Saturday, November 6, 2010

कहीं पर दिवाली-कहीं पर दिवाला

अँधेरे   का  चारों   तरफ    बोलबाला |
कहीं पर  दिवाली-कहीं पर दिवाला  |
     महंगाई   ने    है    कमर    तोड़   डाली
     गरीबों   की   थाली  है  रोटी  से  खाली
     है   भ्रष्टों  की   चांदी-दलालों   की चांदी 
     नेताओं ने भारत की लुटिया  डुबा दी 
घोटालों का खेल-कहीं खेल में घोटाला |
कहीं  पर  दिवाली - कहीं   पर  दिवाला |
     पंचों-प्रधानों     की    लीला    निराली
     इलेक्सन   में   सारी हदें   तोड़ डाली
     वोटर ने  भी खूब  जमकर   छकाया
     चला    दाम-दारू   औ   मुर्गा  उड़ाया
मगर वोट-नोटों की गड्डी में  डाला |
कहीं पर  दिवाली- कहीं पर   दिवाला |
     भाई की महफ़िल का क्या है   नज़ारा
     चल   जाती   है गोली    मिलते    इशारा
     जगमग    हवेली   भला  क्या    कमी है
     जुआ और इंग्लिश की महफ़िल जमी है
पुलिस-नेता-अफसर का संगम निराला  |
कहीं पर  दिवाली  -  कहीं   पर   दिवाला |
     मिलावट-मिठाई   है   याकि   जहर है
     चारों तरफ बस   कहर ही   कहर   है
     धरम-जाति-वर्गों में हम सब बँटे हैं
     कुर्सी के चक्कर में   बड़के    फँसे  हैं
शहीदों के  सपनों को  ही    बेंच   डाला |
कहीं पर दिवाली - कहीं पर दिवाला |
     देखो    गरीबी  में   आटा    है     गीला
     बिना रंग डाले ही   चेहरा  है   पीला
     समोखन के घर में न है  एक पाई
     लिया ब्याज पर तब  दिवाली मनाई
बताओ  भला है  कहाँ पर   उजाला  ?
कहीं पर दिवाली-कहीं पर दिवाला 

    

7 comments:

  1. aapki rachan bahut hi badhiyan

    saleem
    9838659380

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  2. यथा-तथ्य चित्रण किया है आपने...यही सब तो हो रहा है चदुर्दिक!
    आप समय से नज़र मिलाकर चलते हैं, यह अच्छा लगा।

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  3. समाज का सच्चा चित्रण है इस कविता में.........आप बहुत पैनी नज़र रखते हैं..............कविता की लय भी बहुत अच्छी है.

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  4. सराहनीय लेखन....हेतु बधाइयाँ...ऽ. ऽ. ऽ
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  5. diwalee kee visangati ka bahut hee sundar chitran...

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  6. bahut hee khoobsurat rachna.....badhayi

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