Tuesday, January 4, 2011

दहेज़ - नेता उवाच

लेना   और  देना   दहेज़  -  जुर्म    दोनों  है ,
कागज की बातें हैं   कागज में  रहने   दो |
या तो हो शामिल या फिर तुम मौन रहो ,
जो सहने के आदी हैं- सहते हैं, सहने दो |
कौन  रोक  पाया है   कौन   रोक  पायेगा ?
झंझट  न  पालो   गंग  बहती है,  बहने  दो |
रहना    है  शासन   में    कुर्सी    बचानी  है ,
भाषण की   बातें हैं , भाषण   में  कहने दो |

21 comments:

  1. लेना और देना दहेज़ - जुर्म दोनों है ,
    कागज की बातें हैं कागज में रहने दो |

    sundar rachna

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  2. सुरेन्द्र जी, बहुत ही सुंदर चित्रण किया है, जब तक कथनी और करनी में अंतर रहेगा, व्यवस्थाओं में परिवर्तन या फिर स्वंय में ही क्यों न हो, दिवास्वप्न सामान ही है.

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  3. जब देने वाला खुश और लेने वाला डबल खुश, तो हम क्यो टाँग अडाये।
    सुन्दर एवं सार्थक रचना के लिए बधाई

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  4. भाषण की बातें हैं भाषण में रहने दो.
    शानदार प्रस्तुति के लिये बधाई...

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  5. भाषण की बातें हैं भाषण में रहने दो....
    सही कहा आपने । भाषण देने वालों से अधिक क्या अपेक्षा की जाए।

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  6. ram ram ji...
    भाषण की बातें हैं , भाषण में कहने दो |
    bahut sahi kaha...bhaashan ki baatein waheen achi lagti hai guru ji!

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  7. बातें हैं , भाषण में कहने दो |

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  8. सार्थक एवं सुन्दर अभिव्यक्ति

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  9. Sahi kaha aapne, baatein hain, baaton ka kya ! Sundar rachna.

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  10. सुन्दर एवं सार्थक रचना के लिए बधाई|

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  11. रचना अच्छी है... परन्तु विचारों से मेल न खाने के लिए माफी चाहती हूँ...
    किसी-न-किसी को तो आगे आना होगा... और यदि हम ऐसा ही सोचेंगे तो फ़िर किसी और को दोष देने का हक़ भी नहीं है हमें... न दहेज़ लेने-देने वालों को और न ही सरकार को... आख़िर हम भी तो वही कर रहें हैं जो वो कर रहे हैं...

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  12. जो गलत है वो हमेशा ही गलत रहेगा। चाहे वो प्रथा कितनी भी पुरानी क्यों न हो। जिनके पास साधन है वो तो निकल जाते है लेकिन कम हैसियत वाले लोग मारे जाते है।

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  13. सच्चाई को मुखरित करती हुई प्रखर रचना !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  14. poojaji,amitji!
    rachna me galat ko galat hi kaha gaya hai.
    yadi 'shirshak' par dhyan dete huye kavita ke kathy ko dekhen to swatah spasht ho jata hai .
    chhand me netaon ke domuhe acharan par vyang
    hai.
    'neta uvach'me aaj ke neta ki mansikta hi ujagar hoti hai.
    aam admi to shrota hi hai jisse ukt baaten kahi ja rahi hain.

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  15. अच्छा व्यंग्य कसा है आपने।

    रचना पसंद आई।

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  16. भाषण की बातें हैं , भाषण में कहने दो |
    ekdam theek bole hain.

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