लेना और देना दहेज़ - जुर्म दोनों है ,
कागज की बातें हैं कागज में रहने दो |
या तो हो शामिल या फिर तुम मौन रहो ,
जो सहने के आदी हैं- सहते हैं, सहने दो |
कौन रोक पाया है कौन रोक पायेगा ?
झंझट न पालो गंग बहती है, बहने दो |
रहना है शासन में कुर्सी बचानी है ,
भाषण की बातें हैं , भाषण में कहने दो |
लेना और देना दहेज़ - जुर्म दोनों है ,
ReplyDeleteकागज की बातें हैं कागज में रहने दो |
sundar rachna
सुरेन्द्र भाई, गहरा पंच मारा है। बधाई।
ReplyDelete---------
मिल गया खुशियों का ठिकाना।
वैज्ञानिक पद्धति किसे कहते हैं?
bahut acchhe....jhanjhat bhaayi.....!!!
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी, बहुत ही सुंदर चित्रण किया है, जब तक कथनी और करनी में अंतर रहेगा, व्यवस्थाओं में परिवर्तन या फिर स्वंय में ही क्यों न हो, दिवास्वप्न सामान ही है.
ReplyDeleteजब देने वाला खुश और लेने वाला डबल खुश, तो हम क्यो टाँग अडाये।
ReplyDeleteसुन्दर एवं सार्थक रचना के लिए बधाई
भाषण की बातें हैं भाषण में रहने दो.
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति के लिये बधाई...
... bahut khoob !!
ReplyDeleteभाषण की बातें हैं भाषण में रहने दो....
ReplyDeleteसही कहा आपने । भाषण देने वालों से अधिक क्या अपेक्षा की जाए।
ram ram ji...
ReplyDeleteभाषण की बातें हैं , भाषण में कहने दो |
bahut sahi kaha...bhaashan ki baatein waheen achi lagti hai guru ji!
बातें हैं , भाषण में कहने दो |
ReplyDeletenice
ReplyDeleteसार्थक एवं सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteSahi kaha aapne, baatein hain, baaton ka kya ! Sundar rachna.
ReplyDeleteसुन्दर एवं सार्थक रचना के लिए बधाई|
ReplyDeleteरचना अच्छी है... परन्तु विचारों से मेल न खाने के लिए माफी चाहती हूँ...
ReplyDeleteकिसी-न-किसी को तो आगे आना होगा... और यदि हम ऐसा ही सोचेंगे तो फ़िर किसी और को दोष देने का हक़ भी नहीं है हमें... न दहेज़ लेने-देने वालों को और न ही सरकार को... आख़िर हम भी तो वही कर रहें हैं जो वो कर रहे हैं...
जो गलत है वो हमेशा ही गलत रहेगा। चाहे वो प्रथा कितनी भी पुरानी क्यों न हो। जिनके पास साधन है वो तो निकल जाते है लेकिन कम हैसियत वाले लोग मारे जाते है।
ReplyDeleteसच्चाई को मुखरित करती हुई प्रखर रचना !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
poojaji,amitji!
ReplyDeleterachna me galat ko galat hi kaha gaya hai.
yadi 'shirshak' par dhyan dete huye kavita ke kathy ko dekhen to swatah spasht ho jata hai .
chhand me netaon ke domuhe acharan par vyang
hai.
'neta uvach'me aaj ke neta ki mansikta hi ujagar hoti hai.
aam admi to shrota hi hai jisse ukt baaten kahi ja rahi hain.
wah...achchi rachana hai
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य कसा है आपने।
ReplyDeleteरचना पसंद आई।
भाषण की बातें हैं , भाषण में कहने दो |
ReplyDeleteekdam theek bole hain.