बाँसुरी और तबला
मन की बाँसुरी से
मन की बाँसुरी से
नहीं निकलती
अब सुरीली तान..
तन के तबले की
थाप भी
करती है भांय-भांय..
लगता है शायद
टूटने लगी है
बांसुरी की साँस
और
तबले पर मढ़ा चाम
ढीला पड रहा है..
तितली और भंवरा
खिले फूल पर
बैठी तितली
बड़ी देर से
नहीं उड़ी..
लगता है
किसी बदजात भँवरे ने
उसके
सुनहले परों को
कहीं से नोच दिया है..
गुलाब और कमल
देवता के शीश पर
चढ़ा गुलाब
बगल में पड़े हुए
चढ़ा गुलाब
बगल में पड़े हुए
कमल से बोला ,
'मेरी जैसी सुन्दरता तुझमे कहाँ ?
काँटों में रहकर भी खिला हूँ ,
मैं हर पल
मुस्कुराने का सिलसिला हूँ |'
कमल बोला,'क्यों शेखी बघारता है ?
डींगें मारता है
लान के गमलों में खिलने वाले
तू विस्तार क्या जाने ?
मौसम की मार क्या जाने ?
तूने पहले कांटे उगाये हैं
फिर फूल आये हैं
मैंने कीचड़ में जन्म लिया
फिर भी उसमे नहीं सना
अथाह सरोवर की गहराई नापकर
सर्वोच्च सतह पर आकर
पूरे मन से खिला हूँ ,
मैं जिंदगी जीने की कला हूँ |'
"किसी बदजात भँवरे ने
ReplyDeleteउसके
सुनहले परों को
कहीं से नोच दिया है"
सच कहूँ तो अत्यंत सुन्दर पंक्तियाँ, लेखनी को साधुवाद.
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ReplyDeleteमैंने कीचड़ में जन्म लिया
फिर भी उसमे नहीं सना
अथाह सरोवर की गहराई नापकर
सर्वोच्च सतह पर आकर
पूरे मन से खिला हूँ ,
मैं जिंदगी जीने की कला हूँ |....
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कमल से कोई सीखे - आर्ट ऑफ़ लिविंग !
बेहतरीन प्रस्तुति -बधाई।
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और तबले पर मढा चाम 'ढीला पड़ रहा है।
ReplyDeleteबांसुरी, तितली अओर गुलाब तीनों कविता सुन्दर और भाव पूर्ण ।
बधाई।
... bahut khoob !!!
ReplyDeleteतीनो ही प्रस्तुतियाँ गज़ब की हैं…………हर रचना खुद बयाँ हो रही है और ज़िन्दगी का सबब समझा रही है…………………शानदार प्रस्तुति…………इसी तरह लिखते रहें।
ReplyDeleteहर रचना इक से बढ़कर इक. हाँ, गुलाब और कमल सबसे बेहतरीन लगी.
ReplyDelete--
पंख, आबिदा और खुदा के लिए
bahut khoob, sundar panktiyan
ReplyDeleteकमल और गुलाब की तकरार में बहुत कुच्छ कह गए आप! बहुत खूब !
ReplyDeleteलान के गमलों में खिलने वाले
ReplyDeleteतू विस्तार क्या जाने ?
मौसम की मार क्या जाने ?
तूने पहले कांटे उगाये हैं
फिर फूल आये हैं
मैंने कीचड़ में जन्म लिया
फिर भी उसमे नहीं सना
अथाह सरोवर की गहराई नापकर
सर्वोच्च सतह पर आकर
पूरे मन से खिला हूँ ,
मैं जिंदगी जीने की कला हूँ |'
bahut hi acchi panktiya....
over all lines are best but these lines i like most..
behad sunder likhe hain.
ReplyDeleteबांसुरी और तबला ....ज़िंदगी का फलसफा ...
ReplyDeleteतितली और भंवर ...आज की त्रासदी ...
गुलाब और कमल जीवन दर्शन ...तीनों रचनाएँ बेशकीमती ...बहुत अच्छी प्रस्तुति .
एक से बढकर एक
ReplyDeleteशुभकामनाये
मैंने कीचड़ में जन्म लिया
ReplyDeleteफिर भी उसमे नहीं सना
अथाह सरोवर की गहराई नापकर
सर्वोच्च सतह पर आकर
पूरे मन से खिला हूँ
मैं जिंदगी जीने की कला हूं।
बहुत ही भावमयी कविता।
उत्तम भावों की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति।
गुलाब और कमल की तकरार पसंद आई
ReplyDeleteआपके भाव अच्छे लगे। धन्यवाद। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteतीनो रचनायें महाकाव्य की महानता और अर्थ समेटे हुए है,
ReplyDeleteदो लाइनें आप के लिए -
वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य
किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।
काँटों में रहकर भी खिला हूँ ,
ReplyDeleteमैं हर पल
मुस्कुराने का सिलसिला हूँ |'
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बहुत सुंदर भाई ...बात दिल में समाई ..और आपको बधाई