Saturday, March 5, 2011

कविता......, खर्चती साँसें......

                  कविता ..

     जो भी व्यक्त हो रही है 
     कविता नहीं है 
     कविता है वह 
     जो व्यक्त होना चाहते हुए भी
     अव्यक्त है
     बंद है अंतस में
     उस भँवरे की तरह
     जो साँझ होते ही
     बंद हो जाता है
     कमल की पंखुड़ियों में
     कविता और भँवरा
     दोनों को इंतज़ार है
     सुबह  के सूरज का  
     ताकि बंधनमुक्त हो
      उड़ सकें
     वे अपने
     उन्मुक्त आकाश में
     किन्तु दोनों के
     सूरज हैं अलग-अलग
     भँवरा
     मुक्त हो जाता है
     आते ही  
     अपने सूरज के
     पर कविता
     जीती है
     एक सतत घुटन
     अपने सूरज की
     अनवरत प्रतीक्षा में....

                  खर्चती साँसें.....

      बेवजह ही
     खर्च होती जा रही हैं
     जिंदगी की साँसे...
     उन
     फुटकर रुपयों की तरह
     जो नोट से टूटकर
     इस  महँगाई में
     जाने अनजाने
     राशन
    आलू-प्याज..
    की खरीदारी पर
    जेबों से खुद बखुद
    निकलकर
    खर्च हुए  जा रहे हैं....  


37 comments:

  1. मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !

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  2. बेवजह ही
    खर्च होती जा रही हैं
    जिंदगी की साँसे
    उन
    फुटकर रुपयों की तरह
    जो महँगाई में
    जाने अनजाने
    राशन
    आलू-प्याज..
    की खरीदारी पर
    जेबों से खुद बखुद
    निकलकर
    भागे जा रहे हैं....
    मर्म स्पर्शी हे दोनों कविताए ..

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  3. कविता है वह
    जो व्यक्त होना चाहते हुए भी
    अव्यक्त है
    बंद है अंतस में
    aur बेवजह ही
    खर्च होती जा रही हैं
    जिंदगी की साँसे...
    bahut hi achhi lagi rachna

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  4. दोनों - एक से बढकर एक...

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  5. दोनों ही स्तरीय रचनाएँ है सुरेन्द्र भाई एक से बढ कर एक ...
    पर कविता
    जीती है
    एक सतत घुटन
    अपने सूरज की
    अनवरत प्रतीक्षा में....
    यह मुझे बहुत पसंद आई भाई जी !!

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  6. कविता है वह जो व्यक्त होना चाहते हुए भी अव्यक्त है |
    एक नहीं दोनों रचनाएँ, सुंदर अभिव्यक्ति बधाई तो कम है|

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  7. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  8. दोनो रचनाये बेहतरीन …………सच्चाइयो से अवगत कराती हुयी।

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  9. कमाल लिखा है महोदय! बेहतरीन!
    -
    व्यस्त हूँ इन दिनों

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  10. बहुत ही सुन्‍दर कविता

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  11. एक कवि मन की व्यथा ! जो अव्यक्त है वो कविता है पर जो व्यक्त हुई वो कविता क्यूँ नहीं ? दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं

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  12. जो भी व्यक्त हो रही है
    कविता नहीं है
    कविता है वह
    जो व्यक्त होना चाहते हुए भी अव्यक्त है
    दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी है ..बेहतरीन...

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  13. बेहतरीन अभिव्यक्ति , बधाई सुरेन्द्र जी।

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  14. कविता की सतत घुटन और अनवरत प्रतीक्षा अपने सूरज की .लाजबाब प्रस्तुति .

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  15. जो व्यक्त होना चाहते हुए भी
    अव्यक्त है
    बंद है अंतस में
    उस भँवरे की तरह
    जो साँझ होते ही
    बंद हो जाता है
    कमल की पंखुड़ियों में

    संवेदनशील मनोभाव ..... गहन अभिव्यक्ति

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  16. अव्‍यक्‍त कविता का अभिव्‍यक्‍त आभास.

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  17. एक ही पोस्ट में आपके आपके अंदर के कवि का दो रूप नज़र आया।
    ऊपर वाली कविता में बिहारी और नीचे वाली में रघुवीर सहाय।
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  18. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द|धन्यवाद|

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  19. पर कविता
    जीती है
    एक सतत घुटन
    अपने सूरज की
    अनवरत प्रतीक्षा में।

    कविता को अपने सूरज की प्रतीक्षा है...सुंदर रचना।

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  20. दोनों रचनाएँ गहन भावों को व्यक्त कर रही हैं ...अच्छी प्रस्तुति

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  21. पहली कविता को जन्म देती और दूसरीज़िन्दगी के झंझटों से निकली ....
    दोनों कवितायेँ प्रशंसनीय हैं ....

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  22. दोनों रचनाएँ अच्छी हैं.

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  23. मैं तो यही कहूँगा कवि की पहुँच रवि से भी ज्यादा है| अच्छी कविता|

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  24. एक सतत घुटन
    अपने सूरज की
    अनवरत प्रतीक्षा में....

    kavita aur jindagi dono ka yahi haal hai.

    bahut umda rachna, blog jagat dhanya hai aap jaise rachnakaar ko paakar.

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  25. जो भी व्यक्त हो रही है
    कविता नहीं है
    कविता है वह
    जो व्यक्त होना चाहते हुए भी
    अव्यक्त है............... सुंदर अभिव्यक्ति.

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  26. कविता है वह जो व्यक्त होना चाहते हुए भी
    अव्यक्त है
    बंद है अंतस में
    उस भँवरे की तरह
    जो साँझ होते ही
    बंद हो जाता है॥

    सुरेश जी आपकी गहन अभिव्यक्ति की कायल हो गयी हूँ। बधाई स्वीकारें ।

    .

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  27. कविता और भँवरा
    दोनों को इंतज़ार है
    सुबह के सूरज का
    ताकि बंधनमुक्त हो
    उड़ सकें
    वे अपने
    उन्मुक्त आकाश में
    किन्तु दोनों के
    सूरज हैं अलग-अलग
    भँवरा
    मुक्त हो जाता है
    आते ही
    अपने सूरज के
    पर कविता
    जीती है
    एक सतत घुटन
    अपने सूरज की
    अनवरत प्रतीक्षा में....

    कमाल की अभिव्यक्ति है झंझट भाई !
    बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली !
    आभार

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  28. लग रहा है जैसे अपने ही अंतस के भावों,चिंतन को पढ़ रही हूँ....

    दोनों ही रचनाएं लाजवाब...बहुत बहुत सुन्दर...

    भाव जब बहाव का मार्ग नहीं पाते और चुकती साँसों पर ध्यान जाता है तो ठीक ऐसी ही छटपटाहट होती है......

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  29. bhavpurn aur atyant prbhavshali rachana...achchi lagi...badhai surendra ji..

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  30. आप सभी सम्मानित रचनाकारों का, मेरे ब्लाग पर आने और अपने अनमोल विचारों से उत्साहवर्धन के लिए मैं ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ | स्नेह बनाये रक्खें |

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  31. होली की अपार शुभ कामनाएं...बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है आपका....मनभावन रंगों से सजा...

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