आरतों का अब करुण क्रंदन न होना चाहिए |
विषधरों के अंक में चन्दन न होना चाहिए |
गर प्रतिष्ठा है बचानी हमको अपने देश की, तो-
दोस्त ! गद्दारों का अभिनन्दन न होना चाहिए |
हर तरफ छाया हुआ है धुआं काला-काला |
देश अब कौन तेरी फिक्र है करने वाला |
तेरे टुकड़े हज़ार करने वाले हैं तो बहुत ,
कोई दिखता नहीं तेरी शान पे मरने वाला |
दिल में सहेजे दर्द का सारा जहान हूँ |
चीखों से-कराहों से भरा आसमान हूँ |
अपनों ने किया जर्जर फिर भी महान हूँ |
कवि नहीं हूँ दोस्त ! मैं हिन्दोस्तान हूँ |
bahut bahut sunder!!!
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना ..
ReplyDeletekavi nahi hu dost main hindustan hu
ReplyDeletebahut hi sahi kaha hai aapne.
दिल में सहेजे दर्द का सारा जहान हूँ |
ReplyDeleteचीखों से-कराहों से भरा आसमान हूँ |
अपनों ने किया जर्जर फिर भी महान हूँ |
कवि नहीं हूँ दोस्त ! मैं हिन्दोस्तान हूँ |
....वाह, उत्तम रचना..बधाई. कभी 'शब्द-शिखर' पर भी पधारें.
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
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