आशा के उपवन में
बरस पड़े प्रस्तर खंडअंतस का भाव-भवन
हो गया खण्ड-खण्ड
चिर प्रतीक्षित काल
आया तो ऐसा.....अब इंतज़ार किसका है ?
खिलने से पहले ही
कलियों पर वज्रपात
सस्मित सुमनों के
हँसते ही आघात
कांपती-लरजती बेलि
का अवलंब अब
हो रहा ठूंठ सा
आते ही लौट गया
मधुरिम बसंत
किन्तु
खेल रहा दुसह खेल
उन्मत्त पतझार
फूलों की लाश पर
हँसता शमसान ....अब इंतज़ार किसका है ?
कविता की सरस धार
पथरीली राहों की
सहती अनवरत मार
कंठ में ही सूख गयी
बूँद-बूँद करके अब
खोल रही
पलकों के बंद द्वार
एक अनजाना भाव
पूंछता जिजीविषा से ..इंतजार किसका है ?
.....अब इंतज़ार किसका है ?
haan ...kanth me hi sukh gayi bund bund ..ab intzaar kiska hai....behtarin...
ReplyDeleteआदरणीय सुरेन्द्र सिंह जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत पसन्द आया
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
हो रहा ठूंठ सा
ReplyDeleteआते ही लौट गया
मधुरिम बसंत
किन्तु
खेल रहा दुसह खेल
उन्मत्त पतझार
फूलों की लाश पर
हँसता शमसान ....अब इंतज़ार किसका है ?
..............गजब कि पंक्तियाँ हैं
दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
ReplyDeleteभाई झंझट जी !
ReplyDeleteआपने गज़ब कर दिया, बोले तो..........एक दम जकास !
इतनी कोमलकांत कविता ...इतनी सुन्दर और अभिनव कविता के लिए बधाई स्वीकार कीजिये !
सस्मित सुमनों के
ReplyDeleteहँसते ही आघात
सुरेन्द्र जी बहुत अच्छी कविता .....
शब्दों का संयोजन भी अच्छा है ....
एक अनजाना भाव
पूछता जिजीविषा से ..
इंतजार किसका है ?
ये इन्तजार तो मनुष्य को हमेशा ही रहा है ....
आते ही लौट गया
ReplyDeleteमधुरिम बसंत
किन्तु
खेल रहा दुसह खेल
उन्मत्त पतझार
फूलों की लाश पर
हँसता शमसान ....अब इंतज़ार किसका है ?
मनभावन कविता!
अंतस का भाव-भवन
ReplyDeleteहो गया खण्ड-खण्ड
... bahut sundar !!
प्रिय बंधुवर सुरेन्द्र सिंह जी "झंझट"
ReplyDeleteअत्र कुशलम् तत्रास्तु !
अब इंतज़ार किसका है ? अच्छा गीत है , बधाई स्वीकारें ।
आशा के उपवन में
बरस पड़े प्रस्तर खण्ड
अंतस का भाव-भवन
हो गया खण्ड-खण्ड
चिर प्रतीक्षित काल
आया तो ऐसा…
अब इंतज़ार किसका है ?
आपका लेखन रोमांचित करता है ,
पढ़ने क साथ ही मन से दुआएं निकलनी शुरू हो जाती हैं ।
बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाएं !
एक सुझाव है, यार ! ये 'झंझट' उपनाम आपके गरिमामय सृजन का आभास नहीं कराता …
मंचों पर चुटकलेबाजी करने वाले क्षणिक धूम धड़ाकिया रचनाकार जैसी छबि प्रतीत होती है …
जबकि आपकी रचनाएं कालजयी संभावना लिये होती हैं ।
बस, लगा तो कह दिया । अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं ।
आपका ही
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आशा के उपवन में
ReplyDeleteबरस पड़े प्रस्तर खंड
अंतस का भाव-भवन
हो गया खण्ड-खण्ड
चिर प्रतीक्षित काल
आया तो ऐसा.....अब इंतज़ार किसका है ?
शब्द संयोजन, भाव और अभिव्यक्ति , तीनों लिहाज से अल दर्जे की रचना ....परिणाम देखने बाद भी अब इंतजार किसका है ? बहुत खूब सुरेन्द्र जी!
एक बात और क्षमा प्रार्थना के साथ....मैं सम्माननीय राजेंद्र स्वर्णकार जी की बात से सहमत हूँ!
सुन्दर रचना....ये इन्तजार चलता ही रहा है.
ReplyDeleteभाई झंझट जी!
ReplyDeleteआपके ब्लाग को मैं बराबर पढ़ता रहा हूँ। कुछ तकनीकी खराबी के कारण अपनी टिप्पणी नहीं कर पा रहा था। आपकी रचना "अब इंतजार किसका है" के प्रकाशन पर थोड़े से प्रयास से वह दोष दूर हो गया है। अब इंतजार किसी का नहीं है। इस गीत में एक मार्मिक अनुभूति है जो पाठक को चिंतन करने पर विवश कर देती है। सराहनीय लेखन के लिए बधाई। सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
झंझट जी, आपने बहुत बढ़िया कविता लिखी है. इससे पहले जो कविता आपने भोजपुरी में लिखा है वो भी लाज़वाब है.....पढ़ कर अच्छा लगा...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteपलकों के बंद द्वार
ReplyDeleteएक अनजाना भाव
पूंछता जिजीविषा से ..इंतजार किसका है ?
.....अब इंतज़ार किसका है ?
जितनी भी तारीफ़ करूँ , कम होगी !
कविता की सरस धार
ReplyDeleteपथरीली राहों की
सहती अनवरत मार
कंठ में ही सूख गयी
बूँद-बूँद करके अब
खोल रही
पलकों के बंद द्वार
हां अब इंतजार किसका है...फिर भी इंतजार तो रहता ही है...
सुंदर कविता... बधाई
bouth he aacha post kiya hai aapne ... read kar ke aacha lagaa
ReplyDeletePleace visit My Blog Dear Friends...
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waah... bahut achha likha hai
ReplyDeleteखिलने से पहले ही
ReplyDeleteकलियों पर वज्रपात
सस्मित सुमनों के
हँसते ही आघात
बहुत खूबसूरत रचना ....देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ