Saturday, December 18, 2010

अमर शहीद लाहिड़ी जी के ८४वें बलिदान दिवस(१७ दिस.२०१०) पर....

आज  अमर शहीद  राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का ८४वाँ बलिदान दिवस है | इस जांबाज  स्वतंत्रता संग्राम  सेनानी को मात्र  २६ वर्ष की अल्पायु  में  १७ दिसंबर १९२७ को गोंडा (उ. प्र.) जेल में  फाँसी दे दी गयी  थी | जुर्म था--आज़ादी की लड़ाई में हथियारों की खरीद के लिए काकोरी रेलवे स्टेसन पर ट्रेन रोककर सरकारी खजाना लूटना | 
             अंग्रेजों से लड़ी जानेवाली  लड़ाई को और मजबूती देने के उद्देश्य से क्रांतिकारियों की बैठक में निश्चित किया गया कि ब्रिटिश  माउजर खरीद के लिए धन की व्यवस्था सरकारी खजाना लूटकर किया जाये | इसे अंजाम दिया गया | इसमें शामिल क्रन्तिकारी थे --पं. राम प्रसाद 'बिस्मिल' , ठाकुर रोशन सिंह , नवाब अशफाक उल्ला खां , और राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी | लखनऊ के वर्तमान जी पी ओ भवन की अदालत में जज हेल्टन द्वारा इन चारों क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा सुनाई गयी | राजेद्र नाथ लाहिड़ी को गोंडा जेल भेज दिया गया , जहाँ १७ सितम्बर १९२७ को इन्हें फाँसी दे दी गयी |
            लाहिड़ी जी का जन्म ३० जून १९०१ को वर्तमान बांगलादेश के  जनपद-पावना के मोहनपुर गाँव में हुआ था | इनके पिताजी का नाम श्री  क्षिति मोहन लाहिड़ी एवं माताजी का नाम श्रीमती बसंत कुमारी था | प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर प्राप्त करने के उपरांत लाहिड़ीजी ने  उच्च शिक्षा के लिए काशी विद्यापीठ बनारस में प्रवेश लिया | यहाँ इनको क्रांति भक्त सान्याल साहब का सानिद्ध्य मिला और ये रिपब्लिकन पार्टी के जांबाज सिपाही बन गए | यहीं से लाहिड़ीजी का संपर्क चन्द्र शेखर आज़ाद ,सरदार भगत सिंह ,ठाकुर रोशन सिंह ,पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ,नवाब असफाक उल्ला खां  सरीखे  अन्य  देशभक्त  क्रांतिकारियों से बना और आज़ादी की लड़ाई में पूरी तरह कूद पड़े | लाहिड़ी जी सबसे कम उम्र के थे |
         पहले फाँसी की तारीख़ १९ दिसंबर १९२७ नियत की गयी थी | चन्द्र शेखर आजाद जी १५ दिसंबर १९२७ को गोंडा आकर गाँधी पार्क की झाड़ियों में छिप गए थे  | उन्होंने गोंडा के क्रातिकारियों के साथ बैठक कर लाहिड़ी जी को गोंडा जेल से निकालने की योजना बनाई |गोंडा जेल के चारों तरफ खेत थे | बगल लगभग ३०० मी .की दूरी पर मौजूद अरहर के खेत से जेल के अन्दर तक एक सुरंग खोदकर लाहिड़ी जी को जेल से मुक्त कराने की योजना पर अमल किया ही जाना था कि सभा में मौजूद एक गद्दार ने इसकी सूचना पुलिस अधीक्षक को दे दी |फिर क्या था , अंग्रेज अफसरों ने नियत तिथि से दो दिन पूर्व ही १७ दिसंबर १९२७ को फाँसी दिए जाने का आदेश दे दिया |  
      फाँसी दिए जाने से पूर्व लाहिड़ी जी ने गीता  का पाठ किया , कसरत की | जेलर के यह  पूंछने पर कि जिस शरीर को फाँसी मिलनी  है , कसरत करके उसे और मजबूत करने का क्या मतलब है ?, लाहिड़ी जी ने जवाब दिया ,'मैं मरने नहीं जा रहा हूँ बल्कि आजाद भारत में पुनः जन्म लेने जा रहा  हूँ |' उन्होंने गोंडा की जनता से अपील किया कि फाँसी के समय जब वे 'वन्दे मातरम' का उदघोष करें तो इसका जवाब जेल के बाहर चारों तरफ से मिले | वही हुआ भी ! भारी सुरक्षा व्यवस्था होते हुए भी जेल-दीवार के चारों ओर के खेतों में हजारों देशभक्त एवं क्रन्तिकारी योद्धा रात से ही खेतों में छुपे प्रातः ४ बजे का इंतजार करते रहे | प्रातः ४ बजे इस आज़ादी के वीर सिपाही के गले में जब फाँसी का फंदा डाला गया तो 'वन्दे मातरम' की हुंकार अंतिम आवाज़ बनकर निकली जिसके जवाब में बाहर से हजारों कंठों ने 'वन्दे मातरम' उदघोष के साथ इस अमर शहीद को अंतिम सलामी दी | आज भी जेल के अन्दर उनका बलिदान-स्थल और  बाहर कुछ दूरी पर उनकी पवित्र समाधि मौजूद है |प्रति वर्ष  जनपदवासी उनके अमर बलिदान को याद करके उनकी समाधि पर श्रद्धा सुमन चढाते हैं ----

            देश की खातिर ही जीना था देश की खातिर मरना था |
            किसी  भी तरह   भारतमाता    की   पीड़ा   को हरना था |
            एक जुनूँ ,उन्माद एक-आजाद   हो   अपना  प्यारा वतन ,
            आज़ादी   की    बलिवेदी   पर    हँसते-हँसते   चढ़ना   था |

           कीड़ों और मकोड़ों जैसा जीवन क्या सौ साल जियें ?
           कायर बनकर करें गुलामी अपमानों का जहर पियें |
           इससे अच्छा स्वाभिमान से देश का मस्तक ऊँचा हो,
          रहें सिंह की तरह शान से, चाहे साल- दो साल जियें |

         छब्बीस साल उम्र होती है सिर्फ खेलने -खाने की |
         पढ़ने-लिखने की होती है या धन-धाम बनाने की |
         मगर लाहिड़ी जैसे भारत माँ के अमर सपूतों की ,
         छब्बीस साल उम्र होती है फाँसी पर चढ़ जाने की |

       आज  शहीदों के  सपनों  को   तोड़   रहे   हैं   लोग |
       भारतमाता  की   किस्मत   को  फोड़  रहे  हैं  लोग |
      अमर शहीदों ने जिस पर कुर्बान ज़वानी कर डाली,
      अपने  उसी  वतन  का लहू   निचोड़  रहे  हैं  लोग |

16 comments:

  1. hamari taraf se lahiri ji ko bhav bhini shraddhanjali

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  2. अत्यंत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत रचना....वीर सपूत को नमन

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  3. .

    मगर लाहिड़ी जैसे भारत माँ के अमर सपूतों की ,
    छब्बीस साल उम्र होती है फाँसी पर चढ़ जाने की ...

    भारत माता के वीर सपूत श्री लाहिड़ी को शत-शत नमन !


    .

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  4. भारत माता के वीर सपूत श्री लाहिड़ी को शत-शत नमन|

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  5. ये सभी हमारे पूजनीय एवं वदंनीय है। इनकी सच्ची श्रद्धाजंली तब होगी जब हम इनके सपनों के भारत का निर्माण करेगें। कविता बेहद सुंदर है। धन्यवाद।

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  6. अमर शहीद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी जी के इस कथन ने मन को अभिभूत कर दिया-
    ‘मैं मरने नहीं जा रहा हूँ बल्कि आजाद भारत में पुनः जन्म लेने जा रहा हूँ ।‘

    इस जांबाज शहीद को मेरा शतशः नमन, विनम्र श्रद्धांजलि।

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  7. सुरेन्द्र जी, मेरा मतलब "झंझट जी"........श्रीमान को सादर प्रणाम, मैंने एक और ब्लॉग बना लिया है......आपका मार्गदर्शन यदि यहाँ भी मिले तो मुझे सतत प्रेरणा मिलेगी....ब्लाग का पता निचे दिया है.

    http://padhiye.blogspot.com

    आपका धन्यवाद.

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  8. नमन । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"

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  9. कीड़ों और मकोड़ों जैसा जीवन क्या सौ साल जियें ?
    कायर बनकर करें गुलामी अपमानों का जहर पियें |
    इससे अच्छा स्वाभिमान से देश का मस्तक ऊँचा हो,
    रहें सिंह की तरह शान से, चाहे साल- दो साल जियें ..

    सच्छी श्रध्नजली है वीर राजेन्द्र लाहिड़ी जी को ... नमन है देश के अमर सपूतों को ..

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  10. आज शहीदों के सपनों को तोड़ रहे हैं लोग |
    भारतमाता की किस्मत को फोड़ रहे हैं लोग |
    xxxxxxxxxxxxxxxx
    सच कहा भाई ..आपकी बात में दम है ..शुक्रिया

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