Friday, December 10, 2010

महँगाई

  सब्जी..
 नखरीली प्रेमिका की तरह
इठलाती है..
निगाहों के पास मगर
पहुँच से दूर ...
हम देखते हैं घूर-घूर ..
टमाटर गालों की लाली
गोभी का फूल हँसी निराली
धनिया की महक
छूने को मन करता है..
मगर वह दूर हट जाती है
मेरी जेबों को टटोलकर
बड़ी अदा से कहती है..
'इंतजार में बड़ा मज़ा है
जल्दबाजी में न आना
दूर से ही देखते रहना
मगर हाथ मत लगाना'..



23 comments:

  1. सुरेन्द्र सिंह जी
    नमस्कार !

    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  2. सुन्दर चित्रण किया है.....हाथ में आने के बाद शायद महत्त्व घट जाता है.

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  3. मंहगाई- मजेदार विश्लेषण.

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  4. ... bahut sundar ... saarthak rachanaa !!!

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  5. वाह, वाह...बहुत बढ़िया।

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  6. वाह जी वाह क्या चित्रण किया है…………बहुत खूब्।

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  7. Interesting one. GoooooooooooooooooooD.

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  8. सुन्दर भाव और शब्दविन्यास! आप "सच में" पर आये और विचार व्यक्त करने लिये आभार!

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  9. महगॉंई के दर्द को आपने बहुत अच्छे तरीके से बयॉं किया है। आभार।

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  10. बहुत सुंदर और रोचक चित्रण ...... महगाई और सब्जियों का बिम्ब अच्छा बन पड़ा है....

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  11. सब्जी..
    नखरीली प्रेमिका की तरह
    इठलाती है.. ...
    very nice....aisa ho raha hai aur yah premika aur door hoti chali jaa rahi hai.....isme milawat bhi hone lagi...

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  12. वाह..!
    आपने रचना में बढ़िया प्रयोग किये है!

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  13. sundar rachana

    aap gonda se hai yh jankar aur bhi achcha laga bcoz gonda is my home dist.

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  14. ha ha ha.....bohot khoob sir...bohot hi badhiya

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  15. महंगाई पर कविताई ..इसके लिए सुरेन्द्र जी को बधाई

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