सब कुछ देखें अधर न खोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
उनमें हम भी शामिल हो लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
परदे के पीछे की बातें , परदे में ही रहने दें ,
सच्चाई का राज न खोलें , कुछ न कहें तो अच्छा है |
बाज़ारों से कई मुखौटे , खरीद लाने के दिन हैं ,
असली चेहरा कभी न खोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
महज़ स्वार्थ के दलदल में, सम्बन्ध धँसे , मजबूरी है ,
कठपुतली सा नाचें खेलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
दाँतों के चंगुल में जिह्वा, जैसे विभीषण लंका में ,
रावण के हमराही हो लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
पर उपदेश कुशल बहुतेरे , बड़ा पुराना ढर्रा है ,
पहले अपना ह्रदय टटोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
अधरों पर ताला अनजाना और आँसुओं पर पहरे ,
भीतर-भीतर सब कुछ पी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
एक ज़िन्दगी भार सरीखी, साँस - साँस धिक्कार भरी ,
चलो अनमनेपन से जी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
आदरणीय सुरेन्द्र सिंह जी
ReplyDeleteनमस्कार !
एक ज़िन्दगी भार सरीखी, साँस - साँस धिक्कार भरी ,
चलो अनमनेपन से जी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
मेरी शुभकामना है की आपकी कलम में माँ शारदे ऐसे ही ताकत दे...:)
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
ReplyDeletenavbarsh ki bahut bahut badhai
प्रिय भाई जी ..सादर नमस्कार !
ReplyDeleteएक बार फिर से बहुत सुन्दर 'सरल' और मर्मस्पर्शी रचना ....
एक सुखद अहसास आपको हर बार पढना
अधरों पर ताला अनजाना और आँसुओं पर पहरे ,
भीतर-भीतर सब कुछ पी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
..भाई जी महसूस करने दीजिये टिप्पड़ी व्यर्थ है इस पर अनुभूति की बात है यह तो !
एक ज़िन्दगी भार सरीखी, साँस - साँस धिक्कार भरी ,
चलो अनमनेपन से जी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
बाज़ारों से कई मुखौटे , खरीद लाने के दिन हैं ,
ReplyDeleteअसली चेहरा कभी न खोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
asli chehra rakho to bhi nakli hi manenge , to pahan lo mukhauta .... khamosh raho , munh kholte phir wahi baat hogi
सब कुछ देखें अधर न खोलें,
ReplyDeleteकुछ न कहें तो अच्छा है |
उनमें हम भी शामिल हो लें,
कुछ न कहें तो अच्छा है |
बाज़ारों से कई मुखौटे ,
खरीद लाने के दिन हैं ,
असली चेहरा कभी न खोलें,
कुछ न कहें तो अच्छा है |
वाह, बहुत खूब
नव संवत्सर तथा नवरात्रि पर्व की बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबाज़ारों से कई मुखौटे, खरीद लाने के दिन हैं,
ReplyDeleteअसली चेहरा कभी न खोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है।
वाह, सुरेन्द्र जी, वाह...
सभी पंक्तियां शानदार हैं, यथार्थ को उकेरती हुईं।
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है।
बधाई स्वीकार करें।
नव वर्ष में हमेशा ये बहार रहे !
ReplyDeleteमेरी शुभ कामना हमेशा ये स्नेह बना रहे !!
कमाल की गज़ल लिखी है, शेर एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteतारीफ करें क्या बतलाओ, कुछ न कहें तो अच्छा है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletebahut Badhiya Jhanjhat ji.
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteनवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ...
चलो अनमने मन से जी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है। बेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDeleteबधाई सुरेन्द्र भाई।
बाज़ारों से कई मुखौटे ,
ReplyDeleteखरीद लाने के दिन हैं ,
असली चेहरा कभी न खोलें,
कुछ न कहें तो अच्छा है
बड़ी प्रासंगिक और सटीक पंक्तियाँ हैं..... बहुत बढ़िया
ये कैसे झटके मार दिए 'झंझट'जी,हम तो कहना चाह रहें हैं और आप कह रहें हैं 'कुछ न कहें तो अच्छा हैं'.पर फिर भी मैंने कुछ कह ही डाला है अपनी नई पोस्ट 'वन्दे वाणी विनयाकौ' पर. अब आप भी कुछ कह दीजिये वहां आकर.
ReplyDeleteनवसंवत्सर पर हार्दिक शुभ कामनाएँ .
पर उपदेश कुशल बहुतेरे , बड़ा पुराना ढर्रा है ,
ReplyDeleteपहले अपना ह्रदय टटोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है
सुंदर रचना...
नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ...
अधरों पर ताला अनजाना और आँसुओं पर पहरे ,
ReplyDeleteभीतर-भीतर सब कुछ पी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
गहरी वेदना है आपकी कविता में.
भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
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ReplyDelete@-अधरों पर ताला अनजाना और आँसुओं पर पहरे ,
भीतर-भीतर सब कुछ पी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है..
यही कला तो सीखनी बाकी है अभी । लेकिन देर-सवेर सीख ही लूंगी। उम्दा काव्य श्रंखला में एक और नगीना शामिल हो गया --आभार एवं बधाई।
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पर उपदेश कुशल बहुतेरे , बड़ा पुराना ढर्रा है ,
ReplyDeleteपहले अपना ह्रदय टटोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
'कुछ न कहें तो अच्छा है' कहते हुए भी बहुत कुछ कह गई आपकी ये ग़ज़ल !
मानवीय मूल्यों की खोखली सच्चाई को मुंह चिढाती यह रचना सीधे दिल को छू गयी !
सुरेन्द्र जी, बहुत बहुत आभार !
कमाल की धार है आपकी लेखनी में सुरेन्द्र भाई ! संकलन योग्य रचना के लिए बधाई !
ReplyDeleteबाज़ारों से कई मुखौटे , खरीद लाने के दिन हैं ,
ReplyDeleteअसली चेहरा कभी न खोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
बेहतर व्यंग......
आज समाज की यही स्थिति है झंझट भाई! सत्य कहना बुरा समझा जाता है. यदि आप सत्य वादी हैं तो आपसे बुरा कोई भी नहीं है. ठीक है झंझट को झंझट में क्या पड़ना! और भी गम है ज़माने के सिवा !!
इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है. इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ……
आपको भी विश्वकप विजय और नव संवत्सर की हार्दिक बधाई...!!
ReplyDeleteपहले अपना ह्रदय टटोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है
ReplyDeleteसुरेन्द्र सिंह "झंझट" जी आप की लेखनी कमाल की है दोहे रचना व् लेख सब मुग्ध करते छा जा रहे हैं बधाई हों हम कुछ न कहें तो अच्छा है
कृपया आइये हमारे ब्लॉग पर भी अपना मार्गदर्शन सुझाव व् समर्थन ले
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
पर उपदेश कुशल बहुतेरे , बड़ा पुराना ढर्रा है ,
ReplyDeleteपहले अपना ह्रदय टटोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
अधरों पर ताला अनजाना और आँसुओं पर पहरे ,
भीतर-भीतर सब कुछ पी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
bahut khoob ghazal!
एक ज़िन्दगी भार सरीखी, साँस - साँस धिक्कार भरी ,
ReplyDeleteचलो अनमनेपन से जी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
.........बेहतरीन ग़ज़ल।
achhi kundliyaan jagai hain aapne
ReplyDeletemaja aa gaya
एक ज़िन्दगी भार सरीखी, साँस - साँस धिक्कार भरी ,
ReplyDeleteचलो अनमनेपन से जी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है
वाह!! बहुत उम्दा!
एक ज़िन्दगी भार सरीखी, साँस - साँस धिक्कार भरी ,
ReplyDeleteचलो अनमनेपन से जी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
कमाल कर दिया आपने। इसांनों को आईनें में उनका ही चेहरा देखने केा मजबुर कर दिया।
सुन्दर...सुन्दर...सुन्दर..
ReplyDeleteसब कुछ देखें अधर न खोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
ReplyDeleteउनमें हम भी शामिल हो लें, कुछ न कहें तो अच्छा है
wah......kya baat hai....
बाज़ारों से कई मुखौटे, खरीद लाने के दिन हैं,
ReplyDeleteअसली चेहरा कभी न खोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है।
बहुत खूब कहा है आपने ।
कुछ न कहें तो अच्छा है । वाह...
ReplyDeleteपर उपदेश कुशल बहुतेरे , बड़ा पुराना ढर्रा है ,
ReplyDeleteपहले अपना ह्रदय टटोलें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
आपकी बात ठीक है पर इतना तो कहना ही पड़ेगा ... लाजवाब लिखा है आपने ... बहुत उम्दा ...
sundar bahut sundar
ReplyDeleteachchhi gazal.
ReplyDeleteअधरों पर ताला अनजाना और आँसुओं पर पहरे ,
ReplyDeleteभीतर-भीतर सब कुछ पी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
बहुत सुन्दर अन्दाज की गजल
बहुत अच्छी रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeletebadhe bhaiya bahut khoob
ReplyDeletebhitar bhitar sabkuch pelen kuch na kahen to achha hai ;bahut achhi rachana hai maja aa gaya bade bhaiya pranam
ReplyDeleteदिल से लिखी हुई आम आदमी के दर्द को उजागर करती हुई कविता|
ReplyDeleteएक ज़िन्दगी भार सरीखी, साँस - साँस धिक्कार भरी ,
ReplyDeleteचलो अनमनेपन से जी लें, कुछ न कहें तो अच्छा है |
बहुत सुन्दर गजल...
कुछ न कहते हुए सब कुछ बयां कर देने वाली प्रभावी रचना.
ReplyDeletekuch na kahen to achha hai,phir bhi kahta hoon apki sbhi rachnayen lajabab hain.chote bhai ko ashirvad dena.''JAI MA VARAHI;
ReplyDeleteसहेंगे कबतक अनीति - अत्याचार
ReplyDeleteचलो असली चेहरों को अब खोल दें
रावण दरबार में विभीषण बन
मूक सत्याग्रह से कुछ बोल दें |
Ek-ek shabd apni visheshta ko prakat karti hui...prabhavi rachana...aabhar
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