सब्जी..
नखरीली प्रेमिका की तरह
इठलाती है..
निगाहों के पास मगर
पहुँच से दूर ...
हम देखते हैं घूर-घूर ..
टमाटर गालों की लाली
गोभी का फूल हँसी निराली
धनिया की महक
छूने को मन करता है..
मगर वह दूर हट जाती है
मेरी जेबों को टटोलकर
बड़ी अदा से कहती है..
'इंतजार में बड़ा मज़ा है
जल्दबाजी में न आना
दूर से ही देखते रहना
मगर हाथ मत लगाना'..
MEHGAI KE MADHYAM SE SUNDER KAVITA LIKHI HAI
ReplyDeleteसुरेन्द्र सिंह जी
ReplyDeleteनमस्कार !
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
सुन्दर चित्रण किया है.....हाथ में आने के बाद शायद महत्त्व घट जाता है.
ReplyDeleteमंहगाई- मजेदार विश्लेषण.
ReplyDelete... bahut sundar ... saarthak rachanaa !!!
ReplyDeleteवाह, वाह...बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteवाह जी वाह क्या चित्रण किया है…………बहुत खूब्।
ReplyDeleteहा हा ...बहुत बढ़िया ....
ReplyDeletesabjiyon ka vaktavya...
ReplyDeletewaah!
Interesting one. GoooooooooooooooooooD.
ReplyDeleteसुन्दर भाव और शब्दविन्यास! आप "सच में" पर आये और विचार व्यक्त करने लिये आभार!
ReplyDeleteSundar rachna.
ReplyDeleteमहगॉंई के दर्द को आपने बहुत अच्छे तरीके से बयॉं किया है। आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और रोचक चित्रण ...... महगाई और सब्जियों का बिम्ब अच्छा बन पड़ा है....
ReplyDeleteसब्जी..
ReplyDeleteनखरीली प्रेमिका की तरह
इठलाती है.. ...
very nice....aisa ho raha hai aur yah premika aur door hoti chali jaa rahi hai.....isme milawat bhi hone lagi...
मंहगाई मार गई
ReplyDeleteवाह..!
ReplyDeleteआपने रचना में बढ़िया प्रयोग किये है!
मन को भा गई ये रचना
ReplyDeletesundar rachana
ReplyDeleteaap gonda se hai yh jankar aur bhi achcha laga bcoz gonda is my home dist.
behtreen prastuti...vadhayi!!!
ReplyDeleteha ha ha.....bohot khoob sir...bohot hi badhiya
ReplyDeleteha ha ha ha ha
ReplyDeleteमहंगाई पर कविताई ..इसके लिए सुरेन्द्र जी को बधाई
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