Wednesday, January 19, 2011

होय बारह बजे भिनसार ....

(अभी तक मैंने इस ब्लॉग पर जो भी पोस्ट किया - गीत, कविता ,लेख ,हास्य -व्यंग , मुक्तक ,ग़ज़ल आदि सब खड़ी बोली की  रचनाएँ हैं | आज मेरे मन में  अवधी के लालित्य से परिपूर्ण एक पुराने 'जाड़ा गीत' की  कुछ पंक्तियाँ अनायास ही आ गयीं , मोह संवरण न कर सका | आज वही - इस ब्लॉग पर अवधी की पहली रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ | )

कांपि गवा हड्डी कै ढाँचा कट-कट  बोलैं दाँत
हाथ-पाँव सब सुन्न होइ गवा जाड़ा कै उत्पात
           होय बारह बजे भिनसार , उठे हैं बाबूजी
           लाख कोस होइगा दुआर  , उठे हैं बाबूजी

गरम नाश्ता चाय चाहिए पड़े-पड़े  चरपाई
छूटि जाय संसार मुला न छूटै गरम रजाई
          कोऊ बाँधि गवा पाँव मा पहार ,उठे हैं बाबूजी
          लाख   कोस   होइगा दुआर ,उठे हैं    बाबूजी

भोर नहान जानि पंडितजी  हाथ-पाँव  सब सूजा
यक लोटा पानी मा होइगा स्नान,ध्यान औ पूजा
          करैं जोर-जोर राम कै पुकार ,उठे हैं बाबूजी
          लाख कोस  होइ   गा दुवार,   उठे हैं बाबूजी

राति-बिराति द्वार जौ खटकै मुश्किल होइगा उठना
धोती कौन बिसात   हारिगा  यहिसे  ऊनी   सुथना
                कांपै थर-थर देहियाँ कै भार, उठे हैं बाबूजी
               लाख कोस  होइगा  दुवार,  उठे हैं   बाबूजी

झूरि लकड़िया हरियर होइगय चलिगय मस्त बयरिया
पियर  चुनरिया   धरती पहिरे    फूलि  रही सरसोइया
                    ऋतुराज खटकावें दुआर , उठे हैं    बाबूजी
                    होय बारह बजे  भिनसार , उठे हैं   बाबूजी

17 comments:

  1. अवधी भाषा में उम्दा प्रस्तुति। सर्दी और जर-जर वृद्धावस्था का बढ़िया वर्णन ।

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  2. अवधी भाषा में उम्दा प्रस्तुति।

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  3. ओह ! बहुत सुन्दर ....आभार सुरेन्द्र जी.

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  4. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  5. झूरि लकड़िया हरियर होइगय चलिगय मस्त बयरिया
    पियर चुनरिया धरती पहिरे फूलि रही सरसोइया
    ऋतुराज खटकावें दुआर , उठे हैं बाबूजी
    होय बारह बजे भिनसार , उठे हैं बाबूजी .....

    बेहतरीन रचना . पहली बार ब्लॉग पर अवधी में पढने को मिला. सर्दी और वसंत का सुंदर चित्रण. शुभकामना .

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  6. भोर नहान जानि पंडितजी हाथ-पाँव सब सूजा
    यक लोटा पानी मा होइगा स्नान,ध्यान औ पूजा

    अवधि भाषा में जाडे का मजेदार प्रस्तुतिकरण.

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  7. य हमारे भाषा से कुछु मिळत-जुलत भाषा ही... ऐहिंसे बहुत नीक लाग मान लेई अपना के य गीत... ओईसे य कौने अंचल के आय???
    पहिचान करावें के बहुत-बहुत आभार है...

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  8. छूटि जाय संसार मुला न छूटै गरम रजाई

    ठण्ड पर इस से बेहतर पंक्ति और क्या होगी...वाह आनंद आ गया आज अवधि गीत पढ़ कर



    नीरज

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  9. कविता अच्छी है.पं.के पाखण्ड पर चोट वाली पंक्तियाँ बहुत भायीं.

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  10. मौसम के माध्यम से जीवन के कई पक्षों को भी छुआ गया है. भाषा की आँचलिकता अपनी सुगंध बिखरा गई.

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  11. आपकी हर रचना कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है। उमदा प्रस्तुति। बधाई।

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  12. सुन्दर अवधी रचना.

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  13. This comment has been removed by the author.

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  14. आदरणीय सुरेन्द्र भाई
    सस्नेहाभिवादन !

    आपके यहां न पहुंचने का सीधा अर्थ है श्रेष्ठ सृजन के आस्वादन से वंचित रहना ।
    विलंब से आने पर भी मधुर रचनाओं का प्रसाद पाकर संतुष्टि के अवसर उपलब्ध हैं,
    यही प्रसन्नता है ।

    अवधी का सरस माधुर्य छलकाती गीत रचना होय बारह बजे भिनसार पढ़ी तो बस… ,
    पढ़ता ही रह गया ।
    शीत के भीषण प्रकोप से बसंत के आगमन का अद्भुत आह्लादित कर देने वाला चित्रण
    मन को मुग्ध कर गया ।

    भाषा का लोक स्वरूप मुझे वैसे भी आकर्षित करता है,
    फिर इतने कसे हुए शिल्प में ऐसा लालित्य लिये हुए इतनी सुंदर गीत रचना !
    मुझ जैसे छंद के हर विद्यार्थी के लिए सम्मोहित हो जाने की पूरी संभावना है, सुरेन्द्र जी !

    मां सरस्वती आपकी लेखनी की गरिमा द्विगुणित करे … !

    ~*~संपूर्ण नव वर्ष 2011 तथा आने वाले पर्व त्यौंहारों के लिए हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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