की
अनवरत प्रतीक्षा में....
खर्चती साँसें.....
बेवजह ही
खर्च होती जा रही हैं
जिंदगी की साँसे...
उन
फुटकर रुपयों की तरह
जो नोट से टूटकर
इस महँगाई में
जाने अनजाने
राशन
आलू-प्याज..
की खरीदारी पर
जेबों से खुद बखुद
निकलकर
खर्च हुए जा रहे हैं....
har baar ki tarah sundar prastuti
ReplyDeletebemisal kavita ke liye badhai
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
ReplyDeletekavita ki paribhasha achchhi lagi..........:)
ReplyDeleteबेवजह ही
ReplyDeleteखर्च होती जा रही हैं
जिंदगी की साँसे
उन
फुटकर रुपयों की तरह
जो महँगाई में
जाने अनजाने
राशन
आलू-प्याज..
की खरीदारी पर
जेबों से खुद बखुद
निकलकर
भागे जा रहे हैं....
मर्म स्पर्शी हे दोनों कविताए ..
कविता है वह
ReplyDeleteजो व्यक्त होना चाहते हुए भी
अव्यक्त है
बंद है अंतस में
aur बेवजह ही
खर्च होती जा रही हैं
जिंदगी की साँसे...
bahut hi achhi lagi rachna
दोनों - एक से बढकर एक...
ReplyDeleteदोनों ही स्तरीय रचनाएँ है सुरेन्द्र भाई एक से बढ कर एक ...
ReplyDeleteपर कविता
जीती है
एक सतत घुटन
अपने सूरज की
अनवरत प्रतीक्षा में....
यह मुझे बहुत पसंद आई भाई जी !!
कविता है वह जो व्यक्त होना चाहते हुए भी अव्यक्त है |
ReplyDeleteएक नहीं दोनों रचनाएँ, सुंदर अभिव्यक्ति बधाई तो कम है|
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeletephilosophy of life...
ReplyDeleteदोनो रचनाये बेहतरीन …………सच्चाइयो से अवगत कराती हुयी।
ReplyDeleteकमाल लिखा है महोदय! बेहतरीन!
ReplyDelete-
व्यस्त हूँ इन दिनों
बहुत ही सुन्दर कविता
ReplyDeleteएक कवि मन की व्यथा ! जो अव्यक्त है वो कविता है पर जो व्यक्त हुई वो कविता क्यूँ नहीं ? दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं
ReplyDeleteजो भी व्यक्त हो रही है
ReplyDeleteकविता नहीं है
कविता है वह
जो व्यक्त होना चाहते हुए भी अव्यक्त है
दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी है ..बेहतरीन...
बेहतरीन अभिव्यक्ति , बधाई सुरेन्द्र जी।
ReplyDeleteachchi kavita
ReplyDeleteकविता की सतत घुटन और अनवरत प्रतीक्षा अपने सूरज की .लाजबाब प्रस्तुति .
ReplyDeleteजो व्यक्त होना चाहते हुए भी
ReplyDeleteअव्यक्त है
बंद है अंतस में
उस भँवरे की तरह
जो साँझ होते ही
बंद हो जाता है
कमल की पंखुड़ियों में
संवेदनशील मनोभाव ..... गहन अभिव्यक्ति
अव्यक्त कविता का अभिव्यक्त आभास.
ReplyDeleteएक ही पोस्ट में आपके आपके अंदर के कवि का दो रूप नज़र आया।
ReplyDeleteऊपर वाली कविता में बिहारी और नीचे वाली में रघुवीर सहाय।
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द|धन्यवाद|
ReplyDeleteपर कविता
ReplyDeleteजीती है
एक सतत घुटन
अपने सूरज की
अनवरत प्रतीक्षा में।
कविता को अपने सूरज की प्रतीक्षा है...सुंदर रचना।
दोनों रचनाएँ गहन भावों को व्यक्त कर रही हैं ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteपहली कविता को जन्म देती और दूसरीज़िन्दगी के झंझटों से निकली ....
ReplyDeleteदोनों कवितायेँ प्रशंसनीय हैं ....
दोनों रचनाएँ अच्छी हैं.
ReplyDeleteमैं तो यही कहूँगा कवि की पहुँच रवि से भी ज्यादा है| अच्छी कविता|
ReplyDeleteएक सतत घुटन
ReplyDeleteअपने सूरज की
अनवरत प्रतीक्षा में....
kavita aur jindagi dono ka yahi haal hai.
bahut umda rachna, blog jagat dhanya hai aap jaise rachnakaar ko paakar.
जो भी व्यक्त हो रही है
ReplyDeleteकविता नहीं है
कविता है वह
जो व्यक्त होना चाहते हुए भी
अव्यक्त है............... सुंदर अभिव्यक्ति.
कविता है वह जो व्यक्त होना चाहते हुए भी
ReplyDeleteअव्यक्त है
बंद है अंतस में
उस भँवरे की तरह
जो साँझ होते ही
बंद हो जाता है॥
सुरेश जी आपकी गहन अभिव्यक्ति की कायल हो गयी हूँ। बधाई स्वीकारें ।
.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकविता और भँवरा
ReplyDeleteदोनों को इंतज़ार है
सुबह के सूरज का
ताकि बंधनमुक्त हो
उड़ सकें
वे अपने
उन्मुक्त आकाश में
किन्तु दोनों के
सूरज हैं अलग-अलग
भँवरा
मुक्त हो जाता है
आते ही
अपने सूरज के
पर कविता
जीती है
एक सतत घुटन
अपने सूरज की
अनवरत प्रतीक्षा में....
कमाल की अभिव्यक्ति है झंझट भाई !
बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली !
आभार
लग रहा है जैसे अपने ही अंतस के भावों,चिंतन को पढ़ रही हूँ....
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएं लाजवाब...बहुत बहुत सुन्दर...
भाव जब बहाव का मार्ग नहीं पाते और चुकती साँसों पर ध्यान जाता है तो ठीक ऐसी ही छटपटाहट होती है......
bhavpurn aur atyant prbhavshali rachana...achchi lagi...badhai surendra ji..
ReplyDeleteआप सभी सम्मानित रचनाकारों का, मेरे ब्लाग पर आने और अपने अनमोल विचारों से उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ | स्नेह बनाये रक्खें |
ReplyDeleteहोली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...
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