(अभी तक मैंने इस ब्लॉग पर जो भी पोस्ट किया - गीत, कविता ,लेख ,हास्य -व्यंग , मुक्तक ,ग़ज़ल आदि सब खड़ी बोली की रचनाएँ हैं | आज मेरे मन में अवधी के लालित्य से परिपूर्ण एक पुराने 'जाड़ा गीत' की कुछ पंक्तियाँ अनायास ही आ गयीं , मोह संवरण न कर सका | आज वही - इस ब्लॉग पर अवधी की पहली रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ | )
कांपि गवा हड्डी कै ढाँचा कट-कट बोलैं दाँत
हाथ-पाँव सब सुन्न होइ गवा जाड़ा कै उत्पात
होय बारह बजे भिनसार , उठे हैं बाबूजी
लाख कोस होइगा दुआर , उठे हैं बाबूजी
गरम नाश्ता चाय चाहिए पड़े-पड़े चरपाई
छूटि जाय संसार मुला न छूटै गरम रजाई
कोऊ बाँधि गवा पाँव मा पहार ,उठे हैं बाबूजी
लाख कोस होइगा दुआर ,उठे हैं बाबूजी
भोर नहान जानि पंडितजी हाथ-पाँव सब सूजा
यक लोटा पानी मा होइगा स्नान,ध्यान औ पूजा
करैं जोर-जोर राम कै पुकार ,उठे हैं बाबूजी
लाख कोस होइ गा दुवार, उठे हैं बाबूजी
राति-बिराति द्वार जौ खटकै मुश्किल होइगा उठना
धोती कौन बिसात हारिगा यहिसे ऊनी सुथना
कांपै थर-थर देहियाँ कै भार, उठे हैं बाबूजी
लाख कोस होइगा दुवार, उठे हैं बाबूजी
झूरि लकड़िया हरियर होइगय चलिगय मस्त बयरिया
पियर चुनरिया धरती पहिरे फूलि रही सरसोइया
ऋतुराज खटकावें दुआर , उठे हैं बाबूजी
होय बारह बजे भिनसार , उठे हैं बाबूजी
अवधी भाषा में उम्दा प्रस्तुति। सर्दी और जर-जर वृद्धावस्था का बढ़िया वर्णन ।
ReplyDeleteAvadhi ki sundar rachana
ReplyDeleteअवधी भाषा में उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteओह ! बहुत सुन्दर ....आभार सुरेन्द्र जी.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteझूरि लकड़िया हरियर होइगय चलिगय मस्त बयरिया
ReplyDeleteपियर चुनरिया धरती पहिरे फूलि रही सरसोइया
ऋतुराज खटकावें दुआर , उठे हैं बाबूजी
होय बारह बजे भिनसार , उठे हैं बाबूजी .....
बेहतरीन रचना . पहली बार ब्लॉग पर अवधी में पढने को मिला. सर्दी और वसंत का सुंदर चित्रण. शुभकामना .
भोर नहान जानि पंडितजी हाथ-पाँव सब सूजा
ReplyDeleteयक लोटा पानी मा होइगा स्नान,ध्यान औ पूजा
अवधि भाषा में जाडे का मजेदार प्रस्तुतिकरण.
य हमारे भाषा से कुछु मिळत-जुलत भाषा ही... ऐहिंसे बहुत नीक लाग मान लेई अपना के य गीत... ओईसे य कौने अंचल के आय???
ReplyDeleteपहिचान करावें के बहुत-बहुत आभार है...
छूटि जाय संसार मुला न छूटै गरम रजाई
ReplyDeleteठण्ड पर इस से बेहतर पंक्ति और क्या होगी...वाह आनंद आ गया आज अवधि गीत पढ़ कर
नीरज
कविता अच्छी है.पं.के पाखण्ड पर चोट वाली पंक्तियाँ बहुत भायीं.
ReplyDeleteमौसम के माध्यम से जीवन के कई पक्षों को भी छुआ गया है. भाषा की आँचलिकता अपनी सुगंध बिखरा गई.
ReplyDeletevery nice blog dear.... nice post
ReplyDeleteLyrics Mantra
Music Bol
बहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeleteआपकी हर रचना कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है। उमदा प्रस्तुति। बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर अवधी रचना.
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ReplyDeleteआदरणीय सुरेन्द्र भाई
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
आपके यहां न पहुंचने का सीधा अर्थ है श्रेष्ठ सृजन के आस्वादन से वंचित रहना ।
विलंब से आने पर भी मधुर रचनाओं का प्रसाद पाकर संतुष्टि के अवसर उपलब्ध हैं,
यही प्रसन्नता है ।
अवधी का सरस माधुर्य छलकाती गीत रचना होय बारह बजे भिनसार पढ़ी तो बस… ,
पढ़ता ही रह गया ।
शीत के भीषण प्रकोप से बसंत के आगमन का अद्भुत आह्लादित कर देने वाला चित्रण
मन को मुग्ध कर गया ।
भाषा का लोक स्वरूप मुझे वैसे भी आकर्षित करता है,
फिर इतने कसे हुए शिल्प में ऐसा लालित्य लिये हुए इतनी सुंदर गीत रचना !
मुझ जैसे छंद के हर विद्यार्थी के लिए सम्मोहित हो जाने की पूरी संभावना है, सुरेन्द्र जी !
मां सरस्वती आपकी लेखनी की गरिमा द्विगुणित करे … !
~*~संपूर्ण नव वर्ष 2011 तथा आने वाले पर्व त्यौंहारों के लिए हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार