Monday, May 9, 2011

काहू में मगन कोऊ काहू में मगन है

          माया  के अपार मोहजाल  में भुलान  कोऊ ,
          कोऊ   राम नाम   में   लगाय  रह्यो  मन है |
          कामिनी  कमान नैन  बींधि गयो  काहू उर ,
          कोऊ   भाव भगति   भुलाय  दियो   तन है |
          कोऊ दोऊ हाथन सों बाँटि रह्यो भुक्ति-मुक्ति ,
          कोऊ  दोऊ  हाथ   सों  बटोरि   रह्यो  धन है |
          साधो !  ऐसा    जग   है     बेढंगा    बहुरंगा ,
          कोऊ काहू  में मगन  कोऊ काहू में मगन है | 

36 comments:

  1. सही बात है सब अपने अपने मे मगन हैं।

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  2. कोऊ दोऊ हाथन सों बाँटि रह्यो भुक्ति-मुक्ति ,
    कोऊ दोऊ हाथ सों बटोरि रह्यो धन है |

    बहुत अच्छी यथार्थवादी रचना...

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  3. बहुत बदिया,बहुत सुन्दर,लाजबाब झंझट भाई.
    कमाल की कुंडली है.बेहतरीन प्रस्तुति है.
    आप ने 'मगन' कर दिया मन को.
    आपने मेरे ब्लॉग पर आने में इस बार इतनी देर क्यूँ लगाई ?

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  4. बहुत सार्थक, बहुत अच्छी यथार्थवादी रचना...

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  5. सही बात है सब अपने अपने मे मगन हैं। धन्यवाद|

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  6. वाह....अद्वितीय ...

    भक्तिकालीन कविता की स्मृति करा दी आपने....मन आनंदित हो गया...

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  7. बहुत अच्छा दोहा लिखा है आपनेबहुत सुन्दर,आप ने 'मगन' कर दिया मन को. लेकिन एक कमी है अंत में होना चाहिए
    कह झंझट कवि राय, यह जग है बड़ा अनोखा ,
    कोई खेलैहै धन में,कोई के धन रामनाम रतन है|

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  8. sahi kaha hai ji...

    followers ka shatak hone par bhi badhaai....

    sunder dohe...

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  9. कोऊ राम नाम में लगाय रह्यो मन है |
    कोऊ काहू में मगन कोऊ काहू में मगन है | bahut hi badhiyaa

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  10. कोऊ लिखै मा मगन
    हम पढै मा मगन ।
    बहुत सुन्दर रचना ।

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  11. कोऊ काहू में मगन कोऊ काहू में मगन है |

    सच है ...सब अपनी अपनी राह चल रहे है.....

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  12. वाह! वाह! वाह! हजार बार वाह! खूब आनंद आ रहा है गाने में...

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  13. कहीं पर है ठर्रा, कहीं पर चिलम है।
    किए जाओ सपन्न, जो कार्यक्रम है॥
    कलम में बड़ी आपके मित्र दम है।
    कलम ये नहीं है, प्रखर शब्द-बम है॥
    ===========================
    प्रभावकारी छंद की प्रस्तुति हेतु -बधाई!
    ==========================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
    ==========================

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  14. बहुत सुंदर रचना ! कोई काहू में मगन कोई काहू में !

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  15. झझट जी मै क्या तारीफ करूँ मूढ़ मगज अग्यानी इंसान हूँ इतनी उम्दा रचना की तारीफ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है और ना ही इस भावना को परिभाषित कर सकने की सामर्थ्य

    शानदार है

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  16. हम भी मगन हो गए कविता को पढ़ के
    बेहतरीन रचना
    बधाई

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  17. बहुत खूब ....शुभकामनायें आपको !!

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  18. बहुत सार्थक और सुन्दर रचना..शुभकामनायें

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  19. माया के अपार मोहजाल में भुलान कोऊ ,
    कोऊ राम नाम में लगाय रह्यो मन है ।
    कामिनी कमान नैन बींधि गयो काहू उर ,
    कोऊ भाव भगति भुलाय दियो तन है ।

    बहुत सुंदर कवित्त है सुरेन्द्र जी। पढ़ते-पढ़ते गाने लगा मैं।
    भाव भी सामयिक संदर्भ से सुमेलित है।

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  20. bahut sunder kavita ki har vidha par aditiya pakad !
    waah waah waah

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  21. कौऊ काउ में मगन ,कोई काऊ में मगन ,
    कौऊ ब्लॉग में मगन ,कोऊ भोग में मगन ,
    कौऊ मदन मगन, कौऊ बदन मगन ,
    सब मगन मगन ,सब मगन मगन ।
    भाई झंझट जी बड़ी लयताल रस लिए हैं आप ,औरों को भी लग सकता है यह राग -रंग .

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  22. यही तो प्रकृति का नियम है । हर कोई अपने आप में मगन है , व्यस्त है । यही प्रकृति की सुन्दरता भी है शायद। बहुत सुन्दर रचना है ।

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  23. आपने सही लिखा है. हर कोई अपने आप में मगन है. रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा.इसके लिए आपको ढेरों शुभकामनाएँ.

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  24. बहुत दे के बाद इतना सुंदर कवित्त पढ़ा है. धन्यवाद और बधाई.

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  25. वाह....आनंद आ गया सुरेन्द्र भाई....
    सादर...

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  26. बहुत सुन्दर, शानदार और सार्थक रचना लिखा है आपने!

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  27. बहुत खूब और सार्थक रचना

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  28. झंझट तमाम छोड़ लिखिए घनाक्षरी को
    अगली दफ़ा इसी का होना आगमन है

    सुरेंद्र भाई, ब्राजभाषा का सुंदर प्रयोग करते हैं आप| बधाई|

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  29. सुरेन्द्र जी ..आपकी बात पसंद आई. आजकल तो सब अपने में ही मगन हैं. ये बात बिलकुल सत्य है. आपको शुभकामनाएँ.

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  30. आद. झंझट जी,
    कमाल का लिखा है आपने ! शब्द ,भाव, लय और प्रवाह की जीतनी भी प्रशंसा की जाय कम है !
    यथार्थ का प्रभावी शब्द-चित्र !
    आभार !

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  31. प्रिय बंधुवर सुरेन्द्र जी
    सस्नेहाभिवादन !

    क्या मनहरण कवित्त लिखा है वाह ! वाह !! वाह !!!
    कामिनी कमान नैन बींधि गयो काहू उर ,
    कोऊ भाव भगति भुलाय दियो तन है |


    सच कहूं तो मुझे आपकी लेखनी को प्रणाम कहने में सुख और संतुष्टि मिल रही है …

    … आपकी रचनाएं स्वयं आपकी ता'रीफ़ हैं ।
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  32. कामिनी कमान नैन बींधि गयो काहू उर ,
    कोऊ भाव भगति भुलाय दियो तन है |

    अनुप्रास के सुन्दर प्रयोग ने कविता में चार चांद लगा दिया है....
    इस भावभीनी ह्रदयस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई...

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