Friday, January 21, 2011

अब इंतज़ार किसका है ?

आशा के उपवन में
बरस पड़े प्रस्तर खंड
अंतस का भाव-भवन
हो गया खण्ड-खण्ड
चिर प्रतीक्षित काल
आया तो ऐसा.....अब इंतज़ार किसका है ?

खिलने से पहले ही
कलियों पर वज्रपात
सस्मित सुमनों के
हँसते ही आघात
कांपती-लरजती बेलि
का अवलंब अब
हो रहा ठूंठ सा
आते ही लौट गया
मधुरिम बसंत
 किन्तु
खेल रहा दुसह खेल
उन्मत्त पतझार
फूलों की लाश पर
हँसता शमसान ....अब इंतज़ार किसका है ?

कविता की सरस धार
पथरीली राहों की
सहती अनवरत मार
कंठ में ही सूख गयी
बूँद-बूँद करके अब
खोल रही
पलकों के बंद द्वार
एक अनजाना भाव
पूंछता जिजीविषा से ..इंतजार किसका है ?
                       .....अब इंतज़ार किसका है ? 
  

18 comments:

  1. haan ...kanth me hi sukh gayi bund bund ..ab intzaar kiska hai....behtarin...

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  2. आदरणीय सुरेन्द्र सिंह जी
    नमस्कार !
    बहुत पसन्द आया
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  3. हो रहा ठूंठ सा
    आते ही लौट गया
    मधुरिम बसंत
    किन्तु
    खेल रहा दुसह खेल
    उन्मत्त पतझार
    फूलों की लाश पर
    हँसता शमसान ....अब इंतज़ार किसका है ?

    ..............गजब कि पंक्तियाँ हैं

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  4. दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  5. भाई झंझट जी !

    आपने गज़ब कर दिया, बोले तो..........एक दम जकास !

    इतनी कोमलकांत कविता ...इतनी सुन्दर और अभिनव कविता के लिए बधाई स्वीकार कीजिये !

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  6. सस्मित सुमनों के
    हँसते ही आघात

    सुरेन्द्र जी बहुत अच्छी कविता .....
    शब्दों का संयोजन भी अच्छा है ....

    एक अनजाना भाव
    पूछता जिजीविषा से ..
    इंतजार किसका है ?

    ये इन्तजार तो मनुष्य को हमेशा ही रहा है ....

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  7. आते ही लौट गया
    मधुरिम बसंत
    किन्तु
    खेल रहा दुसह खेल
    उन्मत्त पतझार
    फूलों की लाश पर
    हँसता शमसान ....अब इंतज़ार किसका है ?

    मनभावन कविता!

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  8. अंतस का भाव-भवन
    हो गया खण्ड-खण्ड
    ... bahut sundar !!

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  9. प्रिय बंधुवर सुरेन्द्र सिंह जी "झंझट"
    अत्र कुशलम् तत्रास्तु !

    अब इंतज़ार किसका है ? अच्छा गीत है , बधाई स्वीकारें ।

    आशा के उपवन में
    बरस पड़े प्रस्तर खण्ड
    अंतस का भाव-भवन
    हो गया खण्ड-खण्ड

    चिर प्रतीक्षित काल
    आया तो ऐसा…
    अब इंतज़ार किसका है ?


    आपका लेखन रोमांचित करता है ,
    पढ़ने क साथ ही मन से दुआएं निकलनी शुरू हो जाती हैं ।

    बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाएं !

    एक सुझाव है, यार ! ये 'झंझट' उपनाम आपके गरिमामय सृजन का आभास नहीं कराता …
    मंचों पर चुटकलेबाजी करने वाले क्षणिक धूम धड़ाकिया रचनाकार जैसी छबि प्रतीत होती है …
    जबकि आपकी रचनाएं कालजयी संभावना लिये होती हैं ।
    बस, लगा तो कह दिया । अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं ।

    आपका ही
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. आशा के उपवन में
    बरस पड़े प्रस्तर खंड
    अंतस का भाव-भवन
    हो गया खण्ड-खण्ड
    चिर प्रतीक्षित काल
    आया तो ऐसा.....अब इंतज़ार किसका है ?

    शब्द संयोजन, भाव और अभिव्यक्ति , तीनों लिहाज से अल दर्जे की रचना ....परिणाम देखने बाद भी अब इंतजार किसका है ? बहुत खूब सुरेन्द्र जी!
    एक बात और क्षमा प्रार्थना के साथ....मैं सम्माननीय राजेंद्र स्वर्णकार जी की बात से सहमत हूँ!

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  11. सुन्दर रचना....ये इन्तजार चलता ही रहा है.

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  12. भाई झंझट जी!
    आपके ब्लाग को मैं बराबर पढ़ता रहा हूँ। कुछ तकनीकी खराबी के कारण अपनी टिप्पणी नहीं कर पा रहा था। आपकी रचना "अब इंतजार किसका है" के प्रकाशन पर थोड़े से प्रयास से वह दोष दूर हो गया है। अब इंतजार किसी का नहीं है। इस गीत में एक मार्मिक अनुभूति है जो पाठक को चिंतन करने पर विवश कर देती है। सराहनीय लेखन के लिए बधाई। सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी

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  13. झंझट जी, आपने बहुत बढ़िया कविता लिखी है. इससे पहले जो कविता आपने भोजपुरी में लिखा है वो भी लाज़वाब है.....पढ़ कर अच्छा लगा...बधाई स्वीकारें

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  14. पलकों के बंद द्वार
    एक अनजाना भाव
    पूंछता जिजीविषा से ..इंतजार किसका है ?
    .....अब इंतज़ार किसका है ?

    जितनी भी तारीफ़ करूँ , कम होगी !

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  15. कविता की सरस धार
    पथरीली राहों की
    सहती अनवरत मार
    कंठ में ही सूख गयी
    बूँद-बूँद करके अब
    खोल रही
    पलकों के बंद द्वार

    हां अब इंतजार किसका है...फिर भी इंतजार तो रहता ही है...
    सुंदर कविता... बधाई

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  16. bouth he aacha post kiya hai aapne ... read kar ke aacha lagaa
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  17. खिलने से पहले ही
    कलियों पर वज्रपात
    सस्मित सुमनों के
    हँसते ही आघात

    बहुत खूबसूरत रचना ....देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ

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