Wednesday, December 1, 2010

चौराहे पर खड़ा कबीरा.......

चौराहे पर खड़ा कबीरा अलख जगाए रे |
सारी दुनिया पागल समझे हँसी उड़ाए रे |
       राम-रहीम    नाम   पर    ठेकेदारी   होती  है |
       बेबस  इंसानियत तो सौ-सौ   आंसू  रोती है |
       नफरत की पौधें रोपी  जातीं निर्मल  मन में ,
       मात्र स्वार्थ की इस समाज में खेती होती है |
ढाई आखर हलक में जैसे डंक चुभाए रे |
सारी दुनिया पागल समझे हँसी उड़ाए रे |
       देशप्रेम   की  ढोल पीटते  जाफ़र औ जैचंद |
       गद्दारों ने देश की पूँजी किया  बैंक में बंद |
       उजले कपड़ों में काले दिलवाले   हैं अगुआ ,
       भांडों की चाँदी, भूषण के मूक हो रहे छंद |
'वीरों का कैसा बसंत ?' कोई याद दिलाए रे |
सारी   दुनिया  पागल  समझे   हँसी   उड़ाए रे |
       लोकतंत्र   घायल  वोटों  के   चक्कर-मक्कर  में |
       देश दाँव पर लगा है बस कुर्सी के चक्कर में |
       नैतिकता  का   दामन    चिंदी-चिंदी   है    देखो  ,
       खिंची   हुई   तलवारें   घोटालों    के  चक्कर में | 
'चारा' तो कोई  ताजमहल  की ईंट  चबाए रे  |
सारी   दुनिया   पागल समझे  हँसी  उड़ाए रे   |  
       नेता-पुलिस-माफियाओं   के   पक्के   रिश्ते हैं  |
       इनकी  चक्की में  गरीब-बेबस ही  पिसते हैं  |
       ऊँची  कुर्सी  मिलती   है   गुंडों-दादाओं    को  ,
       निर्दोषों   पर  ही कानून   शिकंजे   कसते   हैं |
रामराज  में  भी   सीता  निर्वासन पाए रे |
सारी दुनिया पागल समझे हँसी  उड़ाए रे |
       ट्राफिक-पुलिस भरी सड़कों पर हफ्ता करे वसूल |
       डंडों   के  बल   चलता   थानों   का  अंग्रेजी- रूल  |
       नेताओं    के   चमचों   की     ही   दखलंदाजी   से ,
       जंगलराज   रहा   है    देखो    सरेआम   फल-फूल |
सत्तालोभी  , आदर्शों  की   ढोल  बजाएँ  रे |
सारी दुनिया पागल समझे  हँसी  उड़ाए रे |
       वोटों के सौदागर सब कुछ जानके हैं अनजान |
       इक दूजे पर कीचड़ फेंकें   कितने   हुए   महान !
       जनता तो मुहरा है , इनको  कुर्सी हासिल   हो -
       फिर तो देश रहे या जाये याकि   बने  शमसान |
कोई    इनके   हाथों  में   दर्पण   पकड़ाए  रे | 
इनका असली चेहरा तो इनको दिखलाये रे |
             चौराहे पर खड़ा कबीरा अलख जगाए रे |
             सारी दुनिया पागल समझे हँसी उड़ाए रे |

13 comments:

  1. ट्राफिक-पुलिस भरी सड़कों पर हफ्ता करे वसूल |
    डंडों के बल चलता थानों का अंग्रेजी- रूल |
    नेताओं के चमचों की ही दखलंदाजी से ,
    जंगलराज रहा है देखो सरेआम फल-फूल |


    बहुत सुंदर..सामयिक रचना...यही सच है

    http://veenakesur.blogspot.com/

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  2. शत प्रतिशत सत्य, मग़र किसको चिंता
    बहुत सुंदर..सामयिक रचना

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  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (2/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  4. mehfil loot li aapne..........

    jeeyo jeeyo.........

    jai ho aapki !

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  5. वोटों के सौदागर सब कुछ जानके हैं अनजान |
    इक दूजे पर कीचड़ फेंकें कितने हुए महान !
    जनता तो मुहरा है , इनको कुर्सी हासिल हो -
    फिर तो देश रहे या जाये याकि बने शमसान
    सच बयान करती हुई खुबसुरत रचना।

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  6. नेता-पुलिस-माफियाओं के पक्के रिश्ते हैं |
    इनकी चक्की में गरीब-बेबस ही पिसते हैं |
    ऊँची कुर्सी मिलती है गुंडों-दादाओं को ,
    निर्दोषों पर ही कानून शिकंजे कसते हैं |


    बिलकुल सटीक बात कही है ...अच्छी रचना ..

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  7. झंझट जी,
    नमस्ते!
    सटीक. प्रवाहमयी. लयबद्ध. सार्थक. प्रेरक.
    यही सब और बहुत कुछ है आपकी रचना.
    आशीष
    ---
    नौकरी इज़ नौकरी!

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  8. चौराहे पर खड़ा कबीरा अलख जगाए रे |
    सारी दुनिया पागल समझे हँसी उड़ाए रे |

    kyaa baat kahee.jhinjhor diyaa.

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  9. वोटों के सौदागर सब कुछ जानके हैं अनजान |
    इक दूजे पर कीचड़ फेंकें कितने हुए महान !
    जनता तो मुहरा है , इनको कुर्सी हासिल हो -
    फिर तो देश रहे या जाये याकि बने शमसान |...

    आज की समाज व्यवस्था पर एक सटीक चोट...एक प्रभावपूर्ण प्रेरक अभिव्यक्ति ..आभार

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  10. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति। बधाई।

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  11. कोई इनके हाथों में दर्पण पकड़ाए रे |
    इनका असली चेहरा तो इनको दिखलाये रे |
    बहुत अच्छा और प्रभावी लिखा है.
    आज इसी जज्बे की आवश्यकता है.

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